28 मई का दिन भारतीय इतिहास में एक वीर के जन्मदिवस के रूप में दर्ज है। उस वीर का नाम विनायक दामोदर सावरकर है जिसे वीर सावरकर के नाम से जानते हैं। वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर गांव में हुआ था। वीर सावरकर 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी रहे। विनायक दामोदर सावरकर को बचपन से ही हिंदू शब्द से बेहद लगाव था। वीर सावरकर ने जीवन भर हिंदू हिन्दी और हिंदुस्तान के लिए ही काम किया। वीर सावरकर को 6 बार अखिल भारत हिंदू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। 1937 में उन्हें हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसके बाद 1938 में हिंदू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया।
सावरकर ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया। उनकी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका रही। वह एक क्रांतिकारी और हिंदू राष्ट्रवादी थे, जिन्हें अंग्रेजों ने अंडमान एवं निकोबार द्वीप की सेल्युलर जेल में कैद कर रखा था। उनकी शिक्षा पुणे और लंदन में हुई थी। विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। उनकी इस विचारधारा के कारण आजादी के बाद की सरकारों ने उन्हें वह महत्त्व नहीं दिया जिसके वे वास्तविक हकदार थे। वे न केवल स्वाधीनता−संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, लेखक, कवि, वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वात्रंत्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था। सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण समाज दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है कि सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किंतु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि राष्ट्र को समर्पित होते थे।
वीर सावरकर राजनीतिक चिंतक और स्वतंत्रता सेनानी थे। सावरकर पहले स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे जिसने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। वह भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। 1924 से 1937 का समय इनके जीवन का समाज सुधार को समर्पित काल रहा। वीर−विनायक दामोदर सावरकर, ऐसे महान क्रांतिकारी जिनकी पुस्तकें मुद्रित और प्रकाशित होने से पहले ही जब्त घोषित कर दी जाती थीं। सावरकर पहले कवि थे, जिसने कलम−कागज के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं, वो विश्व के एकमात्र ऐसे शख्स थे, जिन्हें दो जन्मों की काले पानी की सजा एक साथ दी गयी थी। तब उन्होंने जज को बधाई देते हुए कहा कि चलो अच्छा है की आपने हिंदुत्व के पुनर्जन्म को माना। फिर जज ने जब कहा कि मिस्टर सावरकर अब आप मरते दम तक अंदमान की बदनाम सेलुलर जेल में बंद रहेंगे तब पूरे आत्मविश्वास से सावरकर के कहा कि मैं तब तक नही मरूँगा जब तक मेरी मातृभूमि गुलाम है। मैं आजादी का सूरज देखे बिना नहीं मर सकता ..और उनकी ये बात सत्य हुई।
सावरकर ने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उनके विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन किया, ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय बने। सावरकर ने सन् 1905 के बंग−भंग के बाद सन् 1906 में स्वदेशी का नारा दिया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। सावरकर को अपने विचारों की वजह से बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी, ऐसा किसी भारतीय के साथ पहली बार हुआ था। सावरकर पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की थी। सावरकर भारत के एकमात्र ऐसे लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबंधित किया था। सावरकर पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था। सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस के दौरान फहराया गया था। वीर सावरकर एक क्रांतिकारी थे जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने गाँधी हत्या का झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्वतन्त्रता के लिए क्रान्तिकारी अभियान चलाने वाले पहले भारतीय थे वीर−विनायक दामोदर सावरकर। ब्रिटिश न्यायालय के अधिकार को अमान्य करने वाले भारत के पहले विद्रोही नेता थे वीर सावरकर। वे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया तथा बंदी जीवन समाप्त होते ही अस्पृश्यता आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया। उन्हें सितंबर 1966 से तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके कारण उनके स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट आने लगी। तब उन्होंने मृत्युपर्यंत उपवास करने का निर्णय लिया था। 26 फरवरी, 1966 को बम्बई में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
- बाल मुकुन्द ओझा