Netaji Birth Anniversary: "अनुशासनहीनता के चलते बोस को मिली कड़ी सजा", खबर पढ़ते नेताजी के चेहरे पर क्यों मुस्कुराहट फैल गयी

By अभिनय आकाश | Jan 23, 2022

नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।

विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता।।

शेर को का राजा नियुक्त करने के लिए न तो कोई राज्याभिषेक किया जाता है, न कोई संस्कार । अपने गुण और पराक्रम से वह खुद ही मृगेंद्रपद प्राप्त करता है। यानि शेर अपनी विशेषताओं और वीरता (‘पराक्रम’) से राजा बन जाता है। ये वाक्य भारत के महान सपूतों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा। मां भारती के वीर सपूतों में से एक सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे महान क्रांतिकारी जिन्होंने मुल्क को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। 23 जनवरी का दिन ऐतिहासिक दिन है। सुभाष चंद्र बोस की जयंती का 125वां साल। वही सुभाष चंद्र बोस जिनकी जिंदगी से ज्यादा मौत के चर्चे होते रहे हैं। वो भारतीय शेर जो आजादी को अंग्रेजों से मांगने में नहीं बल्कि अपना अधिकार समझकर छीनने में भरोसा रखता था। आज आपको सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी एक ऐसी घटना के बारे में बता रहे हैं जब नेताजी पर तीन साल तक चुनाव लड़ने की पाबंदी लगा दी गई थी। 

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बोस और गांधी के मतभेद

भारत के तत्कालीन राजनीति में सबसे बड़े नेता से करीब 28 साल छोटे सुभाष बोस ने भारत को आजादी दिलाने की गांधी की योजनाओं को अस्पष्ट करार दे दिया था। आईसीएस छोड़कर लंदन से लौटे जोशीले नौजवान को महात्मा गांधी की सलाह थी कि वह चितरंजन दास से मिलकर इस मसले को गहराई से समझने की कोशिश करें। फिर भी गांधी से बोस के मतभेद हमेशा बने रहे। अगले 20 वर्षों तक चाहे वह जेल में रहे या यूरोप में उन्होंने गांधी की नीतियों का विरोध खुलकर किया चाहे वह भगत सिंह की फांसी का मसला हो, भारत को संभावित राज्य का दर्जा देने की बात हो, आधुनिक औद्योगीकरण की जरूरत का मसला हो, अंतर दलीय प्रजातंत्र की बात हो या फिर कोई और मुद्दा बोस की निडरता जगजाहिर थी। 

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3 सालों तक कोई भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई

बोस ने कहा था गांधीवादी मुझे नहीं अपनाएंगे और मैं कठपुतली नेता नहीं बनना चाहता हूं। हुआ भी कुछ ऐसा ही उनके विरोधियों ने उनका पीछा तब तक नहीं छोड़ा जब तक उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का पद ही नहीं छोड़ दिया। पार्टी के अंदर रहते हुए फॉरवर्ड ब्लॉक बनाने के उनके फैसले ने शीर्ष नेताओं को ज्यादा खुश नहीं किया। उनसे बंगाल कांग्रेस के नेतृत्व का हक भी छीन लिया गया और पार्टी में अगले 3 सालों तक कोई भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई। ऐसा लगता था जैसे कांग्रेस ब्रिटिश सत्ता नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ मोर्चा खोले खड़ी हो। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक कॉलम की रिपोर्ट का शीर्षक था- ''अनुशासनहीनता के चलते सुभाष बोस को मिली कड़ी सजा''। ऐसी रिपोर्ट को पढ़कर बोस चेहरे पर चोट खाई हुई कड़वी मुस्कुराहट फैल गयी।

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