नई शिक्षा नीति भारत के भविष्य को गढ़ने का सुनहरा अवसर

By डॉ. परवीन अख्तर | Aug 11, 2020

महात्मा गांधी जी ने कहा था कि ''शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन, तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है।” शिक्षा एक उद्देश्यपूर्ण सामाजिक क्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति की जन्मजात अंतर्निहित शक्तियों का विकास संभव हो पाता है। जिससे व्यक्ति सत्यम, शिवम, सुन्दरम का चिन्तन करने योग्य बन सके। वर्तमान में बेहतर तरीके से जीना ही हमारे शिक्षा का उद्देश्य है। ज्ञान की सार्थकता तभी है जब वो हमारे जीवन  में उतरे। दुनियां हर दिन तेजी से बदल रही है। कोरोना के इस संक्रमण काल में सक्रिय रहकर इनोवेटिव थिंकिंग जरूरी है।

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सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् जैकस डेलर्स की अध्यक्षता में गठित ‘21वीं सदी में शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीय आयोग जिसकी रिपोर्ट 1996 में यूनेस्कों द्वारा प्रकाशित की गई। जिसमें 21वीं सदी मे शिक्षा के चार आधार स्तम्भ बनाये गये। जिसके कुछ बिन्दु प्रमुख हैं:-


1. ज्ञान के लिए सीखना 

2. करने के लिए सीखना 

3. होने के लिए सीखना 

4. साथ रहने के लिए सीखना


इस क्रांतिकारी रिपोर्ट ने शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों के लिए एक नयी और व्यापक दृष्टि दी। इस तारतम्य में जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति हमारे सामने है। उसकी विशेषता शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे में पूर्व माध्यमिक शिक्षा से लेकर 12वी तक की पढ़ाई आसान हो जायेगी। दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति बन जाने से पर्यावरण हितैषी तो होगी ही तथा नागरिकों को समाज को ज्ञानवान बनाने के साथ ही समयानुसार उसमें परिवर्तन की भी गुंजाइश रहेगी। तीसरी विशेषता शिक्षक विद्यार्थी अनुपात 1:30 हो जाने से शिक्षक विद्यार्थियों को समझकर उनकी समस्याओं से रूबरू हो पाएंगे। बहुस्तरीय (मल्टी लेबल) शिक्षण के तरीकों को अपनाना आज की एक महती आवश्यकता है। समय के साथ तेजी से होने वाले बदलाव में यह शिक्षण कारगर सिद्ध होगी। बालकों की चंचलता, निष्कपटता, बालकपन, सहजता कहीं दब सी गई। जिसे वास्तविक, मौलिक निखार की आवश्यकता है। चार्ली चैपलिन की कही गई यह बात सार्थक प्रतीत होती है। प्रश्न जीवंत हैं जिनके उत्तर मृत है। हमें उत्तरों की तलाश करनी होगी। चौथी विशेषता मिडिल स्तर पर 6वीं से 8वीं तक वोकेशनल ट्रेनिंग पर भी जोर दिया जायेगा साथ ही 6वीं से कोडिंग भी सिखायी जायेगी। जिससे विद्यार्थी स्कूल के बाद कोई न कोई एक स्किल के साथ ही निकलेगा। पांचवी विशेषता कहानी सुनाना, रंगमंच, समूह में पठन, लेखन जैसी बातें भी खास रहेगी। लड़कियों को भावनात्मक रूप से सुरक्षात्मक वातावरण देने का सुझाव भी है। छठवीं विशेषता रेमेडियल (उपचारात्मक) शिक्षण को मुख्य धारा में शामिल करना।

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शिक्षकों को भी नये टेकनिक के इस्तेमाल के काबिल बनाना। विषयवस्तु के बोझ को कम कर तार्किक और विश्लेषण क्षमता को बढ़ाना। वर्तमान शिक्षा पद्धति सूचना के भंडार तो है ही साथ ही साथ एक बच्चे में वैश्विक नैतिक और मानवीय मूल्यों का समुचित विकास नहीं कर पाया है। अधिक अंक पा लेने की अंधी होड़ में ज्ञानार्जन करना वास्तव में ज्ञान नहीं एक ज्वलन्त समस्या है। यही वजह है कि आज आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार हर छठवां भारतीय मानसिक रोगी है। मानसिक तनाव के इस बढ़ते ग्राफ को कम, बच्चों के उचित आंकलन विधि से ही संभव है। उसकी विशेषता यह भी है कि बच्चों का आंकलन केवल ढाई-तीन घंटे की लिखित परीक्षा से ना किया जाए। विद्यार्थी के प्रवेश लेने से अंत तक उसका आंकलन चलता रहेगा। जिसमें विद्यार्थी स्वयं, उसका व्यवहार, उसके मित्र,शिक्षक ये सभी शामिल होंगे। इसी प्रकार अंततः मल्टी एंट्री और मल्टी एक्जिट की व्यवस्था से विद्यार्थियों को कभी भी निराशा नही होगी। किसी कारणवश यदि कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्हें कॉलेज छोड़ना भी पड़े तो उतने दिनों के आधार पर एक सर्टिफिकेट जरूर मिलेगा और यदि बाद में उसे लगे कि विषय परिवर्तन करना है तो यह भी संभव हो सकेगा साथ ही कॉलेज पुनः प्रवेश कर अपनी अधूरी पढ़ाई पूर्ण करने में भी समर्थ होगा। अंत में प्राथमिक स्तर पर बहुभाषिता को प्राथमिकता, पहली से पांचवीं तक मातृभाषा का इस्तेमाल करना, जिससे बच्चे और शिक्षक में संवाद की स्थिति बेहतर हो सके। संवाद की सुगमता सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाती है। बच्चे का बचपन गुम हो चुका है, उसे फिर से खोज निकालने की उनकी सृजनशीलता को नैसर्गिक तरीके से बढ़ाने की बहुत उत्कृष्ट पहल है, ताकि बच्चा रोते हुए नही बल्कि खुश होते हुए स्कूल जाए।

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विद्यार्थी को उसके वास्तविक किरदार से मिलाने एवं उसकी अनन्त जिज्ञासा को सही स्तर तक पहुंचाने में यह शिक्षा नीति कितनी सफल हो पायेगी? यह तो भविष्य में ही जाना जा सकता है। शिक्षक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण है। कोरोना के बाद उन्हें और भी गंभीरता से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा ताकि बच्चे वैश्विक अर्थव्यवस्था में, वैश्विक समाजीकरण में, वैश्विक मानवीकरण में अपनी मौलिकता की पहचानकर अग्रणी हो सके, साथ ही साथ एक अच्छा नागरिक, एक अच्छा दोस्त, एक अच्छा पति, एक अच्छा पिता, एक अच्छा पुत्र, एक अच्छा इंसान बनकर समाज के कल्याण के लिए कुछ योगदान दे सके। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के टेस्ट (15 वर्ष तक के बच्चों के लिए पी.आई.एस.ए.) में भी 73वें पायदान से प्रथम पायदान पर पहुंच सकें।


डॉ. परवीन अख्तर 

शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे बदलाव पर नियमित लेखन में सक्रिय हैं

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