काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-40

By विजय कुमार | Feb 02, 2022

सीता के अनुरोध पर, प्रकट हुए हनुमान

मैं राघव का दूत हूं, वे हैं कृपानिधान।

वे हैं कृपानिधान, अंगूठी मैं लाया हूं

राघव का संदेश बताने को आया हूं।

कह ‘प्रशांत’ सीतादेवी का दिल भर आया

बोली, भूल गये क्यों मुझको हे रघुराया।।21।।

-

बजरंगी ने प्रेम से, बतलाई सब बात

कुछ दिन धीरज धारिए, और जानकी मात।

और जानकी मात, लौटकर मैं जाऊंगा

और रामजी को सब बातें बतलाऊंगा।

कह ‘प्रशांत’ वे वानर सेना ले आएंगे

कर रावण का नाश, आपको ले जाएंगे।।22।।

-

मुझमें वह सामथ्र्य है, कर लंका का नाश

संग आपको ले चलूं, राघवेन्द्र के पास।

राघवेन्द्र के पास, नहीं है आज्ञा मुझको

वरना अपना बल दिखलाता माता तुमको।

कह ‘प्रशांत’ यह कहकर रूप विराट दिखाया

क्षण भर में ही फिर छोटा आकार बनाया।।23।।

-

सीताजी को हो गया, अब पूरा विश्वास

अंधकार के दिन कटे, होगा धवल प्रकाश।

होगा धवल प्रकाश, नमन हनुमत फिर कीन्हे

सीताजी ने हृदय खोलकर आशिष दीन्हे।

कह ‘प्रशांत’ राघव की कृपा मिलेगी तुमको

अजर अमर गुण-खानी बनकर जग में चमको।।24।।

-

वृक्ष अनेकों थे वहां, अति सुंदर फलदार

उन्हें देख हनुमान की, जागी भूख अपार।

जागी भूख अपार, मातु से आज्ञा लीन्ही

फल खाये फिर तहस-नहस वाटिका कीन्ही।

कह ‘प्रशांत’ यह देख वहां के रक्षक आये

बजरंगी ने झटक-पटक सब मार गिराये।।25।।

-

भागे जो भी बच गये, रावण के दरबार

व्यथा-कथा सारी कही, कीन्ही करुण पुकार।

कीन्ही करुण पुकार, क्रुद्ध होकर रावण ने

भेजे बड़े-बड़े योद्धा वानर से लड़ने।

कह ‘प्रशांत’ उनका भी हाल वही कर डाला

थोड़े से बच गये, शेष का पिटा दिवाला।।26।।

-

फिर रावण ने पुत्र को, भेजा करने युद्ध

उसे देख हनुमानजी, हुए बहुत ही क्रुद्ध।

हुए बहुत ही क्रुद्ध, पेड़ जड़ सहित उखारा

फिर अक्षय कुमार के सिर पर वह दे मारा।

कह ‘प्रशांत’ उसको सीधे यमलोक पठाया

सुन रावण ने मेघनाद को अब भिजवाया।।27।।

-

मेघनाद रथ पर चला, संग हजारों वीर

बड़े एक से एक थे, लड़ने में रणधीर।

लड़ने में रणधीर, नहीं तुम मार गिराना

बोला रावण, उसे बांध करके ले आना।

कह ‘प्रशांत’ दोनों में भीषण हुई लड़ाई

हनुमत के घूंसे से, उसको मूर्छा आयी।।28।।

-

कुछ ही क्षण में उठ गया, मेघनाद बलवान

बजरंगी की ओर कर, ब्रह्मबाण संधान।

ब्रह्मबाण संधान, ताककर उसने मारा

हनुमत ने भी उसको आदर दिया अपारा।

कह ‘प्रशांत’ रच माया, गिरे पेड़ से नीचे

नागपाश में बांध, ले गया उनको खींचे।।29।।

-

पहुंचे थोड़ी देर में, रावण के दरबार

राक्षस कौतुक देखने, पहुंचे वहां अपार।

पहुंचे वहां अपार, सभा की शोभा ऐसी

देखी पवनपुत्र ने नहीं आज तक जैसी।

कह ‘प्रशांत’ रावण ने खूब क्रोध दिखलाया

कौन दुष्ट तू वानर, क्यों लंका में आया।।30।।


- विजय कुमार

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