आज के भारत से भी पुराने फोल्डेड माउंटेन रेंज की कहानी... जिसके लिए अपने ही फैसले पर SC को लेना पड़ा U-टर्न

गर्मी हर साल रिकॉर्ड तोड़ रही है। और इन सबके बीच से बचाने वाली अरावली जो जमीन पर आज खड़ी है लेकिन कागज में उसकी पहचान को छोटा करने की कोशिश चल रही है। यह कहानी सिर्फ पहाड़ों की नहीं है। यह हमारे पानी, हवा, हमारे जानवरों, हमारे खेतों, हमारे शहरों की कहानी बन जाती है।
1912 अंग्रेजों ने फैसला किया कि उनकी राजधानी कोलकाता से दिल्ली आएगी। मशहूर आर्किटेक्ट एडविन रूटियंस दिल्ली पहुंचे। इन्हें यहां पर वायसराय के लिए एक घर बनवाना था। ऐसा घर जो ऊंचाई पर हो जहां से पूरी दिल्ली को नीचे देखा जा सके। तो उनकी नजर एक पहाड़ी पर पड़ी। यह अरावली का हिस्सा थी। बबूल और कीकर का जंगल उस पर था। अब लुटियंस को जमीन चाहिए थी तो हुकुम निकला पहाड़ी काटी गई ढलान समतल की गई और वहां खड़ा हुआ वायसराॉय हाउस जिसे आज हम राष्ट्रपति भवन कहते हैं। यह महज एक इमारत बनने की कहानी नहीं है। यह एक रवायत की शुरुआत थी। रवायत कि जब भी विकास और भूगोल आमने-सामने होंगे, भूगोल को अपनी जगह छोड़नी पड़ेगी। 100 साल पहले फरमान से पहाड़ तोड़े गए थे। आज परिभाषाओं से तोड़ने की कोशिश हो रही है। आज की कहानी भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रंखला अरावली की है जिसे सुप्रीम कोर्ट के एक ताजा फैसले ने नई पहचान दी है। अरावली करीब 700 किलोमीटर लंबी एक पर्वत श्रंखला है जिसकी शुरुआत गुजरात से होती है। फिर यह राजस्थान और हरियाणा से होते हुए दिल्ली के केंद्र तक आती है। लाखों करोड़ों साल पुरानी इस रेंज में वक्त के साथ काफी बदलाव आया। लोगों ने गौर किया होगा कि जमीन के नीचे पानी कम हो रहा है। हवा जो है इतनी दूषित हो गई है कि लोग दिल्ली आने से बच रहे हैं। धूल आंखों में चुभ रही है। गर्मी हर साल रिकॉर्ड तोड़ रही है। और इन सबके बीच से बचाने वाली अरावली जो जमीन पर आज खड़ी है लेकिन कागज में उसकी पहचान को छोटा करने की कोशिश चल रही है। यह कहानी सिर्फ पहाड़ों की नहीं है। यह हमारे पानी, हवा, हमारे जानवरों, हमारे खेतों, हमारे शहरों की कहानी बन जाती है।
अरावली का विवाद शुरू कहां से हुआ
ये विवाद कानूनी परिभाषा से शुरू होता है। सुप्रीम कोर्ट के सामने ये बात आती है कि गुजरात, राजस्थान, हरियाण और दिल्ली में अरावली को लेकर अलग अलग नियम चल रहे हैं। कहीं किसी पहाड़ी को अरावली माना जाता है तो कहीं उस जैसी पहाड़ी को साधारण जमीन कह दिया जाता है। इसी उलझन को खत्म करने के लिए एक समान परिभाषा तय करने की बात उठी। इसके लिए एक समिति बनाई गई जिसने सुझाव दिया कि सिर्फ उन्हीं पहाड़ियों को अरावली माना जाए जो अपने आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंची और जो पहाड़ियां एक तय दूरी के भीतर हो उन्हें ही एक रेंज माना जाए। अब सुनने में यह बात सरल और सीधी लगती है, लेकिन जमीन पर इसका मतलब खतरनाक है। दरअसल अरावली कोई सीधी ऊंची दीवार नहीं है। यह छोटी-छोटी पहाड़ियों, टीले, पथरीले जमीन और जंगलों का फैला हुआ सिस्टम है। जिसे लाखों सालों से हवा और पानी ने घिसकर ऐसा बनाया है।
अरावली है पूरे इलाके की रीढ़
देखने में साधारण लगने वाले ये अरावली असल में पूरे इलाके की रीढ़ है। अरावली बारिश के पानी को यूं ही बह जाने नहीं देती। उसकी जमीन स्पंज की तरह पानी को सोख कर धीरे-धीरे जमीन के नीचे भेजती है। इसी वजह से राजस्थान से लेकर हरियाणा और दिल्ली के कई इलाकों में आज भी जमीन के नीचे पानी बचा हुआ है। अगर अरावली कमजोर होती है तो पानी या तो तेजी से बहकर बाढ़ बनाएगा या जमीन के नीचे जाएगा ही नहीं जिससे सूखा बढ़ जाएगा। यानी एक तरफ बाढ़ और दूसरी तरफ पानी कमी दोनों का रास्ता अरावली के टूटने से खुलता है।
क्या है अरावली
अरावली की चट्टाने एक खास तरह की चट्टान हैं जिन्हें पॉटजाइट कहा जाता है। ये चट्टाने चाहे 50 मीटर की हो या 500 मीटर की इनके काम करने का तरीका एक ही है। अरावली उत्तर भारत की नींव है और ये नींव इतनी मजबूत कैसे बनी ये जानने के लिए हमें इसकी बनावट को समझना होगा जो आज की नहीं अरबों साल पुरानी इंजीनियरिंग है। अगर हम आपसे पूछे कि भारत की सबसे पुरानी पहचान कौन सी है? तो शायद एक जवाब लोग दे दें हिमालय। बचपन से सुना भी है पर्वतराज हिमालय। लेकिन अगर पहाड़ों की दुनिया में रिशेदारी होती तो हिमालय अरावली का पोता होता या उससे भी आगे की जनरेशन का कोई पहाड़ होता। जियोलॉजिस्ट बताते हैं कि अरावली प्रीकैंबियन दौर का है। यानी करीब 2 अरब साल पुरानी पर्वत श्रंखला। सोचिए जिस जमीन पर आज गुड़गांव के शीशे वाले दफ्तर हैं। नोएडा के भी शीशे वाले दफ्तर ही हो गए। अब तो वहां करोड़ों साल पहले ऊंचे पहाड़ हुआ करते थे। लेकिन वक्त की मार और मौसम की रगड़ ने इन्हें घिसकर छोटा कर दिया।
हिंदुस्तानी सिपाहियों और अंग्रेजों के बीच लड़ाई का गवाह
अरावली का इतिहास सिर्फ पत्थरों का इतिहास क्योंकि नहीं है। यह दिल्ली की सत्ता का इतिहास भी है। दिल्ली एक समतल शहर है। यमुना के कछार में बना हुआ। लेकिन कुछ इलाके ऐसे हैं जहां अचानक चढ़ाई आ जाती है। सड़कें ऊपर नीचे होती है और घना जंगल भी दिखता है। 1857 की क्रांति के दौरान दिल्ली में जो बगावत हुई तो उसमें हिंदुस्तानी सिपाहियों और अंग्रेजों के बीच लड़ाई इसी नॉर्थ रीच के आसपास हुई थी। थॉमस कोली अपनी किताब फ्रैक्चर फॉरेस्ट क्वाडजाइट सिटी में लिखते हैं कि 1857 में जब अंग्रेज अपनी जान बचाने के लिए भागे तो उन्होंने अरावली की इन्हीं चट्टानों में पनाह ली।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को पलटा
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने कहा कि अरावली पहाड़ियों की परिभाषा से जुड़े 20 नवंबर के आदेश को फिलहाल स्थगित रखा जाए क्योंकि इसमें कई ऐसे मुद्दे हैं जिनकी और जांच की ज़रूरत है। पीठ ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा को लेकर पहले बनी सभी समितियों की सिफारिशों का आकलन करने के लिए एक नई उच्चस्तरीय समिति गठित करने का प्रस्ताव भी दिया। साथ ही अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से भी कहा है कि वे प्रस्तावित समिति की संरचना समेत इस मामले में अदालत की सहायता करें। अब इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी।
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