सहानुभूति की लहर पर होकर सवार, चिराग लगा सकते हैं LJP की चुनावी नैया पार

chirag paswan

बिहार के पाँच जिलों में दलित वोटर एक बड़े फैक्टर के रूप में काम करते हैं। रामविलास पासवान के निधन से बिहार में जो सहानुभूति की लहर चल रही है उसका फायदा लोक जनशक्ति पार्टी को हो सकता है। क्योंकि चिराग पहले से ही नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा सँभाले हुए हैं।

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन राजनीतिक शून्यता तो पैदा कर ही गया है साथ ही बिहार विधानसभा चुनावों के ऐन मौके पर सभी दलों और गठबंधनों के समीकरण भी गड़बड़ा गये हैं। भारत में जहाँ, चुनावों में सहानुभूति लहर का अकसर लाभ मिलता है, देखना होगा कि लोक जनशक्ति पार्टी की चुनावी संभावनाएँ कितनी बेहतर होती हैं। चिराग पिछले कुछ समय से बिहार की जनता से जिस तरह भावनात्मक लगाव जता रहे थे अब उसको वह और आगे बढ़ा सकते हैं। विरोधी दलों के लिए मुश्किल वाली बात यह होगी कि अब वह ना तो पासवान और ना ही चिराग पर निशाना साध सकते हैं क्योंकि जितना निशाना लोजपा पर साधा जायेगा उसको उतना ही लाभ होगा।

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भाजपा संभल कर कदम बढ़ा रही है। वह बिहार में तो जनता दल युनाइटेड के साथ है लेकिन दिल्ली में लोजपा को अपने साथ रखे हुए है। संभावना यह भी हो सकती है कि जल्द ही होने वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में चिराग पासवान को स्थान मिल जाये। चिराग पासवान के लिए भी इस बार के विधानसभा चुनाव बड़ी अग्नि परीक्षा हैं क्योंकि एनडीए से बाहर होकर चुनाव लड़ने का फैसला उन्होंने खुद ही लिया था और अब जो भी चुनाव परिणाम होंगे उससे चिराग की राजनीतिक समझ और सूझबूझ का आकलन किया जायेगा। भाजपा के शीर्षस्थ नेता चिराग के साथ इसलिए भी खड़े नजर आ रहे हैं क्योंकि पासवान मोदी सरकार के साथ हमेशा खड़े रहे खासकर तब जब दलितों के मुद्दे सामने आये तो रामविलास पासवान ने सरकार का पक्ष दृढ़ता के साथ सामने रखा।

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देखना यह भी होगा कि क्या चिराग को उनके परिवार के लोग भी अपना नेता स्वीकार करते हैं? यह बात इसलिए उठी है क्योंकि बिहार में सुरक्षित लोकसभा सीटों पर एक तरह से पासवान परिवार का ही कब्जा है। रामविलास पासवान के मंझले भाई क्या अपने भतीजे को नेता स्वीकार करेंगे सबकी नजरें इसी ओर लगी हुई हैं क्योंकि बताया जाता है कि वह उस बैठक में शामिल नहीं हुए थे जिसमें चिराग ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया था। यह भी देखना होगा कि क्या पासवान के जाने के बाद दुसाध वोट चिराग के साथ बने रहते हैं। उल्लेखनीय है कि रामविलास पासवान दशकों तक दुसाधों के सबसे बड़े नेता रहे। चुनाव में दुसाधों की सक्रिय भागीदारी के चलते ही पासवान की राजनीतिक ताकत कभी कमजोर नहीं हुई।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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