विकास की सड़क पर (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jan 20, 2024

एक तरफ दुनिया की शान, शक्तिशाली नेता, दूसरे देशों के साथ लड़ते मरते हुए सम्मान अर्जित कर रहे हैं। दूसरी तरफ विकसित देश दिन रात पर्यावरण की रक्षा करते हुए देश का विकास कर रहे हैं। तीसरी तरफ अधिकतम गति से चलने वाली कारों का निर्माण किया जा रहा है। चौथी तरफ हमारे अपने देश में पुरानी सडकों के किनारे लगे पुराने बलिष्ट वृक्षों का क़त्ल किया जा रहा है ताकि वहां राष्ट्रप्रेमी ठेकेदारों से फोरलेन का निर्माण कराया जा सके। यह तीव्र विकास इसलिए भी करवाया जा रहा है ताकि शिमला मनाली जैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों तक बहुत कम समय में, हद से ज्यादा लोग पहुंच जाएं। वहां पर्यटकों और गाड़ियों की भीड़ जमा हो जाए। यह सब देखकर गर्व महसूस होता है कि कितना ज्यादा विकास किया जा रहा है।  


इसी सन्दर्भ में विदेशियों की समझ उल्टी दिशा में जा रही है। वहां कुछ शहरवासियों को लगने लगा है कि उनके शहरों का निर्माण यह सोचकर नहीं किया गया था कि चौबीस घंटे कारों के हॉर्न गूंजेंगे। उन्हें लग रहा है कि साफ़ हवा स्वप्न होने जा रही है। सांस लेना मुश्किल होने जा रहा है। उन्होंने वाहनों की गति, बिना सोचे समझे, पचास से तीस किलोमीटर प्रति घंटा कर दी है। विकास से विमुख इस निर्णय से सड़कों पर कारों की संख्या आधी रह गई है। यह भी पता लगा है कि कई शहरों में अफसरशाही ने वहां भी, पचास से तीस के खिलाफ, अपनी शक्तिशाली टांग अड़ा दी है। लगता है टांग अड़ाने की प्रेरणा भारतीय अफसरशाही से ही ली गयी होगी। 

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पिछले दिनों हमारे पहाड़ी क्षेत्र में शानबढ़ाऊ नई फोरलेन शुरू हुई तो समझदार प्रशासकों ने निर्णय लिया कि इस पर साठ किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से गाडी चलाना होगी तो गतिप्रेमी कार चालकों ने प्रतिक्रिया में कहा यह बहुत गलत बात है। क्या हम, एक बार मिली ज़िंदगी में, क्षेत्र को पहली बार मिली नई फोरलेन पर सिर्फ साठ की स्पीड से ही अपनी महंगी कारें चलाएंगे। उनके अनुसार गाड़ी के स्पीडोमीटर में दी गई स्पीड को ध्यान में रखा जाए। वह बात अलग है कि साठ की स्पीड पर चलने के लिए गाड़ी ही मना कर देगी। ऐसी बातों के लिए जुर्माना देना फख्र की बात होती है।  

 

विदेशी लोग कभी नहीं समझ सकते कि कार, बड़ी कार, ऊंची कार, सन रूफ वाली कार, ख़ास नम्बर वाली कार, निजी आज़ादी और शान का प्रतीक है। आम जीवन में कार खरीदना मुश्किल काम है, कार के लिए क़र्ज़ ले लो तो चुकाना मुश्किल हो जाता है। खरीद लो तो पार्किंग मिलनी मुश्किल होती है। मुश्किल काम करने में जो मज़ा है वो आसान काम करने में नहीं। विदेशों में साइकिल को बढ़ावा दिया जा रहा है। साइकिल कभी कार का मुकाबला नहीं कर सकती। साइकिल की बिक्री से जीडीपी पर कुछ फर्क नहीं पड़ता। यह नेक काम तो कार ही कर सकती है। इसलिए सड़क पर कार की स्पीड कम नहीं रखनी चाहिए।


- संतोष उत्सुक

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