सिंधिया के सर सजेगा ताज या फिर शिव का रहेगा ''राज''

By अनुराग गुप्ता | Jun 12, 2018

मध्य प्रदेश देश की राजनीति का अहम हिस्सा है। ऐसे में अगर चुनावी साल हो तो राजनीतिक गलियारों में उठा-पटक का शुरू होना तो लाजमी है। यहां पर चुनावी घमासान देश की दो प्रमुख पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के बीच में ही रहता है। चुनावों से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जहां किसानों को साधने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं राज्य की सत्ता को लेकर सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ज्यादा चिंतित नजर नहीं आते हैं क्योंकि उन्हें शिवराज के सत्ता का राज बखूबी पता है। जनप्रतिनिधि के तौर पर शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक करियर तो साल 1990 से शुरू हुआ जब वह बुधनी विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक चुने गए लेकिन उनके विधानसभा करियर की बात की जाए तो उनका करियर साल 2005 में उस वक्त शुरू हुआ जब वह बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त हुए। प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही मानो उनका करियर चमक गया और 29 नवंबर साल 2005 को उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।

यह वह दौर था जब राज्य की जनता दिग्विजय सरकार से काफी आहत थी ऐसे में बीजेपी की फायरब्रांड नेता उमा भारती के नेतृत्व में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। उमा भारती मुख्यमंत्री पद पर कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं। तिरंगा यात्रा से जुड़े एक मामले के चलते उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा और राज्य की कमान बाबूलाल गौर को सौंपी गई। लेकिन, वह प्रशासन चलाने में नाकाम रहे और उन्हें बीच में ही हटाकर शिवराज को लाया गया। साल 2005 से मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज का सफर बदस्तूर जारी है। शिवराज को राज्य की जनता ने मामा का दर्जा दिया हुआ है। 


कांग्रेस ने खेला कमलनाथ पर दांव

 

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से 9 बार के सांसद कमलनाथ पर कांग्रेस हाई कमान ने दांव खेलते हुए राज्य इकाई की कमान सौंप दी। राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस के इस कदम से राज्य में बीजेपी की सीटें कम हो सकती हैं। कमलनाथ जो लगभग राष्ट्रीय मीडिया चैनलों से नदारद रहते थे वो अब अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं। इसी कड़ी पर कमलनाथ ने बीजेपी पर राज्य के मतदाताओं को ठगने तक के आरोप लगा दिए और कहा कि मुख्यमंत्री जी सिर्फ घोषणाएं करने के लिए जाने जाते हैं, न की वादों को पूरा करते हैं। 

 

क्या है ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक ताकत

ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात की जाए तो कांग्रेस ने उन्हें कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया है। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि क्या सिंधिया को कैंपेन का जिम्मा सौंपने से कांग्रेस किसानों के बीच अपनी साख को जमा पाएगी। हालांकि कांग्रेस को हाल ही में एक मौका मिला था जहां पर वह खुद को साबित कर सकते थे, लेकिन उन्होंने यह मौका शिवराज सरकार पर निशाना साधते हुए ही गंवा दिया।

 

 

दरअसल, हम मंदसौर में हुई हिंसा की बात कर रहे थे। मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से महज कांग्रेस के पास 57 सीटें ही हैं। ऐसे में 2013 विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो 12 सीटें ऐसी थीं जिसमें कांग्रेस बीजेपी को टक्कर देते हुए नजर आई और बहुत कम मार्जिन से इन सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। अगर हम गुना सीट की बात करें तो साल 2002 में ज्योतिरादित्य सिंधिया चुने गए थे। इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता चुनाव लड़ा करते थे।