By संतोष उत्सुक | Apr 18, 2024
अब तो नेता ऐसा चाहिए जो सिर्फ सयाना न हो। नेताओं की शानदार ज़िंदगी में सयानापन, कितनी बार स्यापा डलवा देता है। राजनीति का खेल संभावनाओं का ही नहीं असंभावनाओं का खेला भी है। इसलिए इसमें चूकने वाले नेता नहीं चाहिए। किसी भी स्थिति में, किसी भी कीमत पर, किसी भी मोड़ पर इधर ज़रा सा चूके और उधर कोई और मैदान मार जाता है। ज्यादा सयाने नेता का खेल बिगड़ जाता है। एक बार खेल हार जाओ या जीतते जीतते हार जाओ तो फिर कहां जीता जाता है। राजनीति में घटनाएं बेस्वादी, टेढी, गोल, नोकीली, रंगहीन, अप्रत्याशित और खतरनाक होती हैं।
चुनाव सिर पर हों और नेता सयानेपन पर फ़िदा हों तो दूसरों की गले की फांस बन जाते हैं। कुछ सयाने नेता राजनीति के साथ साथ, सच्ची समाज सेवा करके नाम और पुण्य कमाना चाहते हैं। ऐसे नेता अपना नुकसान तो करते ही हैं, उनके परिवार को भी घाटा होता है। समाज का नुकसान होता है, सच्ची राजनीति का स्तर भी गिरता है और राष्ट्रीय क्षति भी होती है। जय, पराजय में बदल जाती है।
चुनाव छोटा हो या बड़ा, नाराजगी, विरोध, सहयोग, इस्तीफा, घोषणा और पत्रकार सम्मेलन होना ज़रूरी है। गठबंधन से महागठबंधन में शामिल होना या महागठबंधन से लघु गठबंधन या सिर्फ बंधन में आना सयानेपन के हिसाब से नहीं, उचित समय के हिसाब से होना बहुत ज़रूरी है। यह शुद्ध अवसरानुसार होना चाहिए। सिर्फ गुणगान करना ही नहीं, जब चाहे गुणगान करना ही नहीं, शुभ मुहर्त में प्रशंसागीत को भजन में बदल देना भी आना चाहिए। सभी तरह के साज़ बजाना आना भी लाजमी है ।
झुककर प्रणाम करते करते, साष्टांग प्रणाम कर डालना भी राजनीतिक कारीगरी मानी जाती है। दूसरे की पसंद की सस्ती खुशबू लगाकर, प्यार की नकली जफ्फी मारना भी सामयिक और सशक्त अदाकारी का नमूना है। अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं तो मंत्री पद की ऑफर आते आते अचानक कहीं ठहर जाती है। ज़बानी बयानबाजी कई बार जान की बाजी बन जाती है। राजनीतिक पुनर्वास होते होते, आवास भी जाता है. इसे घर के न रहे न घाट के भी कह सकते हैं।
कई बंदों के कमबख्त जन्म नक्षत्र भी काम नहीं होने देते। उनके पांव में चक्कर होता है। एक जगह टिक नहीं पाते। ख़्वाब बड़ी राजनीति करने के देखते हैं। खुद को बहुत सयाना समझते हैं। अलग अलग रंग रूप के गठबन्धनों में शामिल होकर, आपस में झगड़ते रहते हैं और चुनाव भी लड़ते रहते हैं मगर जीतना मुश्किल हो जाता है। तोड़ जोड़ की राजनीति के ज़माने में बाहुबली छवि भी धराशायी हो जाती है। अनेक बार कपडे बदलकर माफी मांगने या माफ़ कर देने से भी बड़े बड़े ख़्वाब पूरे हो जाते हैं। कन्नी काटने से भी बुरे समय की काट तत्काल मिल जाती है और अच्छा समय धूप की तरह निकल आता है।
सयानापन नहीं अब तो सभी तरह की बुनावट के वस्त्र धारण कर सकने वाला, किसी भी शरण में जा सकने वाला सभी का गुण गायक, सबको पिता बनाने वाला, कुछ भी खा सकने वाला, कैसा भी कहने, सुनने और देख सकने वाला, सियार, भैंसे, चूहे, गीदड़ की खाल ओढ़ सकने वाला बहुमुखी प्रतिभा का नेता सफल होता है। यही राजनीतिक सयाना होना होता है।
- संतोष उत्सुक