Pepsi और प्रमोद महाजन कभी भी अपना फॉर्म्युला नहीं बताते

By अभिनय आकाश | Oct 31, 2020

जब-जब राजनीति में कूटनीतिक चालें चली जाती हैं तब-तब सफलता पाने वाले को चाणक्य की उपाधी दी जाती है। आज हर राजनीतिक पार्टी के पास अपने अलग-अलग चाणक्य हैं। आज हम आपके सामने जिस राजनेता की कहानी लेकर आए हैं। उनके सामने सच में राजनीतिज्ञ शब्द छोटा पड़ जाता है। वो एक ऐसे राजनेता थे जिनकी सियासी समझ और ईमानदारी ने उनके नाम को भारतीय राजनीति की बुलंदियों तक पहुंचा दिया। उनका नाम था प्रमोद महाजन और लोग उन्हें भारतीय राजनीकि का पहला चाणक्य कहते थे। पेप्सी और प्रमोद महाजन कभी भी अपना फॉर्म्युला नहीं बताते। ये कहा था 2003 के विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीतिक सफलता के बाद बीजेपी के कद्दावर नेता और पार्टी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लक्ष्मण प्रमोद महाजन ने। पॉलिटिकल मैनेजर शब्द गढ़ा गया था तो महाजन के लिए ही और मैनेजमेंट भी सिर्फ राजनीति का नहीं। अर्थनीति के बिना राजनीति नहीं होती, ये अच्छी तरह समझने वाले प्रमोद महाजन के व्यापार जगत में अच्छे खासे संपर्क थे। वाजपेयी के लक्ष्मण और आडवाणी की रथयात्रा के नेपथ्य़ के अहम किरदार। भारतीय जनता पार्टी को बने 40 साल हुए हैं और इनमें से 21 साल प्रमोद महाजन पार्टी के महामंत्री रहे। जब-जब उनके पास पार्टी की पोस्ट नहीं रही तो ज्यादातर समय प्रमोद महाजन सरकार में मंत्री रहे। चाहे डिफेंस मिनिस्ट्ररी रही हो, इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग, वाटर रिसोर्स, आईटी या फिर मिनिस्ट्री ऑफ कम्युनिकेशन। हर मंत्रालय में प्रमोद महाजन ने अपनी छाप छोड़ी। प्रमोद महाजन को कभी सहयोगी दलों को संभालने की जिम्मेदारी दी गई तो कभी चुनाव लड़वाने की। हालांकि महाजन एक बार लोकसभा का चुनाव जीते और ज्यादातर समय राज्यसभा के मेंबर रहे। उन्हें इलेक्शन मैनेजमेंट का मास्टर कहा जाता है। प्रमोद महाजन अच्छे आर्गनाइजर, जबरदस्त कैंपेनर, प्रभावी ओरेटर रहे। बीजेपी द्वारा उनके नेता के लिए अंग्रेजी की एक कहावत चरितार्थ होती है, "आउट ऑफ साइट, आउट ऑफ़ माइंड"। लेकिन आज आपको महाजन की जिंदगी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी आपके साथ साझा करते हैं।

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प्रमोद महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को तेलंगाना के महबूबनगर इलाके में एक देशहस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा की प्रमोद महाजन ने पत्रकारिता की पढाई की थी। 1974 में प्रमोद ने स्कूल टीचर की नौकरी छोड़कर पूरी तरह से संघ का प्रचारक बनने का फैसला किया। कुछ ही समय बाद देश में इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगा दी। प्रमोद को नासिक जेल में डाल दिया गया। जहां से वह 1977 में रिहा हुए। प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र के अंबाजोगाई इलाके में स्थित स्वामी रामानंद तीर्थ कॉलेज में साथ पढ़ते थे। यहीं दोनों में दोस्ती हुई। बाद में प्रमोद की प्रेरणा से गोपीनाथ भी राजनीति में आए। प्रमोद की बहन की शादी गोपीनाथ से हुई। बीजेपी के गठन के बाद संघ ने उन्हें पार्टी के काम के लिए भेज दिया। वह महाराष्ट्र में बीजेपी के महासचिव बनाए गए। इस पद पर वह 1985 तक रहे। 1983 में ही उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव भी बनाया गया। 1984 की इंदिरा सहानुभूति लहर के दौरान प्रमोद पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े। प्रमोद महाजन 1986 में पहली बार संसद पहुंचे। बतौर राज्यसभा सांसद तब से लेकर मृत्यु तक वह राज्यसभा सांसद ही रहे सिर्फ दो साल को छोड़कर जब वह लोकसभा में थे। लोकसभा चुनाव वह सिर्फ एक बार जीते। अटल बिहारी वाजपेयी की पहली 13 दिनी सरकार में प्रमोद महाजन ने बतौर रक्षा मंत्री शपथ ली थी। 

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प्रमोद महाजन के रणनीतिक कौशल ने अपना आखिरी उत्कर्ष देखा दिसंबर 2003 में चार राज्यों (दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान) में हुए विधानसभा चुनावों में। महाजन का जोर था कि पार्टी परंपरागत हिंदुत्व की लाइन के बजाय विकास के मुद्दों पर आक्रामक हो वोट मांगे। दिल्ली को छोड़कर बाकी राज्यों में बीजेपी जबरदस्त जीत दर्ज कर सत्ता में आई। 2004 के लोकसभा चुनावों की रणनीति का जिम्मा प्रमोद महाजन को दिया गया। फील गुड और इंडिया शाइनिंग के नारे अस्तित्व में आए। मगर पार्टी इन सबके बावजूद लोकसभा चुनाव हार गई। महाजन ने व्यक्तिगत तौर पर हार की जिम्मेदारी ली। 22 अप्रैल 2006 को प्रमोद महाजन अपने मुंबई स्थित अपार्टमेंट में परिवार के साथ थे। तभी उनके छोटे भाई प्रवीण महाजन वहां आए। उन्होंने अपनी पिस्टल से प्रमोद पर चार गोलियां दागीं। पहली गोली प्रमोद को नहीं लगी। मगर बाकी तीन प्रमोद के लीवर और पैनक्रिअस में जा धंसी। उन्हें हिंदुजा अस्पताल ले जाया गया। 13 दिन के संघर्ष के बाद दिल का दौरा पड़ने से 3 मई 2006 को प्रमोद का निधन हो गया। 

यह महाजन ही थे, जो 1995 में शुरू हुए शिवसेना-भाजपा गठबंधन के पीछे मास्टरमाइंड थे। उन्होंने यह गठबंधन सुनिश्चित किया कि इसने कई राजनीतिक तूफानों का सामना किया। एक रिपोर्ट के अनुसार वह भाजपा में एकमात्र व्यक्ति थे जिस पर बाल ठाकरे ने भरोसा किया था।

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प्रमोद महाजन के आफिस में एक नोटिस चिपका था जिसमें लिखा था कि कार्यकर्ता कभी भी आए और रिश्तेदार समय लेकर आएं। 13 दिन के कार्यकाल के बाद जब अटल जी के नाम के आगे पूर्व प्रधानमंत्री लग गया, तब वे 7, सफदरजंग रोड में शिफ्ट हो गए। फिर 1998 में दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद जब वे 7, RCR में गए, तब उनके सफदरजंग रोड के बंगले को प्रमोद महाजन को अलाट किया गया। जिसमें वर्तमान में पार्टी के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी रह रहे हैं। 

आडवाणी की पैदल यात्रा को दिया रथ का रुप

अयोध्या आंदोलन के वक्त महाजन आडवाणी के सारथी बने। रामरथयात्रा उन्हीं के दिमाग की उपज थी। आडवाणी तो जनता पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर की तर्ज पर पदयात्रा करना चाहते थे। प्रमोद बोले, मेटाडोर पर सवार होइए, ज्यादा जगहों तक पहुंचेंगे। 30 अक्टूबर से मंदिर निर्माण चालू होगा। इस तारीख से पहले आडवाणी अपनी यात्रा पूरी कर लेना चाहते थे। जून 1990 में उन्होंने प्रमोद महाजन और गुरुमूर्ति की मदद से रूट तय किया। यहीं पर आडवाणी को महाजन ने अहम सलाह दी। आडवाणी अपने कई अहम राजनीतिक फैसलों की चर्चा पत्नी कमला से करते थे। एक शाम दोनों बैठे थे। तब चाय पर चर्चा करते हुए आडवाणी बोले, मैं राममंदिर निर्माण के लिए पदयात्रा निकालने की सोच रहा हूं। तभी प्रमोद महाजन भी वहां पहुंच गए। आडवाणी ने उन्हें भी इस विचार की सूचना दी। बोले, दीन दयाल उपाध्याय की जयंती 25 सितंबर या फिर गांधी जयंती 2 अक्टूबर के दिन यात्रा शुरू की जा सकती है। ये 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचे, ऐसा विचार है। महाजन ने विचार का समर्थन किया, मगर यह भी जोड़ा कि पदयात्रा में ज्यादा इलाके कवर नहीं होंगे। मीडिया कवरेज भी सीमित रहेगी। इसलिए आप गाड़ी पर सवार हों. फिर महाजन ने मेटाडोर कस्टमाइज करवाई। उसे रथ का रूप दिया और नाम भी रखा- रामरथ यात्रा। उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो इतिहास है। 

लोकसभा में एक से बढ़कर एक धुरंधर हुए 

गुजरात सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए कांग्रेस, सीपीएम, मायावती और फारूक अब्दुल्ला की बारी-बारी से खबर ली थी। 

विपक्षी पार्टियां रखती थी नजर

प्रमोद महाजन का एक दौर वो भी आया कि विपक्षी पार्टियां उन पर अलग से नजर रखती थीं, ऐसा लगने लगा था कि अटल आडवाणी की जोड़ी को एक कम उम्र का व्यक्ति रणनीति बता रहा है और जो कामयाब भी साबित होने लगी हैं।  ऐसे में एक मुहावरा काफी चलने लगा था, ‘पेप्सी और प्रमोद महाजन कभी अपना फॉर्मूला नहीं बताते’, जब वो संसदीय कार्यमंत्री बने तो विपक्षी पार्टियों की मुश्किलें और भी बढ़ गई थीं।  फ्लोर पर महाजन की रणनीति मुश्किलों बिलों को पास करने के लिए क्या होगी, इस पर मीडिया एंकर तमाम दिग्गज विश्लेषकों के साथ स्टूडियो में बैठकर महाजन के चक्रव्यूह को भेदने के लिए मंथन करते थे। 

मंच पर तीन PM मौजूद

संसदीय स्वात के कार्यक्रम में प्रमोद महाजन के कहा था कि मंच पर तीन पीएम मौजूद हैं। एक देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, दूसरे प्रमोद महाजन (पीएम) और तीसरे पीएम सईद जो कि उस वक्त लक्ष्यद्वीप से सांसद और लोकसभा के उपाध्यक्ष भी थे। ऐसी वाकपटुता और अपने आप में बोल्ड अंदाज प्रमोद महाजन में ही था। 

मास्टर रणनीतिकार और डिजिटल के अनुकूल

अटल बिहारी की दत्तक पुत्री नमिता और दामाद रंजन भट्टाचार्य से महजान के रिश्ते प्रगाढ़ हुए। उन्हीं की तरह वह भी अटल को बाप जी कहने लगे। अटल फिर महाजन को अपना संकटमोचन मानने लगे। एक ऐसी पार्टी जिसमें कई पुराने नेता थे, उसमें महाजन को बीजेपी का टेक्नोक्रेट कहा जाता था। महाजन ने उन लोगों को डिजिटल युग को अपनाने में मदद की। इंडिया टुडे के एक लेख में कहा गया है, ‘विवादों से उनका नाता नहीं था, व्यक्तिगत खामियां उन्हें रोक नहीं कर सकती थी, राजनीतिक विफलताएं उन्हें रोक नहीं सकती हैं और मीडिया के अनुकूल विनम्रता निश्चित रूप से उनका ट्रेडमार्क नहीं है। उन्होंने राजनीति को दिलचस्प बना दिया है और भाजपा को डिजिटल युग के साथ और अधिक सुसंगत बना दिया था।’

2004 के राष्ट्रीय चुनावों में पार्टी की हार के तुरंत बाद महाजन महाराष्ट्र के लिए चुनाव प्रचार में वापस आ गए थे। उन्होंने एक टेक्नोक्रेट के रूप में अपनी छवि को बनाया और डोर-टू-डोर अभियान पर चले गए और उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिस तरह से लोग आज नरेंद्र मोदी के बारे में बोलते हैं। 

उनकी मृत्यु के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, ‘देश ने एक कुशल संगठनकर्ता , वक्ता और अपने युवाओं का एक प्रतिभावान प्रतिनिधि खो दिया।- अभिनय आकाश

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