वैज्ञानिकों ने उजागर की शीथ ब्लाइट के रोगजनक फफूंद की अनुवांशिक विविधता

By उमाशंकर मिश्र | Jun 14, 2019

नई दिल्ली/(इंडिया साइंस वायर): भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की फसल के एक प्रमुख रोगजनक फफूंद राइजोक्टोनिया सोलानी की आक्रामकता से जुड़ी अनुवांशिक विविधता को उजागर किया है। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में कई जीन्स की पहचान की गई है जो राइजोक्टोनिया सोलानी के उपभेदों में रोगजनक विविधता के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अनुवांशिक जानकारी शीथ ब्लाइट रोग प्रतिरोधी चावल की किस्में विकसित करने में मददगार हो सकती है।

 

इस शोध में राइजोक्टोनिया सोलानी के दो भारतीय रूपों बीआरएस11 और बीआरएस13 की अनुवांशिक संरचना का अध्ययन किया गया है और इनके जीन्स की तुलना एजी1-आईए समूह के राइजोक्टोनिया सोलानी फफूंद के जीनोम से की गई है। एजी1-आईए को पौधों के रोगजनक के रूप में जाना जाता है। 

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वैज्ञानिकों ने इन दोनों फफूंदों की अनुवांशिक संरचना में कई एकल-न्यूक्लियोटाइड बहुरूपताओं की पहचान की है तथा इनके जीनोम में सूक्ष्म खंडों के जुड़ने और टूटने का पता लगाया है। शोधकर्ताओं ने इन दोनों फफूंदों में विभिन्न जीन्स अथवा जीन परिवारों के उभरने और उनके विस्तार को दर्ज किया है, जिससे राइजोक्टोनिया सोलानी के भारतीय उपभेदों में तेजी से हो रहे क्रमिक विकास का पता चलता है। 

 

इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ गोपालजी झा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “शीथ ब्लाइट के नियंत्रण के लिए प्राकृतिक स्रोतों के अभाव में इस रोग के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता रखने वाली चावल की किस्मों का विकास कठिन है। हम चावल की फसल और राइजोक्टोनिया सोलानी फफूंद से जुड़ी आणविक जटिलताओं को समझना चाहते हैं ताकि शीथ ब्लाइट बीमारी के नियंत्रण की रणनीति विकसित की जा सके।”

  

राइजोक्टोनिया सोलानी के कारण होने वाली शीथ ब्लाइट बीमारी चावल उत्पादन से जुड़े प्रमुख खतरों में से एक है। इस फफूंद के अलग-अलग रूप विभिन्न कवक समूहों से संबंधित हैं जो चावल समेत अन्य फसलों को नुकसान पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं। चावल की फसल में इस फफूंद को फैलने की अनुकूल परिस्थितियां मिल जाएं तो फसल उत्पादन 60 प्रतिशत तक गिर सकता है। शीथ ब्लाइट पर नियंत्रण का टिकाऊ तरीका न होना दीर्घकालिक चावल उत्पादन और खाद्यान्न सुरक्षा से जुड़ी प्रमुख चुनौती है।

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डॉ झा ने बताया कि “राइजोक्टोनिया सोलानी के जीन्स के अधिक अध्ययन से इस फफूंद की रोगजनक भूमिका को विस्तार से समझने में मदद मिल सकती है। इससे चावल में रोग पैदा करने से संबंधित जीन्स में अनुवांशिक जोड़-तोड़ करके शीथ ब्लाइट प्रतिरोधी चावल की किस्में विकसित करने में मदद मिल सकती है।”   

 

शोधकर्ताओं में डॉ झा के अलावा श्रयान घोष, नीलोफर मिर्जा, पूनम कंवर और कृति त्यागी शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका फंक्शनल ऐंड इंटिग्रेटिव जीनोमिक्स में प्रकाशित किया गया है। 

 

(इंडिया साइंस वायर)

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