By Ankit Jaiswal | Oct 10, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में मतदाता सूची में हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य में मतदाताओं की संख्या वयस्क आबादी से 107% तक पहुंच चुकी थी, जिससे यह साफ होता है कि वोटर लिस्ट में डुप्लीकेशन और अन्य गड़बड़ियां थीं जिसे सुधारना जरुरी था।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की दो-न्यायाधीशों वाली बेंच ने की। सुनवाई में सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने बताया कि SIR अभियान के बाद बिहार की मतदाता सूची में लगभग 47 लाख मतदाताओं की कमी आई। उन्होंने कहा कि सितंबर 2025 तक राज्य की वयस्क आबादी 8.22 करोड़ थी, जबकि SIR शुरू होने से पहले सूची में 7.89 करोड़ नाम दर्ज थे। अब अंतिम मतदाता सूची में केवल 7.42 करोड़ मतदाता शामिल हैं। यादव ने तर्क दिया कि दुनिया भर में मतदाता सूचियों को पूर्णता, समानता और सटीकता के आधार पर परखा जाता है, और इस कमी के कारण सूची पर सवाल उठता है।
जस्टिस बागची ने साफ किया कि 2014 से 2022 तक बिहार में मतदाताओं की संख्या वयस्क आबादी से अधिक रही, जो 107% तक पहुंच गई थी। उन्होंने कहा कि यह साफ संकेत है कि सूची में गड़बड़ी थीं, जिन्हें हटाना जरूरी था।
योगेंद्र यादव ने माना कि शुरुआती वर्षों में यह समस्या थी, लेकिन 2023 तक यह सुधर गई थी। उनका कहना था कि SIR अभियान अब वैसा “उपाय” बन गया जो मरीज के ठीक होने के बाद दिया गया। उन्होंने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में तीन तरह के बहिष्कार शामिल हैं: सिस्टमेटिक बहिष्कार (समय पर फॉर्म न भरने वालों के नाम हटा दिए गए), संरचनात्मक बहिष्कार (आवश्यक दस्तावेज़ न होने पर आवेदन खारिज) और लक्षित बहिष्कार (नागरिकता जांच के नाम पर नाम हटाना)।
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, वे अब भी अपील कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि सभी जिला स्तर की कानूनी सेवा समितियों को सक्रिय किया जाए। पैरालीगल वॉलंटियर्स और मुफ्त कानूनी सहायता देने वाले वकीलों को गांव-गांव जाकर लोगों की मदद करनी होगी और उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी देनी होगी। इस मामले पर अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।
चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि मुख्य याचिकाकर्ता संगठन ADR ने झूठा दावा किया कि एक व्यक्ति का नाम ड्राफ्ट सूची में था और बाद में हट गया। कोर्ट ने इस पर ध्यान देते हुए कहा कि यह गलत दावा शपथपत्र में करना “झूठी गवाही” के अंतर्गत आता है। जानकारों का कहना है कि यह मामला केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में मतदाता सूची की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए अहम मिसाल बन सकता है