कैथोलिक पादरियों की बैठक में तमिलनाडु के जॉर्ज पोन्नैया ने कहा कि केवल ईसा मसीह ही असली भगवान हैं। जो उन्होंने कहा उसके अर्थ साफ हैं और जो नहीं कहा उसके अर्थ भी उसी तरह स्पष्ट हैं जैसे सिक्के का दूसरा पहलू, जैसे दिशा का दूसरा छोर, कि ईसा के अतिरिक्त कोई दूसरा भगवान नहीं। पादरी के इस तरह के दावों से दुख तो हुआ परन्तु आश्चर्य नहीं। ऊंची-ऊंची बातें करने वाले विदेशी मूल के इब्राहिमिक मजहब ऐसा ही दावा करते हैं, कि जो उनके आराध्य हैं वही केवल ईश्वर हैं और बाकी सब शैतान। और जो इनके एकमात्र ईश्वर या पैगंबर को नहीं मानते वे नास्तिक, काफिर या ‘नॉन बिलीवर’ की अपमानजनक संज्ञा पाते हैं। इन्हीं काफिरों या ‘नॉन बिलीवरों’ को अपने तम्बू में लाना, उनका मार्ग बदलना इन सामी पन्थियों का धार्मिक दायित्व माना जाता है। इसी पवित्र कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए कोई मुट्ठी भर चावल लेकर आता है तो दूसरा उसी मुट्ठी में जिहादी तलवार। असल में यहीं से शुरू होता है नस्लीय श्रेष्ठता का अहंकार, काले-गोरे का भेद, धार्मिक टकराव, पन्थिक तनाव जो अन्तत: बढ़ता-बढ़ता आतंकवाद का रूप धर लेता है। अल कायदा, आईएसआईएस और तालिबान वाले भी तो अपने-अपने तरीके से मजहब की ही तो सेवा कर रहे हैं। दुनिया में आज तक जितने युद्ध, आतंकी हमले, दूसरे देशों पर हमले हुए इनमें अधिकतर के पीछे यही विचार ही कारण रहा कि ‘मेरा ईश्वर ही असली ईश्वर, मेरा पैगंबर ही सच्चा पैगंबर, मेरा ग्रन्थ ही इलाही हुक्म, बाकी सब झूठ।’ इन लोगों व विचारों को या तो अपने जैसा बनाओ या मिटा दो, यही सेमेस्टिक मजहब है।
आजकल ऋषि और कृषि की धरती पंजाब में ईसाई पादरी जम कर आत्माओं की फसल काट रहे हैं और नॉन बिलिवरों को प्रभु ईसा मसीह की भेड़ बना कर अपने बाड़े भर रहे हैं। भोले-भाले लोगों को यही पढ़ाया जा रहा है कि ईसा, चर्च और बाइबिल ही श्रेष्ठ बाकी सब बकवास। इसी कारण लोग घरों से गुरुओं व देवी-देवताओं की तस्वीरें उतार कर सूली वाली तस्वीरें टांग रहे हैं। शाहपुरकण्डी इलाके में जुगियाल में एक सिख बच्ची ने ही गुरुद्वारे से कड़ाह प्रसाद लेने से इनकार कर दिया। एक कैंसर रोगी की माँ को पादरी ने चेताया कि जब तक गुरुद्वारे जाते रहोगे तुम्हारा बेटा ठीक नहीं होगा ? सही इलाज करवाना हो तो चर्च आओ, वो ही सच्चे ईश्वर हैं। आखिर यह पादरी पोन्नैया की ही विचारधारा है जो दूसरी आस्था को हीन मानते हुए सामने वाले से उनका वाहेगुरु छीन कर उसके हाथ में क्रॉस थमा रही है।
भारतवर्ष की भौगोलिक सीमाओं पर गत 1200 वर्षों से सेमेटिक पन्थों के सशस्त्र और वैचारिक आक्रमण होते रहे हैं। ‘व्हाइट मेंस बर्डन’ या ‘गजवा-ए-हिन्द’ के आधार पर सेमेटिक पन्थावलम्बियों ने ऐसे आक्रमणों को अपना बाइबल या कुरान प्रदत्त अधिकार माना है। प्रारम्भिक दौर में सेमेटिकों का आक्रमण इतना प्रचण्ड था कि सुकरात, अरस्तू, प्लेटो की बनाई यूनान रोमन सभ्यता समूल रूप से नष्ट हो गई। आज का यूरोप, यूनान-रोम का यूरोप न होकर इन्हीं सेमेटिक पन्थों की शक्ति का आधार है। सम्पूर्ण विश्व को अपनी किताब के अनुसार चलाने, बनाने और ढालने के बलात् संघर्ष की नींव कई शताब्दियों पूर्व रख दी गई थी। आज के बदलते युग में युद्ध की आवश्यकता को सेमेटिक मजहब नकारते नहीं हैं। इसी स्वरूप के स्वीकार और विरोध का संघर्ष सनातन और सेमेटिक का संघर्ष है और भारत भूमि उसका युद्ध क्षेत्र है। सेमेटिक मानवीय प्रकृति में व्याप्त वैविध्य के विरोधी हैं, जिसका भारतीय आध्यात्मिकता जिसमें सनातन, सिख, बौद्ध, जैन व अन्य विचार सम्मान करता है, रक्षा करने का वचन देता है, सेमेटिक अनुयायी उसी वैविध्य के शत्रु हैं। धर्म के लक्षणों की उनकी व्याख्या उनकी किताब तक सीमित है, उनके यहां बोधगम्य और बोधजन्य सत्य का कोई स्थान नहीं है।
श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में सनातन धर्म के तीस लक्षण बतलाए गए हैं। महात्मा विदुर ने धर्म के आठ अंग बताए हैं। इन सबके साथ ‘आचार: प्रथमो धर्म:’ के सूत्र ने इन सभी को आचरण में लाने के नाना प्रकार के उपायों को संस्थागत स्वरूप दिया गया। रोचक बात है कि सनातन धर्म को उक्त व्याख्याओं में बांधा भी नहीं जा सकता, सनातन धर्म इसका इतर भी है। और तो और अनिश्वरवाद को भी भारतीय चिन्तन स्वीकार करता है। धर्म के इन लक्षणों से स्पष्ट है कि समाज के लिए जो कल्याणकारी है, वही धर्म है। इन्हीं मूल्यों के आधार पर व्यक्ति, परिवार, कुटुम्ब, समाज, ग्राम जनपद, राष्ट्र, विश्व और उनमें शिक्षा, न्याय, स्वास्थ्य, व्यापार-वाणिज्य व्यवहार, प्रशासन आदि की रचना हुई।
आज हम सनातन व्यवस्थाओं और सेमेटिक मजहबों को देखते है तो अन्तर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। इसका एक उदाहारण फ्रांसिस बेकन का कथन है, जिसमें उन्होंने कहा है कि प्रकृति स्त्री के समान है जिसकी बांह मरोड़ने से वह सब कुछ बता देती है। यह बल प्रयोग को स्वयं के स्वार्थ पूर्ति करने के अधिकार को ठीक बताती है। इसी कारण से साम्यवाद, पूंजीवाद, ईसाइयत, इस्लाम में मूल रूप से कोई भेद नहीं है। भेद है तो मात्र इतना कि यह बलात् अधिकार आप किस पैगम्बर और किस किताब को आधार मान कर के कर रहे हैं। हमारे यहां किसी ने भी नहीं कहा कि जो मैं मानता हूं केवल वही सत्य है और बाकी सब झूठ। वेद कहते हैं कि ईश्वर एक है और उसको अभिव्यक्त करने के हजारों मार्ग हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब में भी कहा गया है कि- एक नूर ते सब जब उपजिया कौन भले कौ मन्दे। यही कारण है कि हमने किसी पर जबरन अपना विचार या आस्था नहीं थोपी बल्कि उसे अपने अन्त:करण से जोड़ अपने मन को जीतने का मार्ग बताया है। वर्तमान युग लोकतन्त्र का है, इसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जनतन्त्र तो आ चुका परन्तु धर्म के क्षेत्र में भी इसकी नितान्त आवश्यकता है। इब्राहिमिक मजहब चाहें तो भारत की सनातन संस्कृति से धार्मिक लोकतन्त्र का ककहरा सीख सकते हैं।
-राकेश सैन