बरसात में फिर डूबी नगरपालिका (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jun 26, 2025

बरसात का मौसम हर साल देर से ही आता रहा है लेकिन इस बार जल्दी आने के कारण बेचारी नगरपालिका को बरसात के पानी में अग्रिम डूबना पड़ा। उसके डूबने के साथ ही शहर के कई इलाकों को भी डूबना पड़ा। जलदेव के ज्यादा प्रसन्न हो जाने के कारण, शहर के बाज़ारों में तीन फुट पानी खड़ा हो गया। नालियां गुम हो गई कितनी ही दुकानों के अन्दर तक दो फुट पानी पसर गया। बाज़ार वालों ने म्युनिसिपल कमेटी में फोन किया तो कई बार घंटी बजती रही फिर किसी ने उठा ही लिया और बताया कि अधिकांश कर्मचारी वृक्षारोपण में अति अस्तव्यस्त हैं। 


अध्यक्ष महाराजाधिराज को फोन किया तो उन्होंने सुना नहीं, पार्षद महाराज ने झट से काट दिया। काफी देर बाद, आधा दर्जन बंदे महाराजाधिराज के दरबार में हाज़िर हुए। उनके कहने से पहले ही अध्यक्ष बोले,  वार्षिक वृक्षारोपण के अवसर पर, परम आदरणीय मंत्रीजी के साथ पौधे लगा रहा था पूरे ग्यारह सौ एक पौधे लगाए। आम लोगों ने ख़ास बंदे से गुजारिश की, आप चलकर देखें, ज़्यादा बारिश के कारण बाज़ार में दो फुट पानी खड़ा है। पानी की निकासी नहीं हो रही। अध्यक्ष बोले, सकारात्मक सोचो, जय हो इंद्रदेवजी की, जिन्होंने बारिश का आशीर्वाद दिया। बच्चों से कहो कागज की कश्तियाँ बना कर तैराएं, आपको भी अपना बचपन याद आ जाएगा। 

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आम लोगों ने कहा, महाराज, तीन साल पहले नगरपालिका ने बाज़ार में सीमेंट डलवाया था तब से जब भी बारिश होती है पानी दुकानों में घुस जाता है। महाराजाधिराज ने स्पष्ट कहा, जब फर्श डाला था तब दूसरी पार्टी की सरकार थी, हम भी अध्यक्ष न थे। घबराएं नहीं, हम जांच करवा रहे हैं कि हमारे राज से पहले क्या क्या गलत किया गया है। आपको जानकर खुश होना चाहिए, ज़ोरदार तरीके से विकास दोबारा शुरू हो चुका है और हमने इस मामले को राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत ले लिया है। हम क्षेत्र की साफ सफाई बारे बहुत अच्छे तरीके से बैठकें करने जा रहे हैं जिसमें गहन विचार विमर्श होगा। 


आपको पता होना चाहिए, अच्छे काम को बढ़िया तरीके से करने में वक़्त लगता है। यह तो ऊपर वाले की ग़लती के कारण ही इस साल बरसात वक़्त से पहले आ गई है, नहीं तो आपको ज्यादा दिक्कत नहीं होती। इस कुदरत ने सबको डूबोने का कार्यक्रम बना रखा है लेकिन आप चिंता न करें। हम भी पूरी तरह तैयार हैं, कुछ दिन में सब कुछ सामान्य करवा देंगे, महाराजाधिराज ने कहा। 


आम लोगों ने घर पहुंच कर देखा, बच्चे बरसात के पानी में कागज़ की कश्तियां सफलतापूर्वक चला रहे थे, बोले, पापा आप भी बोट चलाओ न।


- संतोष उत्सुक

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