भारत सेवा प्रधान देश, विश्व की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यता... आचार्य विद्यानंद जी महाराज की शताब्दी समारोह में बोले PM

By अंकित सिंह | Jun 28, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आचार्य विद्यानंद जी महाराज की शताब्दी समारोह में 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि से सम्मानित किया गया। इस दौरान मोदी ने आचार्य विद्यानंद जी महाराज की 100वीं जयंती के अवसर पर उनके शताब्दी समारोह के दौरान डाक टिकट और सिक्के जारी किए। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम सब भारत की अध्यात्म परंपरा के एक महत्वपूर्ण अवसर के साक्षी बन रहे हैं। पूज्य आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज, उनकी जन्म शताब्दी का ये पून्य पर्व...  उनकी अमर प्रेरणाओं से ओत-प्रोत यह कार्यक्रम एक अभूतपूर्व प्रेरक वातावरण का निर्माण हम सबको प्रेरित कर रहा है। मैं आप सभी का अभिनंदन करता हूं। मुझे आने का अवसर देने के लिए आप सब का आभार व्यक्त करता हूं। 

 

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मोदी ने कहा कि आज का ये दिन एक और वजह से बहुत विशेष है। 28 जून यानी, 1987 में आज की तारीख पर ही आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज को आचार्य पद की उपाधि प्राप्त हुई थी। ये सिर्फ एक सम्मान नहीं था, बल्कि जैन परंपरा को विचार, संयम और करूणा से जोड़ने वाली एक पवित्र धारा प्रवाहित हुई। आज जब हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं तब ये तारीख हमें उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाती है।  इस अवसर पर आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज की चरणों में नमन करता हूं। उनका आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, ये प्रार्थना करता हूं।


नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आज इस अवसर पर आपने मुझे 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि देने का जो निर्णय लिया है, मैं खुद को इसके योग्य नहीं समझता हूं। लेकिन हमारा संस्कार है कि हमें सतों से जो कुछ मिलता है उसे प्रसाद समझकर स्वीकार किया जाता है। इसलिए मैं आपके इस प्रसाद को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करता हूं और मैं भारती के चरणों में अर्पित करता हूं। उन्होंने कहा कि भारत विश्व की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यता है। हम हजारों वर्षों से अमर हैं, क्योंकि... हमारे विचार अमर हैं, हमारा चिंतन अमर है, हमारा दर्शन अमर है। और इस दर्शन के स्रोत हैं- हमारे ऋषि-मुनि, महर्षि, संत और आचार्य। आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज, भारत के इसी परंपरा के आधुनिक प्रकाश स्तंभ हैं।

 

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मोदी ने कहा कि आचार्य विद्यानंद जी महाराज कहते थे कि जीवन तभी धर्ममय हो सकता है, जब जीवन स्वयं ही सेवामय बन जाए। उनका ये विचार जैन दर्शन की मूल भावना से जुड़ा हुआ है, ये विचार... भारत की चेतना से जुड़ा हुआ है। भारत सेवा प्रधान देश है, मानवता प्रधान देश है। उन्होंने कहा कि दुनिया में जब हजारों वर्षों तक हिंसा को हिंसा से शांत करने के प्रयास हो रहे थे.... तब भारत ने दुनिया को अहिंसा की शक्ति का बोध कराया। हमने मानवता की सेवा की भावना को सर्वोपरि रखा। सब साथ चलें, हम मिलकर आगे बढ़ें... यही हमारा संकल्प है।


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