एनकाउंटर नहीं कर सकती पुलिस, सेल्फ डिफेंस का है अधिकार

By अंकित सिंह | Jul 10, 2020

कुख्यात अपराधी एवं कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले का मुख्य आरोपी विकास दुबे शुक्रवार सुबह कानपुर के भौती इलाके में कथित पुलिस एनकाउंटर मे मारा गया। विकास दुबे को कल उज्जैन के महाकाल मंदिर के पास से गिरफ्तार किया गया था। दिन भर उसे मध्य प्रदेश पुलिस अपने पास रखी हुई थी। शाम में उसे उत्तर प्रदेश एसटीएफ के हवाले कर दिया गया। आज कानपुर लाने के क्रम में उसका एनकाउंटर हुआ। इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए जा रहे है। पुलिस की दलील है कि कार एक्सीडेंट के बाद विकास दुबे एसएचओ का हथियार छीन कर भागने की कोशिश कर रहा था जिसके बाद उस पर गोली चलाई गई और उसकी मौत हो गई। विकास दुबे के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद कई राज उसके साथ ही दफन हो गए। पर इस एनकाउंटर के साथ ही उत्तर प्रदेश पुलिस के 8 शहीद जवानों के परिवार वालों को इंसाफ मिला। उन्होंने इस एनकाउंटर को लेकर खुशी भी जताई है। जनता में भी विकास दुबे को लेकर काफी रोष था लेकिन एनकाउंटर के बाद लगभग सभी खुश दिखे। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस किसी एनकाउंटर में इतनी आसानी से इतने कुख्यात अपराधी को मार सकती है? क्या पुलिस किसी अपराधी को अदालत में पेश करने की बजाय एनकाउंटर कर सकती है? यह तमाम ऐसे सवाल है जो विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद एक बार फिर हमारे जहन में उठने लगे है। तो एक बात आपको स्पष्ट कर दें कि रूल ऑफ लॉ में एनकाउंटर की कोई भी जगह नहीं है। पुलिस सेल्फ डिफेंस यानी कि आत्मरक्षा के तहत ही कार्रवाई कर सकती है। जाहिर सी बात है विकास दुबे के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। पुलिस ने आत्मरक्षा के लिए ही उसे एनकाउंटर में मार गिराया। एनकाउंटर और छानबीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ऐतिहासिक फैसला दिया था। कोर्ट ने इस से जुड़ा हुआ एक गाइडलाइंस भी जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ वकील संजय पारीक ने बताया कि सेल्फ डिफेंस में अगर कोई पुलिस गोली चलाने या हथियार चलाने की कार्यवाही करता है तो उसे यह साबित करना होगा कि उसने यह कार्यवाही सेल्फ डिफेंस में की है। कानून की किताब पुलिस को कतई एनकाउंटर का अधिकार नहीं देता है। सेल्फ डिफेंस के तहत आम आदमी भी अपनी जान बचाने के लिए बल का प्रयोग कर सकता है। सीआरपीसी की धारा 46 में यह लिखा गया है कि जब पुलिस किसी आरोपी को गिरफ्तार करते है और उस समय अगर वह आरोपी पुलिस बल पर हमला करता है तो पुलिस जान बचाने के लिए हथियार चला सकती है।

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एनकाउंटर को लेकर एनएचआरसी के तत्कालीन चेयरमैन जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने सिफारिश की थी कि अगर कोई एनकाउंटर होता है तो मामले में धारा 302 के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए। वही सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर मामले में छानबीन पर जोर दिया था और कहा था कि अगर एनकाउंटर के दौरान पुलिस गोली चलाती है या चलानी पड़ती है और उससे मौत होती है तो एफआईआर दर्ज की जाएगी। इसकी छानबीन किसी थाने की पुलिस करेगी या सीआईडी करेगी या अन्य जांच एजेंसी भी कर सकते हैं। आईपीसी हो या फिर सीआरपीसी, कही भी एनकाउंटर के लिए पुलिस को अधिकार नहीं दिया गया है। संविधान में एक आरोपी तब तक दोषी नहीं होता है जब तक उसके अपराध साबित ना हो जाए। ऐसे में उसे एनकाउंटर में मारे जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। इन सब के बीच  हम आपको यह भी बता देते हैं कि यह पहला मामला नहीं है जब उत्तर प्रदेश का मोस्ट वांटेड अपराधी किसी दूसरे राज्य में पकड़ा गया है। इससे पहले माफिया बृजेश सिंह हो या फिर मुन्ना बजरंगी सभी को राज्य के बाहर ही पकड़ा गया है। बाहुबली माफिया से नेता बने बृजेश सिंह 20 साल तक यूपी पुलिस की आंखों में धूल झोंकते रहे। जनवरी 2008 में दिल्ली पुलिस ने उसे पकड़ा था। उसे उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया था।

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इसी तरीके से ही विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में मोस्ट वांटेड मुन्ना बजरंगी की भी तलाश यूपी पुलिस बड़ी ही शिद्दत से कर रही थी। 2009 में दिल्ली पुलिस ने मुंबई के मलाड इलाके से उसे नाटकीय ढंग से गिरफ्तार किया। फजर्लरहमान को भी दिल्ली पुलिस की टीम ने गिरफ्तार किया था। मथुरा के वांटेड शाहून मेवाती ने भी यूपी पुलिस को चकमा देते हुए दिल्ली पुलिस के सामने सरेंडर किया था। बिल्लु दुजाना हो या योगेश डाबरा या फिर अमित कसाना सभी ने यूपी पुलिस को चकमा देने के बाद दिल्ली पुलिस के सामने अपनी गिरफ्तारी दी थी। फिलहाल वर्तमान की स्थिति यह है कि कुख्यात हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे पुलिस एनकाउंटर में मारा गया है। एस एनकाउंटर पर सवाल तो कम उठ रहे है लेकिन यूपी पुलिस के रवैए को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है। फिलहाल उज्जैन से लेकर यूपी तक इस मामले की पूरी तरीके से जांच पड़ताल की जा रही है। अब देखना होगा कि क्या विकास दुबे का मामला यहीं खत्म होता है या फिर खादी से लेकर खाकी तक, जिन लोगों ने भी विकास दुबे को संरक्षण दे रखा था वह बेनकाब होते है।

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