By प्रवीण त्रिपाठी | Feb 06, 2020
कवि प्रवीण त्रिपाठी ने कविता 'मधुमासी मौसम जब आता' को सरसी छंद में प्रस्तुत किया है। कवि इस छंद में ऋतु के बदलने की, फूलों के खिलने और कोयल के कूजन की अभिव्यक्ति को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
मधुमासी मौसम जब आता, बदले ऋतु की चाल।
रंगबिरंगे फूल खिल रहे, धरती मालामाल।
भौंरे गुंजन कोकिल कूजन, आती है आवाज।
प्रकृति तान छेड़ें नित नूतन, मधुर बजा कर साज।।
निर्मल जल नदियों में बहता, कमल खिले हर ताल।
नव पल्लव से दमकें पादप,सजा धरा का भाल।
अमराई में अनुपम खुशबू, मादक महुआ फूल।
शीतल सुंदर छटा छा रही, जो खुशियों की मूल।।2
कामदेव के पुष्प बाण से, बौराते मन आज।
मधुमय मन ले रहा हिलोरें, भूला मानव काज।
कठिन साधना चंचल मन को, जूझ रहे हैं लोग।
द्वंद छिड़ा है अब धरती पर, चुने योग या भोग।।3
हर मौसम पर पड़ता भारी, प्यारा है मधुमास।
खुशियाँ दे जाता जन-जन को, ऋतु परिवर्तन खास।
रंग उमंग भरा हर दिल अब, छेड़े मोहक राग।
ढोल-मँजीरों की थापों पर, बिखरें अनुपम फाग।।4
प्रवीण त्रिपाठी