राहुल के पास अब अनुभव की कमी नहीं, मोदी को जोरदार चुनौती देंगे

By मनोज झा | Nov 23, 2017

राहुल का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय हो गया है। राहुल को ऐसे समय में कांग्रेस की कमान सौंपी जा रही है जब पार्टी सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। सवाल उठता है कि क्या राहुल.. कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगा पाएंगे? क्या 47 साल के राहुल मोदी के करिश्मे के आगे टिक पाएंगे? लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। जहां तक मेरा मानना है राहुल को कांग्रेस की कमान सौंपने का फैसला सही समय पर लिया गया है। अलग-अलग चैनलों पर हुए सर्वे में गुजरात चुनाव के नतीजे में भले ही बीजेपी को जीत मिलती दिख रही है...लेकिन अगर कांग्रेस उसके जीत के अंतर को कम कर देती है तो ये राहुल की बड़ी जीत मानी जाएगी।

मैंने अपने एक लेख में पहले भी कहा था कि अमेरिका दौरे से लौटने के बाद राहुल बिल्कुल नए तेवर में नजर आ रहे हैं। विरोधियों पर कब और कैसे हमला बोलना है ये राहुल ने अब सीख लिया है। गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल की सभा में जुटने वाली भीड़ भले ही पूरी तरह वोट में तब्दील ना हो...लेकिन इतना तो तय है कि लोग अब राहुल को पहले वाला राहुल नहीं समझ रहे। 

 

2004 में अमेठी से सांसद बनकर राजनीति में कदम रखने वाले राहुल 2007 में पार्टी के महासचिव बनाए गए और 2013 में उपाध्यक्ष...राहुल के रहते कांग्रेस को लगातार कई राज्यों में करारी हार मिली...सबसे ज्यादा किरकिरी तब हुई जब यूपी में दो-दो बार उसे मुंह की खानी पड़ी। राहुल के विरोधी उन्हें पप्पू कहकर चिढ़ाने लगे...कोई उन्हें राजनीति में बच्चा बताने लगा..-लेकिन राहुल इन सब बातों से बेखबर अपने काम में लगे रहे।

 

राहुल भले ही लोकप्रियता में मोदी से काफी पीछे हैं...लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि वो कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व संभालने जा रहे हैं। कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव में भले ही 44 सीट हासिल कर सकी लेकिन 2019 के चुनाव में उसे कांग्रेस से ही कड़ी टक्कर मिलने वाली है। कहते हैं हार से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि हार के आगे जीत होती है। हमें लगता है राहुल भी इसी मंत्र को लेकर आगे बढ़ेंगे। गुजरात और हिमाचल के नतीजे कुछ भी हों राहुल को अभी से 2019 के लिए तैयार होना पड़ेगा। नोटबंदी, जीएसटी, रोजगार और किसानों के मुद्दे को लेकर बैकफुट पर आई मोदी सरकार को घेरने के लिए राहुल को अभी से प्लान बनाना होगा। 

 

अभी ये देखना दिलचस्प होगा कि राहुल की नई टीम कैसी होती है...क्या राहुल अपनी टीम में सोनिया के चाटुकारों को जगह देंगे....क्या राहुल उन पुराने नेताओं पर भरोसा करेंगे जिनका जनता में जनादेश नहीं...या फिर राहुल उन युवा चेहरों को आगे करेंगे जो आगे चलकर पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होंगे। राहुल को ये तय करना होगा कि मध्य प्रदेश में बीजेपी को मात देने के लिए किसकी बात सुनी जाए...दिग्विजय सिंह की या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया की...राजस्थान में वसुंधरा राजे को टक्कर देने के लिए पुराने अशोक गहलोत पर भरोसा करें या फिर युवा सचिन पायलट पर....महाराष्ट्र में अगर एनसीपी से नाता तोड़ना है तो राहुल को अभी से वहां अपना नेता खड़ा करना होगा। कांग्रेस बाहरी संजय निरुपम और दूसरे नेताओं को आजमा कर देख चुकी है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कर्नाटक में सिद्धारमैया की कमजोरी का पार्टी का नुकसान ना हो इसके लिए राहुल को वहां भी विकल्प तलाशना होगा। राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यूपी और बिहार में है...राहुल को इन दो राज्यों में उन चेहरों को तलाशना होगा जो संगठन में जान फूंक सकते हों।

 

राहुल को कांग्रेस में उन नेताओं से दूरी बनानी होगी जिनका काम सिर्फ गांधी परिवार का गुणगान करना है...क्योंकि खुद राहुल को भी पता है कि इससे फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है। राहुल को अब ये तय करना होगा कि किसके साथ हाथ मिलाने से फायदा होगा और किसके साथ नुकसान। 2013 में राहुल ने अपनी ही सरकार के सत्ता में रहते जब सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों को बचाने वाले अध्यादेश को रद्दी की टोकरी में फेंकने की बात कही थी तो उनकी काफी तारीफ हुई थी। लेकिन राहुल की तब जमकर आलोचना हुई जब उन्होंने बिहार में लालू के साथ हाथ मिला लिया। कुछ यही हाल यूपी में हुआ...पांच साल तक अखिलेश पर हमला बोलने के बाद ठीक चुनाव के समय राहुल ने उनसे गठबंधन कर लिया...अब अखिलेश को तो डूबना ही था...कांग्रेस को भी करारी हार मिली। लेकिन पुरानी गलतियों से सीखकर ही कोई इंसान महान बनता है। राहुल के पास अब अनुभव की कमी नहीं...बस उन्हें आगे बढ़कर नेतृत्व संभालना है। 

 

राहुल को ये समझना होगा कि 2014 में उनकी पार्टी को इसलिए करारी हार मिली थी क्योंकि लोगों में मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ गुस्सा था...महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर पार्टी अपने नेताओं को बचाने में लगी थी जिसके कारण लोगों का कांग्रेस से मोहभंग हो गया था। लोकतंत्र में किसी सरकार के पास संजीवनी बूटी नहीं...मोदी सरकार भी इसका अपवाद नहीं....अगर राहुल ने समय रहते होमवर्क कर लिया तो फिर कुछ भी हो सकता है।

 

मनोज झा

(लेखक एक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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