क्या है राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन योजना, क्या सचमुच परिसंपत्तियां बेच रही है सरकार

By दीपक गिरकर | Aug 27, 2021

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 अगस्त को राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन की घोषणा की जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की वे आधारभूत परिसंपत्तियां शामिल हैं जिन्हें निजी क्षेत्र को पट्टे पर दिया जाएगा। सरकार इस राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) योजना के तहत 2021-22 और 2024-25 के बीच 6 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति का मुद्रीकरण करेगी। सरकार को विमानन क्षेत्र से 20,800 करोड़, दूरसंचार क्षेत्र से 35,100 करोड़, रेलवे क्षेत्र से 150,000 करोड़, सड़क क्षेत्र से 160,000 करोड़, बिजली पारेषण क्षेत्र से 45,200 करोड़, 6 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन संपत्तियों के बदले 39,832 करोड़, 8,154 किलोमीटर लंबी प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के मुद्रीकरण से 24,462 करोड़ और 3,990 किलोमीटर अन्य पाइपलाइन से 22,504 करोड़, 25 हवाई अड्डों से 20,782 करोड़, 160 कोयला खदानों के बदले 29,000 करोड़, एक दर्जन से ज्यादा भंडारगृहों से भी 29,000 करोड़, दर्जनों बंदरगाहों के बदले 12,828 करोड़, दिल्ली की कॉलोनियों से भी 15,000 करोड़, दिल्ली, बंगलूरू के स्टेडियम ठेके पर देकर 11,450 करोड़ रुपये मिलेंगे। सरकार ने 2021-22 में 88,000 करोड़ रुपये का मुद्रीकरण करने का लक्ष्य रखा है।

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केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को उनकी संपत्ति का मुद्रीकरण करने के लिए प्रोत्साहन देने के लिए पहले ही 5,000 करोड़ रुपये अलग कर दिए हैं। यदि कोई राज्य सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में अपनी हिस्सेदारी बेचती है, तो राज्य सरकार को अगले वित्तीय वर्ष के लिए राज्य के बजट में केंद्र सरकार से विनिवेश के मूल्य का 100 प्रतिशत प्राप्त होगा। इसी तरह, यदि कोई राज्य सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को शेयर बाजारों में सूचीबद्ध करती है, तो केंद्र सरकार उन्हें अगले वित्तीय वर्ष के लिए राज्य के बजट में सूचीबद्ध करके जुटाई गई राशि का 50 प्रतिशत देगी। अंत में, यदि कोई राज्य सरकार किसी संपत्ति का मुद्रीकरण करती है, तो उसे अगले वित्तीय वर्ष के लिए अपने बजट में मुद्रीकरण से जुटाई गई राशि का 33 फीसदी प्राप्त होगा।


इस राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) योजना में परिसंपत्तियों का स्वामित्व सरकार के पास बना रहेगा और लीज अवधि के समाप्त होने के बाद निजी क्षेत्र द्वारा उन्हें वापस सरकार को सौंपना होगा। मुद्रीकरण पाइपलाइन में केवल उन्हीं परिसंपत्तियों को शामिल किया जाएगा जो पहले से संचालित हैं। पाइपलाइन में केवल सरकार के पास उपलब्ध ब्राउनफील्ड एसेट्स ही शामिल होंगे। किसी वस्तु या परिसंपत्ति को वैध मुद्रा में बदलना मुद्रीकरण कहलाता है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना से सरकारी संपत्तियों में निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ेगा और विदेशी निवेशकों को भी कमाने का मौका मिलेगा। इन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र ही निवेश करेगा और संचालन, रखरखाव और प्रबंधन भी निजी क्षेत्र का ही रहेगा।

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नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा है कि इस योजना में किसी भी संपत्ति को बेचा नहीं जाएगा और न ही निजीकरण किया जाएगा। यह पूरी तरह से अनुबंध के आधार पर काम होगा और जनता तक इन सम्पत्तियों से जुड़ी सेवाएं पहुंचाने का काम सरकार का रहेगा। क्या राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) योजना ही रामबाण इलाज है? देखा जाये तो मुद्रीकरण करना समस्या का समाधान नहीं है, मुद्रीकरण से वास्तविक समस्या छिप जायेगी। असली समस्या प्रशासन और नियामक ढाँचे में व्याप्त विसंगतियों के कारण है। सार्वजनिक क्षेत्र की समस्या केवल प्रभावी व कठोर विनियमन की कमी की है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) योजना की बजाए दीर्घकालीन ढांचागत सुधार किये जाने की जरूरत है। आज सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को मुद्रीकरण या निजीकरण की नहीं बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के कामकाज की पारदर्शिता, प्रभावी विनिमयन और सुपरविजन की ज़रूरत है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां निजी क्षेत्र की तरह कार्य क्यों नहीं करतीं ? सार्वजनिक क्षेत्र में शीर्ष स्तर पर पेशेवरों की ही नियुक्ति होनी चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के बोर्ड में पेशेवर निदेशक होने चाहिए और इन निदेशकों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए जिससे इनकी जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में मानव संसाधन विकास पर ध्यान देना होगा। विकसित देशों में मानव संसाधन पर ही अधिक निवेश किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के प्रबंधन में कसावट लानी होगी। सरकार ने कहा है कि राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) योजना में पूरी पारदर्शिता बरती जायेगी। परिसम्पत्तियों का मूल्यांकन अभी सरकार द्वारा किया गया है लेकिन वास्तविक मूल्य बाजार मूल्य पर ही निकलेगा जो कि सरकारी मूल्य से कम होगा, क्योंकि निजी क्षेत्र अपने फायदे का विचार करेगा। परिसम्पत्तियों के मूल्यांकन के सम्बन्ध में पारदर्शिता का प्रश्न बना रह सकता है। अभी तक विनिवेश के मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। अत: सरकार की यह योजना कितनी सफल होती है यह तो भविष्य में ही पता चलेगा। 


-दीपक गिरकर

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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