इस मंदिर में समाए हैं चारों धाम, विश्राम करने आते हैं स्वयं भगवान विष्णु

By कमल सिंघी | Nov 17, 2017

राजिम। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के समीप राजिम में भगवान विष्णु के चार रूपों को समर्पित भगवान राजीव लोचन के मंदिर में चारों धाम की यात्रा होती है। छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहे जाने वाले राजिम में चारों धाम समाए हुए हैं। त्रिवेणी संगम पर स्थित इस मंदिर के चारों कोनों में भगवान विष्णु के चारों रूप दिखाई देते हैं। भगवान राजीव लोचन का यह मंदिर हर त्योहार पर बदल जाता है। लोक मान्यता के अनुसार जीवनदायिनी नदियां- सोंढूर-पैरी-महानदी संगम पर बसे इस नगर को अर्धकुंभ के नाम से जाना जाता है। माघ पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है, जिसमें देशभर के श्रद्धालु

शामिल होते हैं। राजीव लोचन मंदिर में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है। आठवीं-नौवीं सदी के इस प्राचीन मंदिर में बारह स्तंभ है। इन स्तंभों पर अष्ठभुजा वाली दुर्गा, गंगा, यमुना और भगवान विष्णु के अवतार राम और नर्सिंग भगवान के चित्र अंकित हैं। लोक मान्यता हैं कि इस मंदिर में साक्षात भगवान विष्णु विश्राम के लिए आते हैं।

 

राजिम है आकर्षण का केंद्र

 

सोंढूर-पैरी-महानदी संगम के पूर्व में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है। दक्षिण कोसल के नाम से प्रख्यात क्षेत्र प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं कला की अमूल्य निधि संजोये इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और कलानुरागियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। रायपुर से दक्षिण पूर्व की दिशा में 45 किमी की दूरी पर देवभोग जाने वाली सड़क पर यह स्थित है।

 

श्रद्धा, दर्पण, पर्वस्नान, दान आदि धार्मिक कृत्यों के लिए इसकी सार्वजनिक महत्ता आंचलिक लोगों में पारंपरिक आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास की स्वाभाविक परिणति के रूप में सद्य: प्रवाहमान है। क्षेत्रीय लोग इस संगम को प्रयाग-संगम के समान ही पवित्र मानते हैं। इनका विश्वास है कि यहां स्नान करने मात्र से मनुष्य के समस्त कल्मष नष्ट हो जाते हैं और मृत्युपरांत वह विष्णुलोक प्राप्त करते हैं। यहां का सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि है। पर्वायोजन माघ मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि (कृष्ण पक्ष-त्रयोदशी) तक चलता है। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से सहस्त्रों यात्री संगम स्नान करने और भगवान राजीव लोचन एवं कुलेश्वर महादेव के दर्शन करने आते हैं। क्षेत्रीय लोगों की मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा उस समय तक पूरी नहीं होती, जब तक

राजिम की यात्रा नहीं कर लें।

 

राजिम के देवालय

 

राजिम के देवालय ऐतिहासिक और पुरातात्विक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इन्हें इनकी स्थिति के आधार पर चार भागों में देखा जाता है।

 

-पश्चिमी समूह: कुलेश्वर (9वीं सदी), पंचेश्वर (9वीं सदी) और भूतेश्वर महादेव (14वीं सदी) के मंदिर।

-मध्य समूह: राजीव लोचन (7वीं सदी), वामन, वाराह, नृसिंह बद्रीनाथ, जगन्नाथ, राजेश्वर एवं राजिम तेलिन मंदिर।

-पूर्व समूह: रामचंद्र (8वीं सदी) का मंदिर।

-उत्तरी समूह: सोमेश्वर महादेव का मंदिर।

 

ठहरने की व्यवस्था

 

यहां छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का 6 कमरे का पुन्नी रिसॉर्ट एवं पीडब्ल्यूडी का विश्रामगृह संचालित है। अधिक आरामदायक सुविधा के लिए रायपुर में विभिन्न प्रकार के होटल्स उपलब्ध हैं।

 

आसानी से कैसे पहुंचें

 

वायु मार्ग- रायपुर (45 किमी) निकटतम हवाई अड्डा है और दिल्ली, विशाखापट्टनम एवं चेन्नई से जुड़ा है।

 

रेल मार्ग- रायपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है और यह हावड़ा मुंबई रेलमार्ग पर स्थित है।

 

सड़क मार्ग- राजिम नियमित बस और टैक्सी सेवा से रायपुर तथा महासमुंद से जुड़ा हुआ है।

 

- कमल सिंघी

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