By Prabhasakshi News Desk | Jan 26, 2025
आज हमारे देश के शीर्ष न्यायालय यानी उच्चतम न्यायालय की स्थापना को पूरे 76 साल पूरे हो गए। सुप्रीम कोर्ट 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के साथ ही अस्तित्व में आया था। इसने फेडरल कोर्ट की जगह ली, जो अंग्रेजों के जमाने से था। पुराने संसद भवन के नरेंद्र मंडल में सुप्रीम कोर्ट का 28 जनवरी 1950 को उद्घाटन हुआ था। फिर साल 1958 में नई दिल्ली के तिलक मार्ग पर सुप्रीम कोर्ट की अपनी बिल्डिंग बनकर तैयार हुई और न्यायालय यहां ट्रांसफर हो गया।
फिलहाल उच्चतम न्यायालय अभी जिस इमारत में है, उसकी डिजाइन बहुत खास है। इस इमारत की बनावट ‘न्याय के तराजू’ के शेप की है। इसमें 27.6 मीटर ऊंचा गुंबद और एक बड़ा बरामदा है। भवन की केंद्रीय विंग तराजू की मुख्य बीम है। सेंट्रल विंग में ही चीफ जस्टिस की कोर्ट है, जो सबसे बड़ी है। सुप्रीम कोर्ट की बिल्डिंग का तीन बार विस्तार किया गया। साल 1979, साल 1994 और फिर 2015 में. 1979 में दो नई विंग- पूर्वी विंग और पश्चिमी विंग जोड़ी गई थी। अभी सुप्रीम कोर्ट की सभी विंग में कुल मिलाकर 19 कोर्ट रूम हैं।
जानिए पहले चीफ जस्टिस के बारे ?
स्वतन्त्र भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हीरालाल जे. कानिया थे। हालांकि, वह करीब दो साल ही कुर्सी पर रह पाए। मुख्य न्यायाधीश रहते हुए ही 6 नवंबर 1951 को उनका निधन हो गया था। जस्टिस कानिया का जन्म साल 1890 में सूरत में हुआ था। उनके दादा ब्रिटिश सरकार में राजस्व अधिकारी थे और पिता जेकिसुनदास, भावनगर रियासत के शामलदास कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते थे। जस्टिस कानिया के बड़े भाई, हीरालाल जेकिसुनदास भी वकील थे। उनके बेटे मधुकर हीरालाल जेकिसुनदास भी 1987 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और फिर चीफ जस्टिस बने।
पहले निर्धारित थी 7 जजों की संख्या ?
जब 1950 में संविधान लागू हुआ तो उसमें सुप्रीम कोर्ट में एक चीफ जस्टिस और 7 जजों का प्रावधान था। साथ ही यह भी कहा गया था कि जरूरत के मुताबिक संसद, संख्या बढ़ा सकती है। 1956 में पहली बार जजों की संख्या बढ़ाकर 11 की गई। फिर 1960 में 14, 1978 में 18, 1986 में 26, 2009 में 31 और 2019 में 34 (वर्तमान संख्या) कर दी गई है।
जजों की सैलरी का प्रावधान
साल 1950 में जब सुप्रीम कोर्ट बना तब चीफ जस्टिस (CJI) की सैलरी 5000 रुपये प्रतिमाह तय की गई और जजों की सैलरी 4000 रुपये महीने। हालांकि इससे पहले ब्रिटिश सरकार फेडरल कोर्ट के चीफ जस्टिस को हर महीने 7000 रुपये तनख्वाह देती थी। जबकि फेडरल कोर्ट के जज को 5500 रुपये मिलते थे। बॉम्बे हाई कोर्ट के एडवोकेट अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब ‘Supreme Whispers’ में लिखते हैं कि नेहरू सरकार ने जो फैसले सबसे पहले लिये उसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों की सैलरी घटाना शामिल था। मुख्य न्यायाधीश हरिलाल जे. कानिया ने इसका विरोध भी किया।
साल 1950 से लेकर 1985 तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या जजों की सैलरी में कोई बदलाव नहीं हुआ। साल 1986 में पहली बार संविधान संशोधन के जरिये जजों की सैलरी में बढ़ोतरी की गई। मुख्य न्यायाधीश की सैलरी 10000 प्रतिमाह तय की गई और जजों की सैलरी 9000 रुपये महीने। इसके बाद 1998, 2009 और 2018 में सैलरी में बढ़ोतरी हुई।