By अभिनय आकाश | Nov 08, 2025
सुप्रीम कोर्ट में एक अहम बहस के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने केंद्र सरकार के रवैया पर नाराजगी जताई। उन्होंने अटर्नी जनरल आर वेंकट रमण से कहा कि क्यों ना आप साफ-साफ कह दें कि यह केस मेरे रिटायरमेंट तक टाल दिया जाए। असल में केंद्र के शीर्ष विधि अधिकारी ने ट्राइबनल रिफॉर्म्स एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चल रही सुनवाई एक बार फिर से टालने की मांग की थी। इससे पहले उन्हें दो बार छूट दी जा चुकी थी ताकि वह अंतरराष्ट्रीय मामलों यानी आर्बिट्रेशन में भाग ले सकें। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने मामले का उल्लेख किया और अटॉर्नी जनरल की ओर से उनकी अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह इस अदालत के प्रति बहुत अनुचित कदम है।
एएसजी ने दलील दी कि अटॉर्नी जनरल की शुक्रवार को एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता सुनवाई निर्धारित है, इसलिए उन्होंने इसमें छूट मांगी है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हमने उन्हें इतने समय तक छूट दी है। हमने उन्हें दो बार छूट दी है। यह अदालत के साथ सही नहीं है।’ आगामी 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे प्रधान न्यायाधीश ने भाटी से कहा कि यदि आप इस पर 24 (नवंबर) के बाद सुनवाई चाहते हैं तो आप हमें स्पष्ट रूप से बताइए।’ एएसजी भाटी ने जब मामले की सुनवाई सोमवार को करने का सुझाव दिया, तो प्रधान न्यायाधीश ने नाराज़ होकर कहा तो फिर हम फ़ैसला कब लिखेंगे? हर रोज़ हमें बताया जाता है कि वह मध्यस्थता में व्यस्त हैं। आखिरी वक़्त में आप मामले को संविधान पीठ को सौंपने की अर्ज़ी लेकर आ जाते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा लगता है कि केंद्र मौजूदा पीठ से बचना चाहता है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इस मामले में कोई अन्य विधि अधिकारी भारत सरकार का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं कर सकता। अंततः पीठ याचिकाकर्ता मद्रास बार एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार को शुक्रवार को सुनने और सोमवार को अटॉर्नी जनरल की दलीलों पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अगर वह नहीं आते हैं, तो हम मामले को बंद कर देंगे।
याचिकाकर्ताओं ने ट्रिब्यनल रिफॉर्म्स एक्ट के उन प्रावधानों को चुनौती दी है जिनमें सभी ट्रिब्यूनल चेयर पर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 4 साल तय किया गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कह चुका है कि कार्यकाल कम से कम 5 साल होना चाहिए। इससे पहले 3 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की यह मांग ठुकरा दी थी। जिसमें इस मामले को पांच जजों की बड़ी पीठ को भेजने की बात कही गई थी। उस समय जस्टिस गवाई की बेंच ने टिप्पणी की थी। हमें उम्मीद नहीं थी कि केंद्र सरकार ऐसी चाल चलेगी। जब हमने याचिकाकर्ताओं की पूरी दलीलें सुन ली हैं तो अब बीच में मामला बड़ी पीठ को भेजना सही नहीं है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर बहस के दौरान कोई बड़ा संवैधानिक सवाल सामने आया तो अदालत खुद उसे संविधान पीठ को भेज सकती है।