शाह का स्पष्टीकरण नहीं है DMK की जीत! BJP की यह है बड़ी रणनीति

By अभिनय आकाश | Sep 19, 2019

भारत में हिंदी के साथ-साथ बहुत सारी भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, सबका अपना समृद्ध इतिहास है, उपलब्धि है, खूबसूरती भी हैं। हिंदी एक ऐसी भाषा है, जिसका विकास बहुभाषी राष्ट्र में सहअस्तित्व की भावना के साथ हुआ है। हिन्दी दिवस का मौका था अमित शाह ने कहा कि पूरे देश कि एक ही भाषा होनी चाहिए। फिर क्या था इसको लेकर राजनीतिक बयानबाजी का दौर शुरू हो गया। वैसे तो दक्षिण के नेता, असदुद्दीन ओवैसी समेत विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने अमित शाह के बयान की निंदा की। लेकिन शाह के बयान को लेकर दक्षिण भारत के राज्यों से तीखी प्रतिक्रियाएं आईं और 20 सितंबर को डीएमके द्वारा प्रदर्शन की बात भी कही गई। इसके बाद स्टालिन ने पार्टी द्वारा आंदोलन की घोषणा करने के दो दिनों बाद पत्रकारों से कहा, ‘‘हम पार्टी के प्रदर्शन की घोषणा के बाद उनके (शाह) स्पष्टीकरण को द्रमुक के लिए बड़ी जीत मानते हैं।’’ हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि अगर हिंदी थोपी जाती है तो द्रमुक हर समय इसका विरोध करेगी। 

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बता दें कि हिंदी पर अपने बयान से उठे विवाद को शांत करने का प्रयास करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने रांची में एक कार्यक्रम में कहा कि उन्होंने देश में कहीं भी हिंदी थोपने की बात कभी नहीं की बल्कि दूसरी भाषा के तौर पर इसके इस्तेमाल की वकालत की। शाह ने कहा कि वह लगातार क्षेत्रीय भाषाओं को मजबूत करने की वकालत कर रहे हैं। शाह का बयान आया और इस पर बयानबाजी का दौर शुरू हो गया। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के एस अलागिरी ने दावा किया कि केंद्र तमिलनाडु में पार्टियों के प्रदर्शन के आह्वान से ‘‘डर’’ गई और इसलिए उसने राज्यपाल के कार्यालय का इस्तेमाल कर कहा कि हिंदी नहीं थोपी जाएगी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसमें कोई शक नहीं है कि यह हमारे गठबंधन की जीत है।’’

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लेकिन खबरों की मानें तो प्रदर्शन वापस लेने से पहले स्टालिन ने राजभवन में तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से मुलाकात की। स्टालिन ने कहा कि पुरोहित ने उनसे कहा कि हिंदी थोपी नहीं जाएगी। द्रमुक अध्यक्ष ने बताया कि जब उन्होंने पुरोहित से पूछा कि क्या केंद्र सरकार इस बारे में कुछ कहेगी, इस पर पुरोहित ने कहा कि वह केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा सरकार ने राज्यपाल से अनुरोध किया था कि वो विरोध वापस लेने के लिए डीएमके को मना लें। इसके पीछे कि वजह 30 सितंबर को पीएम मोदी का आईआईटी मद्रास कार्यक्रम बताया जा रहा है। भाजपा नहीं चाहती कि पीएम मोदी कि यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का विरोध वहां देखने को मिले। इसके साथ ही भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का दूसरा संस्करण मामल्लपुरम में आयोजित किया जा सकता है। जिसके मद्देनजर भी केंद्रीय नेतृत्व ने यह दांव चला जिसे डीएमके अपनी जीत बताकर उत्साहित हो रही है, जबकि भाजपा इसे अपनी रणनीति का हिस्सा मान रही है।