By अनन्या मिश्रा | Dec 05, 2025
भारतीय राष्ट्रवादी, दार्शनिक, योगी और कवि श्री अरबिंदो का 05 दिसंबर को निधन हो गया था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। श्री अरबिंदो पहले भारतीय आजादी की लड़ाई में कूद पड़े, लेकिन फिर बाद में वह पांडिचेरी जाकर योग में डूब गए। उन्होंने अपने आश्रम बनाए और दुनिया को भी योग सिखाया। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर श्री अरबिंदों के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में,,,
पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 15 अगस्त 1872 को श्री अरबिदों का जन्म हुआ था। वह एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार से ताल्लुक रखते थे। इनके पिता एक बेहद सफल डॉक्टर थे। ऐसे में उनके पिता ने श्री अरबिंदो को उच्च शिक्षा के लिए 7 साल की उम्र में उनको ब्रिटेन भेज दिया था। वहां पर उन्होंने देश-विदेश का साहित्य पढ़ा और वयस्क होते ही ICS की परीक्षा पास कर ली थी।
बता दें कि युवावस्था में ही श्री अरबिंदो स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए थे। फिर बाद में इनको एक दार्शनिक और योगी के रूप में इनको जाना गया। इनके अनुयायी पूरी दुनिया में हैं। वह हमेशा सादगी पसंद जीवन जीना पसंद करते थे। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अध्यापन का कार्य किया। श्री अरबिंदो फ्रेंच पढ़ाते थे और साथ में युवाओं को देशप्रेम की शिक्षा देते थे। महर्षि अरबिंदो ने वेद और उपनिषदों पर टीका लिखी।
इसके अलावा श्री अरबिंदो का योग और दर्शन पर अधिक जोर रहा। ब्रिटिश सरकार महर्षि अरबिंदो की लोगों तक पहुंच से इतना अधिक डरे हुए थे कि उनको एक मामले में फंसाकर अलीगढ़ जेल में बंद कर दिया गया था। वह करीब सालभर तक श्री अरबिंदो जेल में बंद रहे और वहीं पर उनका रुझान आध्यात्म की ओर हुआ।
वहीं श्री अरबिंदो जेल से छूटने और देश की आजादी के बाद पूरी तरह से आध्यात्म की ओर मुड़ गए। इसके बाद वह पांडिचेरी में दर्शन और योग पढ़ाने लगे और इन्हीं विषयों पर बात करने लगे। माना जाता है कि इसी दौरान श्री अरबिंदो का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था।
जेल से छूटने और आजादी के बाद वे पूरी तरह से आध्यात्म की ओर मुड़ गए. वे पुदुच्चेरी (पांडिचेरी) में योग और दर्शन पढ़ा करते और इन्हीं विषयों पर बात करते. कहा जाता है कि इसी दौरान उनका ईश्वर से साक्षात्कार हुआ।
वहीं 05 दिसंबर 1950 को पांडिचेरी में श्री अरबिंदो का निधन हो गया था।