By नीरज कुमार दुबे | Jan 18, 2023
साल 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले जहां नरेंद्र मोदी सरकार अपने वादों को पूरा करने में और अपनी अब तक की उपलब्धियों को जनता के बीच ले जाने की तैयारी में लगी हुई है वहीं विपक्ष भी पूरी तैयारी कर रहा है। वर्तमान में जो परिदृश्य है वह दर्शा रहा है कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को कांग्रेस गठबंधन के अलावा तीसरे मोर्चे की चुनौती से भी जूझना होगा। कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से जहां पार्टी संगठन में जान फूंकने की कोशिश कर रही है वहीं तीसरे मोर्चे ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है। तेलंगाना की सत्तारुढ़ पार्टी बीआरएस ने खम्मम में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया। इस जनसभा को संबोधित करने वालों में बीआरएस अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और भाकपा नेता डी राजा शामिल रहे।
मंच पर नेताओं की जो एकजुटता दिखी, देखना होगा कि क्या वह चुनावों तक जारी रहती है? क्योंकि पूर्व में भी जब ऐसे प्रयास हुए हैं तब नेतृत्व कौन करेगा के सवाल पर या फिर सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन बनते-बिगड़ते रहे हैं। देश के राजनीतिक इतिहास में वैसे भी तीसरे मोर्चे के भाग्य में बहुत ही कम समय के लिए सत्ता रही है। यह भी देखना होगा कि गठबंधन राजनीति के युग को पीछे छोड़ चुका भारत क्या वापिस गठबंधन राजनीति को स्वीकार करेगा? क्या राजनीतिक अस्थिरता के दौर से उबर चुका भारत वापस उस स्थिति में जाना पसंद करेगा जहां एक या दो दल सरकार को ब्लैकमेल करते रहते हैं या फिर सरकार बनाने गिराने का खेल कर अपना राजनीतिक स्वार्थ साधते रहते हैं? यूपीए सरकार के दौरान जब सहयोगी दलों के कोटे से केंद्र में मंत्री बने लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी मजबूरी यह कहते हुए जाहिर की थी कि गठबंधन सरकारों की कुछ मजबूरियां होती हैं।
आज बीआरएस ने जो मंच सजाया जरा वहां मौजूद नेताओं की ही बात कर लें तो अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी कह चुकी है कि साल 2024 का मुकाबला मोदी बनाम केजरीवाल होगा। चंद्रशेखर राव खुद प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने की आकांक्षा रखते हैं और इस संबंध में उन्होंने बिहार की यात्रा कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मन टटोला था। केसीआर महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी मिलने के लिए फरवरी में मुंबई गये थे। अखिलेश यादव खुद प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने की आकांक्षा तो नहीं रखते हैं लेकिन वह जो वादा केसीआर से कर रहे हैं वही वादा वह ममता बनर्जी से भी कर चुके हैं। माकपा और भाकपा के नेता भी मंच पर थे। यह लोग प्रधानमंत्री बनने के आकांक्षी तो नहीं लेकिन केंद्र में मजबूत सरकार बनने के विरोधी जरूर रहे हैं। ऐसे में इनकी पहली चाहत खिचड़ी सरकार की होगी। वामपंथियों का इतिहास खासतौर पर केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने और गठबंधन सहयोगियों को धोखा देने का ही रहा है। यह दल आज केसीआर के साथ दिख रहे हैं लेकिन समय पड़ने पर यह कांग्रेस के गठबंधन के साथ पहले की तरह खड़े हो सकते हैं। त्रिपुरा में माकपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो ही चुका है।
ऐसे में सवाल उठता है कि मात्र सत्ता के लिए एकजुट हुए विभिन्न विचारधारा वाले दलों का यह गठबंधन कितने समय तक टिक पायेगा? सवाल यह भी उठता है कि क्या सिर्फ भाजपा और मोदी विरोध के नाम पर इकट्ठे हुए यह नेता देश का भविष्य उज्ज्वल बना पाएंगे? जरा इस मंच पर भाषण देने वाले नेताओं के रिपोर्ट कार्ड पर गौर करें तो केसीआर तुष्टिकरण की राजनीति के मास्टर हैं, केजरीवाल मुफ्त रेवड़ियां बांट कर सत्ता हासिल करने में यकीन रखते हैं, अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश की जनता नकार चुकी है, भगवंत मान के शासन में पंजाब के क्या हालात हैं, यह वहां से आने वाली खबरें दर्शा ही रही हैं। विजयन के शासन में केरल में जिस तरह राजनीतिक हिंसा बढ़ी वह सबने देखी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसी प्रकार के गुण वाले नेताओं की केंद्र में जरूरत है?