राज्यसभा में बहुमत वाला विपक्ष मोदी के इस दांव से हुआ ढेर

By अभिनय आकाश | Jul 31, 2019

पूरे देश में सरे दिन दीवाली मन गई वो भी जुलाई के महीने में। नरेंद्र मोदी गदगद हैं, अमित शाह गदगद हैं और गदगद हैं देश की साढ़े पांच करोड़ मुस्लिम महिलाएं। तीन तलाक बिल को लेकर समझ तो सभी रहे थे कि अपना काम तो हो जाएगा। कांग्रेस को संख्या बल के आधार पर लग रहा था, वामपंथी दलों को भी लग रहा था, जेडीयू, टीडीपी, एआईएडीएमके को भी वाक आउट करते समय लग रहा था। ममता और मायावती को भी थोड़ा-थोड़ा लग रहा था कि अपना तो हो जाएगा और बात बन जाएगी। होना क्या होता है ये मोदी ने करके दिखाया। जब कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद तीन तलाक बिल पर जवाब देने उठे तो उसी वक्त उनके आत्मविश्वास और हावभाव से प्रतीत हो रहा था कि मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने वाले बिल को पास कराने के प्रति मोदी सरकार कितनी आश्वस्त है। कानून मंत्री ने खुद को मोदी सरकार का कानून मंत्री बताते हुए पूर्ववर्ती राजीव गांधी सरकार को भी निशाने पर लिया। राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद राजनीति के बदलते हुए मौहाल में मोदी सरकार ने अपने बुलंद इरादे के साथ इस बिल को पास कराया।

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तीन तलाक बोलकर कोई भी मुसलमान अब अपनी बीबी-बच्चों की जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकता है। सरकार ने अल्पमत में होने के बावजूद भी राज्यसभा से इस ऐतिहासिक बिल को पास करा दिया। सरकार के फ्लोर मैनेजमेंट की वजह से बिखरे हुए विपक्ष ने अपने हथियार डाल दिए। पीएम मोदी जानते थे कि ये रास्ता आसान नहीं है लेकिन उन्हें ये करना था और जरूर करना था।

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सारी बहस खत्म, सारे ऐतराज ध्वस्त, सारी शंकाएं निर्मूह। मोदी ने ऐसा मंत्र मारा कि राज्यसभा में विपक्ष की सारी ताकत धरी रह गई और तीन तलाक नाम की कुप्रथा का अंत हो गया। भाजपा के सदन प्रबंधन के सामने बहुमत के बावजूद विपक्ष ताश के पत्ते की तरह धराशायी हो गया। तीन तलाक बिल का विरोध करने वाली कांग्रेस समान सोच वाले दलों को भी अपने साथ जोड़ने में बुरी तरह से नाकाम साबित हुई। यहां तक कि बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव भी 100 के मुकाबले 84 वोटों से गिर गया। 

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कांग्रेस के पास ऐसा कोई रणनीतिकार ही नहीं था जो भाजपा से विरोध के बावजूद इन्हें बिल के विरोध के लिए तैयार कर सके। नतीजा ये हुआ कि सरकार ने बहुत आसानी से राज्यसभा में बिल को पास करा लिया। बिल का विरोध करने वाली कांग्रेस के सदस्य विवेक तनखा, प्रताप सिंह बाजवा, मुकुट मिथी और रंजीब बिस्वाल व्हिप जारी होने के बावजूद गैर हाजिर रहे। इसके अलावा संजय सिंह ने तीन तलाक पर वोटिंग के दिन ही सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। भाजपा के प्रति तीखे तेवर दिखाने वाली राकांपा के प्रमुख शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल ने तो राज्यसभा में उपस्थित होना भी जरूरी नहीं समझा। हालांकि पवार के गले और जीभ के ऑपरेशन होने की खबर भी आई। लेकिन वो एक कार्यक्रम में फडणवीस के साथ मंच साझा करते हुए भी देखे गए। इसके अलावा टीएमसी, द्रुमक, आईयूएमएल और केरल कांग्रेस के एक-एक सदस्य भी वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहे। सदन के अंदर और बाहर इस बिल का विरोध करने वाले छह दलों ने तो वोटिंग से पहले ही वाक आउट कर इस बिल को पास कराने में अहम भूमिका निभाई। बसपा के चार, पीडीपी के दो, टीआरएस के छह, जदयू के छह, एआईएडीएमके के 11 और टीडीपी के दो सांसद अगर बिल के विरोध में वोट करते तो तीन तलाक बिल एक बार फिर राज्यसभा में लटक सकता था। लेकिन मोदी सरकार की रणनीति कहें या विपक्ष की नेतृत्वहीनता जो कांग्रेस अपने कुछ सांसदों को सदन में उपस्थित होने के लिए राजी नहीं कर सकी। साथ ही तीन तालक क विरोध करने वाले दलों को वोटिंग के दौरान सदन से वाक आउट करने से भी नहीं रोक सकी। 

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बहरहाल, नए कानून की नई रौशनी में तीन तलाक बोलकर अब जिम्मेदारियों से बरी हो जाने वालों की खैर नहीं होगी। आइए डालते हैं नजर कि तीन तलाक में ऐसे कौन से प्रावधान हैं जिसने भारत के न्यायिक इतिहास को ही बदल डाला। 

तीन तलाक कहकर बीबी को छोड़ देना अपराध माना जाएगा। 

तीन तलाक देने वाले पति को 3 साल तक की सजा हो सकती है। 

पति को सिर्फ जेल ही नहीं जुर्माना भी हो सकता है।

जिसे तलाक दिया गया वो महिला या उसका परिवार एफआईआर करा सकता है।

एफआईआर हो गई तो बिना वारंट के ही गिरफ्तारी हो जाएगी।

गिरफ्तारी होने पर मजिस्ट्रेट महिला की बात सुनकर जमानत पर फैसला देंगे।

मजिस्ट्रेट चाहें तो सुलह कराकर शादी बरकरार रख सकते हैं।

आरोपी पति को पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देना पड़ेगा। 

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साल 1985 में कांग्रेस को इससे बेहतर मौका मिला था जिससे वह इस दिशा में एक बहुत बड़ा योगदान कर सकती थी। शाह बानो केस याद होगा जब इसी केस पर राजीव गांधी की सरकार ने अपना प्रोगरेसिव चेहरा दिखाया था। अपने गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को आगे किया था। खान ने अपने विचारों को लोकसभा में खुलकर रखा था। आरिफ मोहम्मद ने मौलाना आजाद के विचारों से अपने भाषण की शुरूआत करते हुए कहा था कि कुरान के अनुसार किसी भी हालत में तालकशुदा औरत की उचित व्यवस्था की ही जानी चाहिए। हम दबे हुए लोगों को ऊपर उठाकर ही कह सकेंगे कि हमने इस्लामिक सिद्धांतों का पालन किया है और उनके साथ न्याय किया है। लेकिन कंट्टरपंथियों के दबाव में राजीव गांधी ने अपने कदम सिर्फ वापस ही नहीं खींचे बल्कि धारा की विपरीत दिशा में कदम बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया। शाहबानो से शायरा बानो तक ट्रिपल तलाक बिल अब एक हकीकत है।

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तीन तलाक का गैर कानूनी हो जाना हिन्दुस्तान की नागरिक स्वतंत्रता के पक्ष में एक ऐसी मुनादी है जिसकी कल्पना संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर ने की थी। कुछ लोग कानून के सख्त होने की दुहाई देकर इस बिल का विरोध कर रहे हैं। लेकिन सजा उनको मिलेगी जो कानून तोड़ेगा, जो कानून तोड़ेगा ही नहीं उन्हें सजा का डर क्यों होगा? तीन तलाक बिल की हिमायत करने वाली हुकूमत कह रही है कि खवातीन के मन से खौफ निकालने के लिए इस कानून का होना जरूरी है वहीं इसकी मुखालिफत करने वाले विपक्षी कह रहे हैं कि ये दावा दुरुस्त है मगर हमें आपकी नीयत पर शक है। नीयत क्या है, लेकिन फिलहाल तो एक कानून है जिससे मुस्लिम महिलाएं राहत महसूस करेंगी और एक क्रूर प्रथा को कहेंगी तलाक...तलाक...तलाक...