पद्मावती को लेकर छिड़ा राजपूताना युद्ध और गहरा गया है

By संजय तिवारी | Dec 01, 2017

फिल्म पद्मावती को लेकर छिड़ा राजपूताना युद्ध अब और गहरा गया है। बिहार समेत पांच राज्यों में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाए जीने के बीच ही ब्रिटेन के सेंसर बोर्ड ने इसे बिना काट छांट के अपनी मंजूरी दे दी है। इधर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह फिल्म को लेकर किसी प्रकार की राय नहीं दे सकता क्योंकि इससे सेंसर बोर्ड के निर्णय पर असर पड़ेगा। इसी बीच जयपुर के नाहर गढ़ किले पर एक व्यक्ति का शव मिला है जिसे इस फिल्म से ही जोड़ कर देखा जा रहा है क्योंकि पास में ही पत्थरों पर लिखा मिला कि पद्मावती का विरोध करने वालों हम सिर्फ पुतले नहीं जलाते हैं।

इधर इसी मुद्दे पर हरियाणा में भाजपा के मुख्य मीडिया कोऑर्डिनेटर सूरजपाल अम्मू ने अपने पद से इस्तीफ़ा देकर धमकी दी है कि राजपूत बिरादरी अब और अपमान नहीं सहेगी। गुड़गांव से मिली खबर के अनुसार भाजपा नेता अम्मू का कहना है कि दिल्ली में राजपूत करणी सेना और मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बीच मुलाकात होनी थी लेकिन मुलाकात नहीं हो पाई। करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष भवानी सिंह, संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अन्य 22 प्रतिनिधि समय से पहुंच गए लेकिन सीएम पिछले दरवाजे से निकल गए। सीएम के इस तरह चले जाने पर बीजेपी नेता सूरजपाल अम्मू ने कहा कि सीएम ने राजपूत बिरादरी का अपमान किया है और राजपूत बिरादरी इसको सहन नहीं करेगी।

 

नाहरगढ़ में लाश 

 

उधर जयपुर स्थित नाहरगढ़ फोर्ट पर एक शख्स की लाश लटकी मिली। पास में ही पत्थरों पर लिखा मिला कि पद्मावती का विरोध करने वालों हम सिर्फ पुतले नहीं जलाते हैं। घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। कहा कि पद्मावती फिल्म से जुड़ी जो धमकियां पत्थर पर लिखी मिली हैं, वो इसी व्यक्ति से जुड़ी हैं या नहीं, ये कहना मुश्किल है। मृतक का नाम चेतन सैनी (40) बताया जा रहा है, जो शास्त्री नगर इलाके का रहने वाला है। लड़के के पास से मुंबई का एक टिकट भी मिला है।

 

बिहार सहित पांच राज्यों में रोक 

 

इस बीच फिल्म पद्मावती की रिलीज पर बिहार सरकार ने भी रोक लगा दी है। सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि जब तक फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली और विवाद से जुड़े लोग सफाई नहीं देंगे, बिहार में भी फिल्म नहीं चलेगी। बिहार से पहले राजस्थान, यूपी, गुजरात और मध्य प्रदेश सरकारें पद्मावती की रिलीज पर रोक लगा चुकी हैं। नीतीश कुमार ने पद्मावती पर हो रहे विवाद को लेकर रिव्यू मीटिंग की। बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने कहा कि रानी पद्मावती हमारी धरोहर हैं और उन्होंने खिलजी से प्रेम नहीं किया था। सेंसर बोर्ड इस मामले को देखे। हमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।

 

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिपण्णी 

 

इधर सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक व बड़े पदों पर बैठे लोगों द्वारा फिल्म पद्मावती के बारे में की जा रही टिप्पणियों पर सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा है कि जब फिल्म की मंजूरी लंबित है, तो सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के ऐसे बयान अवांछनीय हैं। वे कैसे कह सकते हैं कि सेंसर बोर्ड फिल्म को पास करे या नहीं? यह फिल्म के बारे में धारणा बनाने जैसा है, जिससे सेंसर बोर्ड का निर्णय प्रभावित होगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने विदेश में फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग से जुड़ी याचिका खारिज करते हुए कहा कि अदालत ऐसी फिल्म पर पहले से धारणा नहीं बना सकती, जिसे अभी सीबीएफसी से सर्टिफिकेट तक नहीं मिला है।


राजा रत्नसिंह और सिंहल द्वीप की राजकुमारी की प्रेमगाथा

 

चित्तौड़ के राजा रत्नसिंह और सिंहल द्वीप की राजकुमारी की प्रेमगाथा मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 ईस्वीं में लिखी थी। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज़ी के रानी की सुन्दरता को सुनकर उन पर लट्टू हो जाने का वर्णन भी उन्होंने ही किया है। मज़े की बात कि जायसी खुद अलाउद्दीन खिलज़ी के चित्तौड़ हमले से कोई दो सौ साल बाद पैदा हुए थे। चित्तौड़ पर हमला 1303 में हुआ और जायसी पैदा हुए 1477 में, वह भी वर्तमान उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में स्थित एक गांव जायस में। वे एक प्रेममार्गी सूफी कवि थे, जो ईश्वर को स्त्री रूप में देखते हैं।

 

मसनवी शैली में पद्मावत

 

जायसी ने अपनी इस प्रेमगाथा को फ़ारसी लिपि में लिखा था, इसलिए उनके इस अवधी काव्य को उर्दू के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता था। लेकिन सौ साल पहले आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस काव्य को हिंदी में लाये और हिंदी के पाठ्यक्रम में उसकी स्वीकृति दिलाई। मगर राजस्थान के राजपूतों में रानी पद्मिनी को जौहर करने वाली एक ऐसी स्त्री के रूप में सम्मान दिया जाता है, जो हमलावरों से खुद का सम्मान बचाए रखने के लिए आग की ज्वाला में कूद पड़ी थीं। ज़ाहिर है सुदूर राजस्थान तक जायसी की पद्मावत नहीं पहुंची थी लेकिन रानी पद्मिनी वहां एक अमरगाथा बन चुकी थीं। रानी की यह एक ऐसी अमर गाथा है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। खुद आचार्य शुक्ल ने लिखा है कि मलिक मोहम्मद जायसी का प्रमुख ग्रन्थ पद्मावत है। इसी पद्मावत में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा कही गयी है। यह सूफी काव्य परंपरानुसार मसनवी शैली में 57 खण्डों में लिखा गया है।


त्रिवेणी में पद्मावत का विवेचन 

 

आचार्य शुक्ल अपनी पुस्तक ‘त्रिवेणी’ में पद्मावत के कथानक के दो आधार बताते हैं। उनका कहना है कि ‘पद्मावत की सम्पूर्ण आख्यायिका को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। रत्नसेन की सिंहलद्वीप यात्रा से लेकर पद्मिनी को लेकर चित्तौड़ लौटने तक हम कथा का पूर्वार्द्ध मान सकते हैं और राघव के निकाले जाने से लेकर पद्मिनी के सती होने तक उत्तरार्द्ध। ध्यान देने की बात है कि पूर्वार्द्ध तो बिल्कुल कल्पित कहानी है और उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक आधार पर है।’ (त्रिवेणी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पृ. 22)। शुक्ल जी इसके ऐतिहासिक आधार की और गहरी पड़ताल करते हैं। विक्रम संवत‍् 1331 में लखनसी चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा। वह छोटा था इसलिए उसका चाचा भीमसी (भीम सिंह) ही राज्य करता था। भीमसी का विवाह सिंहल के चौहान राजा हम्मी शक की कन्या पद्मिनी से हुआ था, जो रूप, गुण में जगत में अद्वितीय थी। उसके रूप की ख्याति सुनकर दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की… अलाउद्दीन ने संवत‍् 1346 वि. (सन‍् 1290 ई., पर फ़रिश्ता के अनुसार सन‍् 1303 ई, जो ठीक माना जाता है) में फिर चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की। इसी दूसरी चढ़ाई में राणा अपने ग्यारह पुत्रों सहित मारे गए। जब राणा के ग्यारह पुत्र मारे जा चुके थे और स्वयं राणा के युद्ध क्षेत्र में जाने की बारी आई तब पद्मिनी ने जौहर किया… टॉड ने जो वृत्त दिया है, वह राजपूताने में रक्षित चारणों के इतिहास के आधार पर है। दो-चार ब्योरों को छोड़कर ठीक यही वृत्तांत ‘आईने अकबरी’ में भी दिया हुआ है।

 

जनश्रुति में पद्मिनी 

 

लेकिन जनश्रुति थोड़ी अलग है और उसके अनुसार रानी पद्मिनी, चित्तौड़ की रानी थी। पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है, वे शायद 13वीं 14वीं सदी में हुईं। रानी पद्मिनी के साहस और बलिदान की गौरवगाथा राजस्थान के लोकगाथाओं में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थीं। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थीं। एक बार दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की उस पर बुरी नजर पड़ गई। अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी लेकिन अपनी आन-बान पर आंच नहीं आने दी। अब रानी पद्मिनी विवाद का विषय हैं लेकिन इतना तो तय ही है कि मध्यकाल में स्त्री का अपने सम्मान के लिए जान दे देना उसकी गरिमा को बढ़ाता था। इसलिए रानी पद्मिनी के प्रति लोगों के मन में सम्मान है। संजय लीला भंसाली ने स्वयं अपनी फिल्म का जैसा प्रोमो प्रसारित किया था, उससे यह तो लगता ही था कि तामझाम और चकाचौंध एवं दर्शकों को आकर्षित करने के चलते भंसाली ने रानी के साथ न्याय नहीं किया।

 

संभल में जौहर स्मृति मंदिर

 

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में जौहर स्मृति मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में चितौड़ की रानी पद्मावती का अस्थि‍ कलश भी रखा है। इतिहासकार डॉ. के.के. शर्मा का कहना है कि भारत सरकार के गजेटियर 1965 में भी पवांसा के जौहर का उल्लेख है। इसी से साबित होता है कि वहां रानी और उसके साथ महल में मौजूद महिलाओं ने जौहर किया था। संभल जिले के पंवासा में जौहर स्मृति मंदिर है। यहां 4 अस्थि कलश रखे हैं- रानी पद्मावती, कमलावती, करुणावती। इसके अलावा पवांसा की वीरांगनाओं का एक कलश है, जिसमें रानी पवांरनी और उनके साथ जौहर करने वाली करीब 200 रानियों की अस्थियां शामिल हैं। ग्रामीणों की मानें तो बुलंदशहर, अलीगढ़, बदायूं, मुरादाबाद में कुल 1656 रियासतें थीं, जिसके राजा प्रताप सिंह थे। राजा की छठी पीढ़ी में प्रतापी राजा अनूप सिंह ने राज संभाला। एक बार अनूप सिंह ने श‍िकार के दौरान मुगल बादशाह जहांगीर की शेर से जान बचाई थी। इस पर बादशाह ने उन्हें सिंह दलन की उपाधि से नवाजा। अनूप सिंह की चौथी पीढ़ी में राजा सुरजन सिंह हुए। इन्होंने पवांसा की कच्ची गढ़ी का निर्माण कराया। सुरजन सिंह की 4 संतान हुई, उनमें से एक राजा हेमकरण सिंह के 5 बेटों में से एक कमाल सिंह ने बाद में गद्दी संभाली। इनके बाद इसी वंश के राजा पहुप सिंह और बाद में उनके इकलौते बेटे केसरी सिंह वीर प्रतापी हुए। नवंबर, 1717 में राजा केशरी सिंह के राज्य पर मेवातियों ने आक्रमण कर दिया। केशरी सिंह और उनकी सेना ने मेवातियों का डटकर मुकाबला किया और जीत हासिल की। राजा जब विजयी होकर सेना के साथ मेवातियों के झंडे छीनकर वापस लौटे, तो महल में खड़ी रानी ने समझा कि मेवाती युद्ध में जीत गए हैं और वह महल की ओर आ रहे हैं। यह देखकर रानी सती पवांरनी ने महल में मौजूद करीब 200 वीरांगनाओं के साथ जौहर कर लिया।

 

ऐसे संभल पहुंचा चितौड़ की रानियों का अस्थ‍ि कलश

 

पवांसा के इतिहास को संजोते हुए 20 अक्टूबर 1985 में एक जौहर स्मृति मंदिर का निर्माण कराया गया। इसी मंदिर में रानी पवांरनी और उनके साथ जौहर करने वाली वीरांगनाओं का अस्थि कलश रखा गया। इसके अलावा यहां चित्तौड़ की रानी पद्मावती, कलावती और करुणावती का कलश भी रखा गया है। जौहर स्मृति मंदिर में हर साल 17 नवंबर को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम आयोजित कराने वालों में शामिल अवधेश कुमार का कहना है, इस बार जौहर के 300 साल पूरे होने पर श्रद्धाजंलि कार्यक्रम आयोजित किया गया। जब मंदिर का निर्माण कराया गया, तब चित्तौड़ से राज घराने के उदय सिंह यहां चित्तौड़ से रानी पद्मावती, रानी कमलावती और रानी करुणावती की अस्थियों के कलश लेकर पहुंचे थे। इन कलश में उस स्थान से लाई गई मिट्टी और अस्थियों के अवशेष हैं, जहां रानी पद्मावती ने जौहर किया था। पवांसा गांव के लोग भी पद्मावती का विरोध कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि फिल्म में पद्मावती के बारे में गलत जानकारियां दी गई हैं। उन्होंने संजय लीला भंसाली के ख‍िलाफ देशद्रोह का केस दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग की है।

 

-संजय तिवारी

 

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