श्री कृष्ण की लीला रूपी 'नाग नथैया' को देखने के लिए उमड़ा जनसैलाब

By आरती पांडे | Nov 08, 2021

वाराणसी। काशी के तुलसीघाट पर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को सैकड़ों साल पुरानी परंपरा ‘नाग नथैया’ लीला फिर जीवंत हो उठी। गेंद निकालने के लिए कान्हा के कदम के पेड़ से छलांग लगाते ही हर तरफ वृंदावन बिहारी लाल और हर-हर महादेव का जयघोष गूंज उठा। कालिय दह की लीला के साक्षी बनने के लिए तुलसीघाट पर दोपहर बाद से ही लोगो की भीड़ जुटने लगी थी। पांच मिनट की इस अनूठी लीला के दर्शन के लिए अस्सी घाट से लेकर निषादराज घाट तक नौकाएं और बजड़े एक दम भरे रहे। इस लीला को देखने के लिए काफी संख्या में विदेशी पर्यटक भी मौजूद रहे। 

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भगवान के इस अद्भुत पलों के दर्शन के लिए घाटों-छतों से गंगा में नावों-बजड़ों तक लोगो का जनसैलाब उमड़ा रहा। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा शुरू की गई 441 वर्ष पुरानी इस लीला का अपना एक अलग महत्व है। नागनथैया को लेकर काशी में उत्तर वाहिनी गंगा, यमुना में तब्दील हो गईं । यमुना के तट पर श्रीकृष्णअपने सखाओं के साथ कंदुक क्रीड़ा में मग्न होकर खेल का आनंद ले रहे हैं। खेलते-खेलते गेंद यमुना में समा गई। प्रभु श्रीकृष्ण ने कदंब की डाल से यमुना रूपी गंगा में छलांग लगाई तो तुलसी घाट पर लीला देख रहे श्रद्धालुओं की सांसें मानों थम सी गईं। 

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इस दौरान कुछ समय के लिए लोग आश्चर्य से लहरों को निहारने लगे। तभी अचानक नटवर नागर कालिया नाग के फन पर बंसी बजाते हुए नदी के बीचों बीच प्रकट हुए तो सुरसरि का किनारा जय श्री कृष्ण, हर-हर महादेव और डमरूओं की नाद से गूंज उठा। यह दृश्य 441 साल पुरानी श्रीकृष्ण लीला नागनथैया के दौरान रहा। भगवान ने एक बार फिर से प्रदूषण के प्रतीक कालिया के फनों को नाथ दिया। प्रदूषण रूपी फुँफकार से यमुना के प्रवाह और गोकुल-वृंदावन की आबोहवा में जहर घोल रहे कालिया का दर्प भंगकर भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति के संरक्षण का संदेश दिया। इसके साथ ही यह लीला देखने आए लोगों ने भगवान के स्वरूप की आरती उतारी और संपूर्ण लीला क्षेत्र वृंदावन बिहारी लाल की जयकारे से बिना रुके गूंजता रहा।

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