By अभिनय आकाश | Dec 29, 2025
23 दिसंबर को लखनऊ में बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की बैठक हुई। 24 तारीख को यूपी बीजेपी अध्यक्ष पंकज चौधरी की दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई। और बैठक में शामिल विधायकों को 25 की देर शाम अल्टीमेटम जारी कर दिया गया। अब योगी सरकार की इंटेलिजेंस पुलिस पता कर रही है कि ब्राह्मण विधायकों की बाटी चोखा पार्टी के पीछे असली दिमाग किसका था। यहां गौर करने वाली बात है कि परिवार या फिर वर्ग विशेष को लेकर राजनीतिक जुटान को गलत बताया गया। चौधरी ने कहा कि पार्टी के कुछ नेताओं ने एक विशेष भोज का आयोजन किया जिसमें अपने समाज को लेकर चर्चा की। ऐसा कोई भी काम बीजेपी के संवैधानिक परंपराओं के अनुकूल नहीं है। इसके साथ ही दोबारा इस तरह के किसी कदम पर एक्शन तक की धमकी तक दे डाली। पर इसी बैठक को लेकर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से जब सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि इसमें कुछ भी गलत नहीं। मुझे लगता है कि जब विधानसभा का सत्र चलता है तो इसको ब्राह्मण और क्षत्रिय और पिछड़ा और अनुसूचित वर्ग से जोड़ के मत देखा करिए। विधायक एक दूसरे से मिलते रहते हैं।
पूरे आयोजन को एक तरह का शक्ति प्रदर्शन इसलिए भी बताया जा रहा है क्योंकि इसी साल अगस्त के महीने में ठाकुर और कुर्मी विधायकों की कुछ इसी तरीके की जुटान का यह एक रिएक्शन भी था। कुटुंब परिवार के नाम पर ठाकुर विधायकों की पहली बैठक होटल क्लार्क अवध में हुई थी। उस बैठक को एक बर्थडे सेलिब्रेशन के बहाने हुआ जुटान बताया गया। अगर तभी पार्टी हाईकमान की तरफ से इस तरह की कुछ सख्ती दिखाई गई होती तो शायद आज यह नौबत नहीं आती। उस समय भूपेंद्र चौधरी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे। उसके बाद कल्याण सिंह और अवंतीबाई लोधी के नाम पर लोध नेताओं की और फिर जन्मदिन आयोजन के नाम पर कुर्मी नेताओं की जुटान हुई। हाल ही में विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान लखनऊ में कुशीनगर विधायक के सरकारी आवास पर ब्राह्मण नेताओं की बैठक और भोज हुआ।
विधानसभा चुनाव 2027 में है। इससे पहले 2024 में भाजपा को यूपी में बड़ा झटका लगा थ। यह बात सामने आई कि विपक्ष के पीडीए कार्ड के कारण भाजपा से ओबेसी और खासकर कुर्मी वोटर खिसक गए। यही वजह है कि भाजपा में इन जातियों को तवज्जो दी जा रही है। ऐसे गे सवर्णों को लग रहा है कि उनको अहमियत नहीं मिल रही। इसलिए वे अपनी अहमियत दर्ज करवाना चाहते हैं। उधर, विपक्ष को यह एक मौका दिख रहा है। हाल के बिहार चुनाव के नतीजे भी सबके सामने है। विपक्षी नेताओं ने दलित और ओबीसी पर फोकस किया और सवर्णों के खिलाफ बयानबाजी की थी। विपक्ष बिहार से सबक लेते हुए सवर्णों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है। भाजपा के अंदर का घमासान उसे मौका नजर आ रहा है। उधर, भाजपा अभी तक यह समझती रही है कि सवर्ण उसका कोर वोटर है। वह तो उसके साथ रहेगा ही। ऐसे में सवर्णों की बैठको से भाजपा को भी यह खतरा सता रहा है कि यह कोर वोटर चला गया तो और मुश्किल हो सकती है।
राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने आरोप लगाया कि भाजपा हमेशा से जाति और धर्म के आधार पर विभाजनकारी राजनीति करती रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा के लिए ठाकुर विधायकों की बैठक स्वीकार्य है। लेकिन ब्राह्मण विधायकों को सिर्फ चेतावनी दी जाती है। यह एक सच्चाई है कि ब्राह्मण भाजपा विधायकों को सम्मान नहीं मिल रहा है और वे आगामी चुनाव हारने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक ही जाति का वर्चस्व है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के 258 विधायकों में से 84 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से, 59 अनुसूचित जाति (एससी) से, 45 ठाकुर, 42 ब्राह्मण और 28 अन्य उच्च जातियों (वैश्य, कायस्थ, पंजाबी, खत्री) से हैं। राज्य में भाजपा के 79 एमएलसी में से 26 ओबीसी से, 23 ठाकुर, 14 ब्राह्मण, दो अनुसूचित जाति, दो मुस्लिम और 12 अन्य उच्च जातियों से हैं। दिसंबर 2021 में, 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की घोषणा से कुछ सप्ताह पहले, भाजपा ने ब्राह्मण समुदाय को लुभाने के उद्देश्य से पार्टी की रणनीति और कार्यक्रमों को तैयार करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया था। यह समिति जमीनी स्तर से मिली प्रतिक्रिया के बाद गठित की गई थी, जिसमें कहा गया था कि विपक्षी दल यह संदेश देने में "कुछ हद तक सफल" रहे हैं कि भाजपा शासन के तहत राज्य में ब्राह्मणों को "उचित सम्मान और प्रतिनिधित्व" नहीं मिल रहा है।