दिमाग से ली गई शपथ (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Nov 23, 2020

ऑनलाइन पढ़ाई वाली छुट्टियां खत्म होने के बाद, छटी क्लास में पढ़ने वाला युवा हो रहा रेकी स्कूल का बैग रिसैट करने लगा तो उसके पिता ने सोचा सिलेबस थोड़ा रिवाइज़ करवा दूं। यह अच्छा काम हो रहा था कि रेकी की मम्मी आकर बोली खुद क्यों परेशान हो रहे हो जी, ट्यूशन वाली मैडम करवा देगी, बंद करवा दूं, पैसे भी बचेंगे। पापा ने सोचा पैसे बच भी गए तो क्या रेकी का सिलेबस पढ़ाया जा सकेगा, इसलिए पापा ने रिवीज़न पर तुरंत रोक लगा दी। रेकी भागने को ही था पापा ने कहा जाते जाते वो शपथ तो सुना दे, छुट्टियों में भूल तो नहीं गया। हैड मास्टर ने उम्दा शपथ चुनी हुई है विद्यार्थियों के लिए। ऐसी शपथ हर स्कूल में दिलवाई जानी चाहिए। तुम्हारी शपथ सुनकर मुझे स्कूल के दिन याद आते हैं। क्या शपथ थी, अब तो भूल भी गए। 

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रेकी ने सावधान खड़े होकर शपथ सुनानी शुरू की तो पापा ने कहा, 'बैठ कर ही सुना दे। आंख तरेर कर बोला पापा क्यूं अनुशासन तोड़ रहे हो। सही सीधे खड़े होकर मानो वह दिमाग से सुनाने लगा, ‘भारत हमारा देश था’, पापा बोले, ‘क्या बोल रहे हो’। रेकी बोला, ‘शपथ लेते समय नहीं टोकते। कोई ऑब्जेक्शन होगा तो बाद में डिस्कस कर लेंगे'। पापा चुप तो शपथ पुनः शुरू हुई, ‘भारत हमारा देश था, नाउ इंडिया इज़ अवर कन्ट्री। हम सब भारतवासी बहनभाई होते थे। अब हम एक दूसरे के लिए मुंबई वाले ‘भाई’ हैं। बहनों ने अपना ज़िम्मा खुद संभाल लिया है। हम अपने देश से बहुत प्यार करते थे, हम अपने देश से बहुत प्यार करते हैं, हम अपने देश से प्यार करते रहेंगे। मगर मगर मगर, अब अब अब, मैं अपने आप से भी बेहद प्यार करता हूं। क्योंकि अब सब अपने आप से प्यार करते हैं। अपने काम से काम रखते हैं। हमारे देश ने दुनिया को बहुत कुछ दिया। मुझे अभी भी अपने देश की महान सभ्यता और संस्कृति पर नाज़ है। बहुत से लोग देश की कला संस्कृति, सभ्यता, धर्म, एकता व राष्ट्रीयता को सैट रखने का नेक काम कर रहे हैं। कुछ लोग ईमानदारी को भी जीवित रखना चाहते हैं मगर ज्यादातर लोग साथ नहीं देते। मैं अपने मातापिता, अध्यापकों व वरिष्ठजनों का सम्मान दिल से तो करता हूं, मगर व्यव्हारिक स्तर पर कुछ कर सकने में, उनके बताए रास्ते पर चलने में, दिन पर दिन अपने आप को विवश पा रहा हूं। स्थितिवश मैं देश व देशवासियों के सम्बन्ध में ईमानदारी से प्रतिज्ञा  करता हूं कि पूरी निष्ठा से उनके माध्यम से अपने स्वार्थों को  किसी न किसी तरीके से पूरा करके दिखाऊंगा ताकि मेरा जीवन भी सफल हो। मैं कोशिश करूंगा कि सब कुछ किनारे रख अपना उल्लू सीधा कर सकूं। इस सन्दर्भ में मुझे देश के नेता, अभिनेता, अफसर, रक्षक भक्षक से जो दिव्य प्रेरणा मिली उसके लिए मैंटली थैंकफुल हूं’।

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ओफ्फ! यह शपथ है तुम्हारी। सब भूल गए, बिगड़ गए तुम। रेकी के पापा चीखे थे। रेकी बोला, ‘रिलेक्स, रिलेक्स, रिलेक्स माई डियर पापा, लाइफ में आगे निकलना हो तो पुरानी शपथ नहीं चलती, न पुराने तरीके। अब हमारा देश भारत नहीं, न्यू इंडिया है। समय के साथ नहीं बदलूंगा तो हर कोई मेरी रेकी कर देगा। मैंने अपना नाम तभी तो बदलकर रेकी रखा है। अब तो जैसा देश में हो रहा है वैसा ही करना होगा नहीं तो रेस से बाहर होना पड़ेगा। वो पुरानी शपथ लेते लेते मुझे सब पुराना, घिसा पिटा लगता था मेरा माइंड कुछ चेंज चाहता था सो मैंने शपथ को ग्लोबल कर दिया है। एंड यू नॉट वरी, मुझे पुरानी शपथ भी याद है। टीचर के सामने वही लेता हूं, मगर आप तो मेरे पापा हो आप से झूठ नहीं बोल सकता। पापा ने गौर से देखा छटी कक्षा में पढ़ने वाला रेकी आज उन्हें अपना नहीं लग रहा था। वैसे उसने, शपथ तो सामयिक ज़रूरत के हिसाब से ठीक ली थी। उन्हें विश्वास हो चला था कि उनका रेकी अब ज़माने की रेकी कर सकेगा।


- संतोष उत्सुक

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