प्रोफेसर साईबाबा को बरी करने के मामले में NIA ने किया SC का रुख, कार्यकर्ताओं ने किया फैसला का स्वागत

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Oct 14, 2022

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा को कथित माओवादी संपर्क मामले में बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर शुक्रवार को रोक लगाने से इनकार कर दिया। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के कुछ घंटों बाद, फैसले पर रोक के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया।

 

उच्चतम न्यायालय ने हालांकि एनआईए को अनुमति दे दी कि वह तत्काल सूचीबद्ध किए जाने का अनुरोध करते हुए रजिस्ट्री के समक्ष आवेदन दे सकती है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायामूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अदालत बरी करने के आदेश पर रोक नहीं लगा सकती क्योंकि विभिन्न पक्ष उसके सामने नहीं हैं।

 

इससे पहले मेहता ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने और फैसले पर रोक लगाए जाने का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि उसने मामले की फाइल या उच्च न्यायालय के फैसले पर भी गौर नहीं किया है। इसके साथ ही पीठ ने कहा, आप मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने के संबंध में भारत के प्रधान न्यायाधीश के प्रशासनिक निर्णय के लिए रजिस्ट्री के समक्ष आवेदन दे करते हैं।

 

इससे पहले बंबई उच्च न्यायालय ने आज साईबाबा को माओवादियों से कथित संबंध से जुड़े मामले में बरी कर दिया। अदालत ने साईबाबा को जेल से रिहा करने का आदेश दिया और कहा कि मामले में आरोपी के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के सख्त प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने का मंजूरी आदेश ‘‘कानून की दृष्टि से गलत और अमान्य’’ था।


कार्यकर्ताओं, राजनेताओं ने साईबाबा की रिहाई का स्वागत किया


कार्यकर्ताओं, वकीलों और राजनेताओं ने माओवादियों से कथित संबंध के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा को बरी किए जाने का स्वागत किया और इस बात पर अफसोस जताया कि मानवाधिकार के पैरोकार को 2014 से जेल में रहने की “यातना” सहनी पड़ी।

 

बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने साईबाबा को शुक्रवार को बरी कर दिया और उन्हें जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने का आदेश ‘‘कानून की दृष्टि से गलत एवं अवैध’’ था। न्यायमूर्ति रोहित देव और न्यायमूर्ति अनिल पानसरे की नागपुर खंडपीठ ने साईबाबा को दोषी करार देने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के निचली अदालत के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका स्वीकार कर ली।

 

उनकी रिहाई का स्वागत करते हुए शिक्षाविद् अशोक स्वैन ने ट्वीट किया कि वे लगभग तब से जेल में रहे जब से (नरेन्द्र) मोदी प्रधानमंत्री हैं। कार्यकर्ता और भाकपा(माले) की सदस्य कविता कृष्णन ने साईबाबा की पत्नी वसंत और उनके वकीलों को “उनकी रिहाई हासिल करने” पर बधाई दी। उन्होंने ट्वीट किया कि इस दिव्यांग मानवाधिकार रक्षक - जो अब निर्दोष साबित हुआ - को इतने लंबे समय तक जेल में यातनाएं झेलनी पड़ीं, जिससे उसके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा। शर्म। उच्चतम न्यायालय की वकील और कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह ने साईबाबा की कानूनी टीम को ट्विटर पर बधाई दी और “जेल में मारे गए उनके (साईबाबा के) सह-आरोपी पांडु नरोटे को भावभीनी श्रद्धांजलि” व्यक्त की।

 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि साईबाबा ने “यूएपीए के कारण वर्षों तक जेल में अत्यधिक कष्ट सहे और उनके प्रियजनों को असहाय होकर देखना पड़ा”। उन्होंने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा कि यूएपीए एक राक्षस है जिसे भाजपा और कांग्रेस के सहयोग से बनाया गया है। इसके शिकार ज्यादातर निर्दोष मुसलमान, दलित, आदिवासी और असंतुष्ट हैं। यूएपीए के तहत सिर्फ तीन प्रतिशत आरोपी ही दोषी करार दिए गए हैं, लेकिन इसके तहत गिरफ्तार किए गए निर्दोष लोग सालों तक जेल में रहते हैं। दिव्यांग लोगों के अधिकार के लिये काम करने वालों ने भी इस फैसले की सराहना की। दिव्यांग लोगों के लिए रोजगार संवर्धन के राष्ट्रीय केंद्र के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने कहा, “यह एक बहुत अच्छा आदेश है।

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