रामविलास पासवान को जैसे केंद्र में 'सदा मंत्री' रहने का वरदान मिला हुआ था

By तारकेश कुमार ओझा | Oct 10, 2020

भारतीय राजनीति में रामविलास पासवान का उदय किसी चमत्कार की तरह हुआ। 80-90 के दशक के दौरान स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह की प्रचंड लहर में हाजीपुर सीट से वह रिकॉर्ड वोटों से जीते और केंद्र में मंत्री बन गए। यानि जिस पीढ़ी के युवा एक अदद रेलवे की नौकरी में जीवन की सार्थकता ढूंढ़ते थे, तब वे रेल मंत्री बन चुके थे। उन दिनों तब की जनता दल की सरकार बड़ी अस्थिर थी। एक के बाद प्रधानमंत्री बदलते रहे, लेकिन राम विलास पासवान को मानों केंद्र में 'सदा मंत्री' का वरदान प्राप्त था। हालांकि दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि उनसे पहले देश में किसी राजनेता को यह हैसियत हासिल नहीं थी।

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मेरे ख्याल से उनसे पहले यह दर्जा तत्कालीन मध्य प्रदेश और अब छत्तीसगढ़ के विद्याचरण शुक्ला को प्राप्त था । उन्हें भी तकरीबन हर सरकार में मंत्री पद को सुशोभित करते देखा जाता था। बहरहाल अब लौटते हैं राम विलास जी के दौर में। ज्योति बसु देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए और अप्रत्याशित रूप से पहले एचडी देवगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। उस दौर में ऐसे-ऐसे नेता का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर उछलता कि लोग दंग रह जाते। एक बार तामिलनाडु के जी.के. मूपनार का नाम भी इस पद के लिए चर्चा में रहा, हालांकि बात आई-गई हो गई। राम विलास जी का  नाम भी बतौर प्रधानमंत्री गाहे-बगाहे सुना जाता। इसी दौर में 1997 की एक सर्द शाम राम विलास पासवान जी हमारे क्षेत्र मेदिनीपुर के सांसद इंद्रजीत गुप्त के चुनाव प्रचार के लिए मेरे शहर खड़गपुर के  गिरि मैदान आए। रेल मंत्री होने के चलते वे विशेष सेलून से खड़गपुर आए थे। संबोधन के बाद मीडिया ने उनसे सवाल किया कि क्या आप भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं ? इस पर राम विलास पासवान जी का जवाब था कि हमारे यहां तो जिसे प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश होती है, वही पद छोड़ कर भागने लगता है...। दूसरी बार राम विलास जी से मुलाकात नवंबर 2008 को मेरे जिले पश्चिम मेदिनीपुर के शालबनी में हुई।

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पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ वे जिंदल स्टील फैक्ट्री का शिलान्यास करने आए थे। इसी सभा से लौटने के दौरान माओवादियों ने काफिले को लक्ष्य कर बारूदी सुरंग विस्फोट किया था। बहरहाल कार्यक्रम के दौरान उनसे मुखातिब होने का मौका मिला। उन दिनों महाराष्ट्र में पर प्रांतीय और मराठी मानुष का मुद्दा गर्म था। मुद्दा छेड़ने पर राम विलास जी का दो टूक जवाब था कि महाराष्ट्र में कोई यूपीए की सरकार तो है नहीं लिहाजा सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए जिनकी राज्य में सरकार है। स्मृतियों को याद करते हुए बस इतना कहूंगा ... दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि...।


-तारकेश कुमार ओझा

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