By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 07, 2018
कांग्रेस पार्टी के संकटमोचन...
60 साल का राजनितिक ज्ञान...
खुंखार आतंकियों को सुनाई मौत की सजा..
37 दया याचिकाएं खारिज कीं...
चार लोगों को दिया जीवनदान...
ये है भारत के तेरहवें राष्ट्रपति रहै प्रणव कुमार मुखर्जी । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी अपने 60 साल के राजनितिक सफर में अलग-अलग समय पर भारत सरकार के अनेक महत्वपूर्ण मंत्रालयों और पदों पर कार्य कर चुके हैं। भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले वे कांग्रेस की UPA गठबंधन सरकार में केन्द्रीय वित्त मंत्री थे। राष्ट्रपति चुनाव में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के उम्मीदवार थे और उन्होंने उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया और 25 जुलाई 2012 को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली।
जिंदगी का शुरूआती सफर
मुखर्जी का जन्म बीरभूम जिले के मिरती गांव में 11 दिसंबर, 1935 को हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे और 1952 से 1964 के बीच बंगाल विधायी परिषद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि रहे। उनकी मां का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था।
कांग्रेस के साथ शुरू हुई राजनीति
प्रणव मुखर्जी ने सन् 1969 में पहली बार कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा के लिए चुने गए थे और ये थी उनके राजनितिक सफर की शुरूआत और इस शुरूआत के बाद उन्होंने पीछे मुढ़कर नहीं देखा। प्रधानमंत्री पद को छोड़कर सभी पद उनके पास रहे और राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि वे मनमोहन सिंह के स्थान पर अच्छे प्रधानमंत्री सिद्ध होते।
इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र
कहा जाता है कि प्रणब मुखर्जी इंदिरा गाँधी के काफी खास थे। और उन्होंने 1969 इंदिरा गांधी की मदद से ही में राजनीति में प्रवेश किया था । जिसके बाद उन्हें 1973 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल कर लिए गया।
आपातकाल के दौरान झेले ज्यादती करने के आरोप
इंदिरा गाँधी ने जब भारत में आपातकाल 1975-77 की घोषणा कि तब इंदिरा गाँधी के खास माने जाने वाले प्रणव मुखर्जी पर काफी गंभीर आरोप लगे। आपातकाल के दौरान उनपर ज्यादती का आरोप भी लगाया गया। कई मंत्रालयों में काम करने के अनुभव के बाद प्रणब 1982-84 तक देश के वित्त मंत्री रहे। सन 1980 से 1985 तक वे राज्य सभा में सदन के नेता रहे।
जब गर्दिश में गये प्रणब दा के सितारे...
इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब राजीव गांधी की सत्ता आई ये कार्यकाल प्रणव दा को सूट नहीं किया इस काल में उनके सितारे गर्दिश में रहे क्योंकि वो भारत के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन नहीं बन सके क्योंकि पार्टी के लोगों ने राजीव का समर्थन किया। बाद में, उन्होंने अपनी पार्टी- राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस- बनाई, लेकिन राजीव से सुलह के बाद उन्होंने कांग्रेस में वापसी की। बाद में, पी.वी. नरसिंहराव ने योजना
पी.ए. संगमा को हराकर राष्ट्रपति पद हासिल किया
2012 में जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए तब उन्होंने पी.ए. संगमा को आसानी से हराकर राष्ट्रपति पद हासिल किया। उस जीत में उन्होंने निर्वाचक मंडल के 70 फीसदी मत हासिल किए थे। जिसके बाद वो भारत को 13वें राष्ट्रपति बने।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल को हमेशा याद किया जाएगा
प्रणब मुखर्जी की प्रमुख किताबें
प्रणब मुखर्जी ने कई कितावें भी लिखी हैं जिनके प्रमुख हैं मिडटर्म पोल, बियोंड सरवाइवल, ऑफ द ट्रैक- सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस, इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी, तथा चैलेंज बिफोर द नेशन।
जब बढ़ने लगी कांग्रेस से दूरियां
प्रणब मुखर्जी की किताब 'द कोलिशन इयर्स' में कई तरह के खुलासे किए गए है, अपने किताब में अपने आप को राष्ट्रपति बनाए जाने को लेकर भी कुछ ऐसा खुलासा किया है, जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी में कैसा लोकतंत्र है, जहां सभी फैसले सोनिया गांधी ही करती।
उन्होनें महाराष्ट्र के नेता शरद पवार के कांग्रेस छोड़ने का भी कारण बताया और कहा कि शरद पवार ने सोनिया गांधी के खिलाफ विद्रोह किया था और अपनी अलग राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) बनाई थी। यह बात पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हाल ही में लॉन्च हुई अपनी किताब 'द कोएलिशन ईयर्स : 1996-2012' के तीसरे संस्करण में कही है।
प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस के सबसे मेधावी और योग्य नेताओं में गिना जाता है, लेकिन उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया, वे राष्ट्रपति बने और अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जाने की वजह से चर्चा में हैं।