अखिलेश मौका दें तो चाचा शिवपाल सपा को खड़ा करने में मदद को तैयार

By अजय कुमार | Jun 25, 2018

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से कुछ माह पूर्व मुलायम कुनबे में मची कलह−कलेश और बाप−बेटे, चाचा−भतीजे (शिवपाल एवं अखिलेश) के बीच खिंची तलवारों की धार की कीमत समाजवादी पार्टी को विधान सभा चुनाव में बुरी तरह से भुगतनी पड़ी थी। जिस समाजवादी पार्टी के करीब 230 विधायक हुआ करते थे, वह 2017 के विधान सभा चुनाव में 47 पर सिमट गये जिसके चलते सपा के हाथ से यूपी की सत्ता तो गई ही, मुलायम परिवार की साख को भी धक्का लगा। पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई में एक बाप बेटे से तो एक चाचा अपने भतीजे से 'मात' खा गया था। बाप तो बात थे, पुत्र मोह में उन्होंने अखिलेश के खिलाफ बगावती तेवर तो नहीं दिखाए लेकिन समय−समय पर वह अखिलेश को आईना दिखाने से भी नहीं चूके।

 

चाहे कांग्रेस के साथ अखिलेश की चुनावी दोस्ती की बात हो या फिर मुलायम के करीबी नेताओं के साथ अखिलेश का आपत्तिजनक व्यवहार, हर मोर्चे पर मुलायम ने अखिलेश को खूब खरी−खरी सुनाई। चाचा शिवपाल यादव के साथ अखिलेश ने जिस तरह का बर्ताव किया था, उसके लिये भी मुलायम ने अखिलेश को कई बार लताड़ा। परंतु दुनिया का यह दस्तूर है कि उगते हुए सूरत को सब प्रणाम करते हैं, इसी वजह से वह मुलायम जिन्होंने समाजवादी पार्टी को बुलंदियों पर पहुंचाया था, जिनके राजनैतिक पैतरों को बड़े−बड़े नेता नहीं समझ पाते थे वह नेताजी नेपथ्य में चले गये। चाचा शिवपाल यादव को बार−बार अपमानित करने वाले भतीजे अखिलेश ने यह मेहरबानी जरूर की कि उनका टिकट नहीं काटा लेकिन शिवपाल को हराने की कोई कोशिश भी नहीं छोड़ी। यह और बात थी कि शिवपाल यादव चुनाव जीत गये, आज की तारीख में उनकी यही पहचान है कि वह सपा के विधायक हैं।

 

वह शिवपाल यादव जो 'हनुमान' जी की तरह मुलायम के साथ खड़े रहे, जिन्होंने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के दिलों में अपनी अलग पहचान बनाई थी, उनके साथ पार्टी के संबंध में राय−मशविरा करना भी अखिलेश उचित नहीं समझते हैं, यह स्थिति तब है जबकि सपा को विधान सभा के बाद लोकसभा चुनाव में भी बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। इलाहाबाद और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव से पहले तक कोई भी चुनाव नहीं जीत सके अखिलेश आज बीएसपी के पिछलग्गू बन गये हैं। जो समाजवादी पार्टी अपने दम पर सरकार बनाती थी, उसे बैसाखियों का सहारा लेना पड़ रहा है। यह और बात है कि इतना सब होने के बाद भी अखिलेश की खुमारी नहीं उतरी, वह एक के बाद एक गलती करते गये मगर उन्हें किसी ने आईना नहीं दिखाया। लेकिन लगता है एक बार फिर यह जिम्मेदारी हाशिये पर चल रहे शिवपाल यादव ने संभाल ली है, वह संगठन को आगे बढ़ाने के लिये बहुत कुछ करना चाहते हैं। परंतु उनकी मजबूरी यह है कि अखिलेश अभी भी उनसे दूरियां बनाकर चल रहे हैं।

 

इसी वजह से चाचा−भतीजे के बीच का विवाद आम चुनाव से कुछ माह पूर्व एक बार फिर सुर्खियां बटोरने लगा है लेकिन बदले हुए अंदाज में। जिसमें चाचा शिवपाल यादव भतीजे अखिलेश यादव के सामने झुकते हुए दिखाई दिए, उनके तेवर ठंडे पड़ चुके थे। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे शिवपाल सिंह यादव गत दिनों बरेली में एक निजी कार्यक्रम में पधारे थे, जब उनसे मीडिया ने समाजवादी पार्टी की दुर्दशा पर सवाल पूछा तो शिवपाल के दिल का दर्द सामने आ गया। पहले तो उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि फिलहाल तो हम समाजवादी पार्टी में मात्र विधायक ही हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं। परंतु दूसरे ही पल मानो उनको अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव अगर हमें कोई जिम्मेदारी देंगे तो ही संगठन के मामलों में दखल देंगे।

 

शिवपाल ने अपने राजनीतिक भविष्य के बाबत कहा कि समाजवादी पार्टी उनकी अपनी है, इसके ही साथ रहेंगे। प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद हार और अब महागठबंधन के सवाल पर शिवपाल सिंह ने कहा कि फिलहाल सपा और बसपा साथ हैं। कांग्रेस समेत सभी दल मिल जाएं तो भाजपा की हार तय है। उन्होंने भाजपा के कार्यकाल में भ्रष्टाचार को दस गुना बढ़ा हुआ बताया। उन्होंने कहा कि प्रशासन या पुलिस का दारोगा तक भाजपा के माननीयों की नहीं सुनता। ऐसे जनप्रतिनिधि जनता के काम क्या करा पाएंगे। इसके बाद अखिलेश यादव के सरकारी बंगले को खाली कराने और तोड़−फोड़ पर वह अखिलेश के साथ दिखे। उन्होंने कहा कि घर खाली करने में समय दिया जाता है, वो नहीं दिया। रही बात तोड़फोड़ व सामान ले जाने के मामले की तो कोई सरकारी नहीं अपना ही सामान लेकर गए हैं।

 

शिवपाल की बातों से सहज यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि समाजवादी कुनबे में कलह तो फिलहाल थम गई लेकिन अभी शिवपाल सिंह यादव को पार्टी में कोई जिम्मेदारी नहीं मिल सकी है जिसका शिवपाल को मलाल है, लोकसभा चुनाव से पूर्व समाजवादी पार्टी में बदलाव की चर्चा चल रही है, ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि अबकी बार संगठन के बदलाव के समय शिवपाल की किस्मत का ताला भी खुल सकता है। इसे शिवपाल यादव के दबाव की राजनीति मानें या राजनीतिक मैदान में मजबूती से डटे रहने की कोशिश। मकसद चाहे जो भी हो, अखिलेश यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शिवपाल सिंह यादव के निजी दौरे ने सियासी गलियारों में हलचल जरूर पैदा की है। उनके दौरे से पार्टी के अपने दूरी बनाए रहे लेकिन, मुस्लिम हल्कों में उन्हें तरजीह मिली। खासतौर से दरगाह आला हजरत पर न सिर्फ उनकी शहर काजी से मुलाकात हुई बल्कि उन्होंने जानशीन मुफ्ती आजम हिंदू मुफ्ती अख्तर रजा खां अजहरी मियां से अपने लिए दुआ भी कराई। बहरहाल, शिवपाल ने अपने मन की बात कह दी है, अब गेंद अखिलेश के पाले में है, वह ही तय करेंगे कि उनके लिये चाचा शिवपाल की कितनी अहमियत है। अगर भतीजा चाहेगा तो, चाचा शिवपाल यादव अपनी पार्टी के खिवैया बनने को तैयार हैं।

 

-अजय कुमार

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