प्रणब का भाषण ऐसा था जैसे कोई छात्र इतिहास का पाठ सुना रहा हो

By डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Jun 09, 2018

प्रणब मुखर्जी के नागपुर भाषण को इतने लोगों ने देखा, सुना और पढ़ा है, जितना उनके राष्ट्रपति पद से दिए गए सभी भाषणों को भी कुल मिलाकर देखा सुना और पढ़ा नहीं होगा। इतनी छपास और दिखास की वासना तो किसी प्रधानमंत्री की भी मुश्किल से ही तृप्त होती है। प्रणब दा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में जाकर क्या बोलेंगे, यह ऐसा ज्वलंत मुद्दा बन गया, जैसे आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरु लाल किले से क्या बोलेंगे ! कांग्रेसी लोग प्रणब दा के संघ शिविर में जाने की तुलना आडवाणीजी के जिन्ना की मजार पर जाने से करने लगे लेकिन इस सारे बतंगड़ में खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।

प्रणब मुखर्जी ने संघ के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला। संघ के स्नातकों के लिए प्रेरणा या मार्गदर्शन का एक वाक्य भी नहीं कहा। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि कथित ‘हिंदू आतंकवादियों’ के किले में वे अचानक कैसे आ गए (हो सकता है कि इसका रहस्य थोड़े दिन बाद अपने आप खुल जाए) ? उनके भाषण और उस अवसर में कोई तारतम्य नहीं था। उन्होंने घिसी-पिटी बातों को दोहराने में करोड़ों टीवी दर्शकों का आधे घंटे से भी ज्यादा समय खराब कर दिया। उन्होंने दिल्ली में 40-45 साल गुजार दिए लेकिन हिंदी नहीं सीखी और अंग्रेजी का उनका उच्चारण भी माशाअल्लाह है। उनसे बेहतर तो किसान नेता देवेगौड़ा थे, जिन्होंने कुछ माह में ही पढ़ने लायक हिंदी सीख ली थी। उनका भाषण ऐसा लगा कि जैसे मैट्रिक का कोई छात्र भारतीय इतिहास की घास काट रहा है। यदि यह भाषण इतना निरर्थक नहीं होता तो कांग्रेसी बहुत नाराज हो जाते। अब वे चुप हैं।

 

लेकिन सरसंघ चालक मोहन भागवत का भाषण अद्भुत था। वह किसी अफसर का लिखा हुआ घास का गट्ठर नहीं था। उसमें विचारों की बारीकी, भाषा का सौष्ठव और यत्र-तत्र पांडित्य भी था। उनके भाषण की तुलना में प्रणब दा का भाषण बहुत बेजान और फीका लग रहा था। संघ के इतिहास में इस भाषण का अप्रतिम स्थान रहेगा। यह संघ को सचमुच राष्ट्रीय स्वरुप प्रदान करता है। इसमें उन्होंने प्रत्येक भारतीय को हिंदू कहा और हिंदुत्व को फिर से परिभाषित किया। उन्होंने प्रत्येक भारतीय को भारत-माता का पुत्र कहा। मुझे खुशी है कि मेरी पुस्तक ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’ में मैंने आठ दस साल पहले हिंदुत्व की जो व्याख्या की थी, वह भागवत के भाषण से परिपुष्ट हुई है। यदि संघ के स्वयंसेवक मोहनजी के विचारों को सचमुच आत्मसात कर लें तो उस पर लगा सांप्रदायिकता का आरोप अपने आप रद्द हो जाएगा। प्रणब दा को नागपुर बुलाकर संघ ने कांग्रेस की उल्टे उस्तरे से हजामत कर दी है।

 

- डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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