Nandini vs Amul controversy: कैसे बना दूध चुनावी मुद्दा, जानें क्या है नंदिनी दूध कि पूरी कहानी

By अंकित जायसवाल | Apr 19, 2023

कर्नाटक विधानसभा चुनाव मुहाने पर है। इस बार राज्य में भ्रष्टाचार, विकास, महंगाई और हिजाब के साथ दूध का हिसाब भी चुनावी मुद्दा बना हुआ है। बाकि सारे मुद्दे तो ठीक हैं और लगभग हर चुनाव का हिस्सा हैं लेकिन देश की राजनीति में दूध का चुनावी मुद्दा बनना नया है और अनोखा भी है। 5 अप्रैल को गुजरात स्थित डेयरी ब्रांड अमूल ने घोषणा की, "दूध और दही के साथ ताजगी की एक नई लहर बेंगलुरु में आ रही है। अधिक जानकारी जल्द ही आ रही है। इस घोषणा ने कन्नड़ समर्थक संगठनों और विपक्ष को नाराज कर दिया । उन्हें डर है कि कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) द्वारा तैयार कर्नाटक के स्थानीय ब्रांड नंदिनी को "नष्ट" कर दिया जाएगा। प्रदेश के लोगों ने अपने लोकल ब्रांड नंदिनी को बचाने के लिए मुहीम छेड़ दी। अमूल को बायकॉट करने वाली आवाज बुलंद होने लगी। लोगों का आरोप है कि अमूल के जरिए नंदिनी को खत्म करने की साजिश हो रही है। जिस नंदिनी के लिए इतना बवाल हो रहा है, उसकी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है।


नंदिनी कर्नाटक का लोकल दूध ब्रांड हैं जिसे कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड (KMF) बनाता है। KMF देश की डेयरी सहकारी समितियों में दूसरी सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समिति है। दक्षिण भारत में ब्रांड "नंदिनी" खरीद और बिक्री के मामले में पहले स्थान पर है। ब्रांड "नंदिनी" शुद्ध और ताजा दूध और दुग्ध उत्पादों का लोकल नाम है। कर्नाटक डेयरी विकास सहयोग (केडीडीसी), देश में पहली बार विश्व बैंक / अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी की मदद से 1974 में ग्राम स्तरीय डेयरी सहकारी समितियों के संगठन के साथ सहकारी तर्ज पर कर्नाटक में शुरू हुआ। डेयरी उत्पाद तेजी के बाद से साल 1983 में डेयरी प्रोडक्टस का नंदिनी नाम तय किया गया। नंदिनी नाम का ताल्लुक पवित्र गाय से है। नंदिनी ब्रांड कर्नाटक का सबसे बड़ा ब्रांड बन गया। इसकी पकड़ 22000 गांवों तक पहुंच गई। 25 लाख से अधिक किसान और पशुपालक नंदिनी के साथ जुड़े हैं। कंपनी रोजाना 84 लाख लीटर दूध खरीदती है । मौजूदा वक्त में कंपनी के पास 65 से अधिक प्रोडक्ट्स हैं, जो बाजार में काफी लोकप्रिय हैं।


Nandini vs Amul: विवाद क्या है?

मामले की शुरूआत पिछले साल की है जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 30 दिसंबर को घोषणा की, "अमूल और केएमएफ मिलकर कर्नाटक के हर गांव में एक प्राथमिक डेयरी सुनिश्चित करने की दिशा में काम करेंगे।" शाह के इस बयान को गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (अमूल) को नंदिनी के साथ मिलाने की कोशिश के तौर पर देखा गया था। कर्नाटक KMF 25 लाखों किसानों को आजीविका प्रदान करता है। ऐसे में अमित शाह के बयान के बाद लोगों का आक्रोश फूट पड़ा। इस आक्रोश को देखते हुए, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने स्पष्ट किया है कि "नंदिनी हमेशा अपनी अलग पहचान बनाए रखेगी और नंदिनी का अमूल में विलय के बारे में सोचना गलत है।"


वार-पलटवार

एक तरफ सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने आश्वासन दिया है कि नंदिनी का अमूल में कोई विलय नहीं होने जा रहा है। लेकिन 5 अप्रैल को अमूल की घोषणा के बाद कन्नड़ समर्थक संगठनों ने प्रतिक्रिया शुरू कर दी है। इसके बाद से 8 अप्रैल को कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लोगों से कहा कि "सभी कन्नडिगों को अमूल उत्पादों को नहीं खरीदने का संकल्प लेना चाहिए।" उन्होंने मुद्दे को हिंदी भाषा से जोड़ते हुए कहा कि, “राज्य की सीमाओं के भीतर घुसपैठ करके हिंदी को थोपने और भूमि राजद्रोह के अलावा, अब बीजेपी सरकार कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (KMF) को बंद करके किसानों के साथ विश्वासघात करने जा रही है, जो कि किसानों और उनके परिवार की आजीविका है। कांग्रेस पर मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा, "अमूल के संबंध में हमारे पास पूर्ण स्पष्टता है। नंदिनी एक राष्ट्रीय ब्रांड है। यह कर्नाटक तक ही सीमित नहीं है। हमने अन्य राज्यों में भी नंदिनी को एक ब्रांड के रूप में लोकप्रिय बनाया है।" उन्होंने दावा किया कि बीजेपी सरकार में राज्य में दुग्ध उत्पादन बढ़ा है और दुग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहन भी दिया गया है।


अमूल Vs नंदिनी

अमूल के उत्पादों की तुलना में नंदिनी के प्रोडक्ट्स काफी सस्ते होते हैं। जहां अमूल के एक लीटर टोंड दूध की कीमत 54 रुपये लीटर है तो वहीं नंदिनी मिल्क के 39 रुपये में उपलब्ध है। यानी अमूल से नंदिनी के दूध 15 रुपये सस्ते है। अब दही की बात करें तो नंदिनी दही के एक किलो पैक की कीमत 47 रुपये है, जबकि अमूल की कीमत 66रुपये है। कीमत के अलावा अगर अमूल की पहुंच देश के 28 राज्यों तक है तो वहीं नंदिनी कुल 7 राज्यों में अपनी सेवा दे रही है। नंदिनी कर्नाटक के अलावा तिरुपति, विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश), हैदराबाद (तेलंगाना), चेन्नई, त्रिची (तमिलनाडु), कन्नूर (केरल), गोवा, पुणे (महाराष्ट्र) में मजबूत पकड़ रखती है। हर लिहाज से अमूल नंदिनी के मुकाबले बड़ी और मंहगी है।

 

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अमूल के खिलाफ माहौल क्यों?

नंदिनी के प्रोडक्ट्स सस्ते होने की सबसे बड़ी वजह उत्पादों पर मिलने वाली सब्सिडी है। दरअसल कर्नाटक सरकार इसपर सब्सिडी देती है, जिसकी वजह से नंदिनी के प्रोडक्ट्स सस्ते होते हैं। साल 2008 में येदियुरप्पा सरकार एक लीटर दूध पर 2 रुपये की सब्सिडी देती थी। इसके बाद जब सिद्दारमैया की सरकार आई तो उसने सब्सिडी को दोगुना कर 4 रुपये कर दिया। साल 2013 में फिर से जब येदियुरप्पा की सरकार आई तो सब्सिडी बढ़ाकर 6 रुपये कर दी गई। ज्यादा सब्सिडी मिलने की वजह से इसके उत्पाद सस्ते होते गए। लोकल ब्रांड और सस्ते हाने के कारण बेंगलुरू के 70 फीसदी मिल्क मार्केट पर नंदिनी का कब्जा है।


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