Kajari Teej 2025: शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है तीज का व्रत, यहां जानिए पौराणिक कथा

By अनन्या मिश्रा | Aug 09, 2025

हर साल कजरी तीज का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कजरी तीज पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-सौभाग्य और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना के साथ व्रत करती हैं। इसको बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक इस साल यह व्रत 22 अगस्त 2025 को किया जा रहा है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि यह व्रत कब शुरू हुआ और इसकी पौराणिक कथा क्या है।


क्यों मनाया जाता है यह पर्व

यह पर्व माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन का उत्सव का प्रतीक है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत करती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-आराधना करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस शुभ मौके पर देवी पार्वती ने कठोर तप करने भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने पति रूप में प्राप्त किया था। माना जाता है कि इस व्रत को करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: ज्ञान और शक्ति का संगम: भगवान शंकर ने बताया असली बल का रहस्य


पौराणिक कथा

कजरी तीज व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। भाद्रपद महीने की कजरी तीज आई तो ब्राह्मणी ने कठिन व्रत का पालन किया था। इस दौरान उसने अपने पति से चने का सत्तू लाने के लिए कहा। जिस पर ब्राह्मण ने कहा कि वह सत्तू कहां से लाएं। तो ब्राह्मणी ने अपने पति से कहा कि उसको सत्तू चाहिए फिर चाहे वह कहीं से चोरी या डाका डालकर लाए।


पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए गरीब ब्राह्मण घर से निकलकर एक साहूकार की दुकान गया। जहां से उसने चने की दाल, शक्कर, घी लिया। फिर इन सबका सत्तू बना लिया। वहीं निकलते समय आवाज सुनकर साहूकार के सभी नौकर जग गए और चोर-चोर कहकर चिल्लाने लगे। इतने पर साहूकार भी वहां पर आ पहुंचा और उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया। जिस पर ब्राह्मण ने कहा कि वह चोर नहीं है। उसकी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा है, जिसके कारण वह सिर्फ सवा किलो सत्तू लेने आया था। यह सुनकर साहूकार ने उसकी तलाशी ली। जिस पर ब्राह्मण के पास सत्तू के अलावा कुछ नहीं प्राप्त हुआ।


तभी चांद निकल आया और ब्राह्मणी सत्तू का इंतजार कर रही थी। ब्राह्मण की हालत देखकर साहूकार भावुक हो गया और उससे कहा, आज से वह उसकी पत्नी को अपनी धर्म बहन मानेगा। इसके साथ साहूकार ने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपए, लच्छा, मेहंदी और बहुत सारा धन देकर विदा किया। इस तरह ब्राह्मणी ने अपनी पूजा पूरी की और ब्राह्मण के दिन भी सुखमय हो गए। इस तरह से जो भी इस व्रत को करता है, इस व्रत के प्रभाव से उसके जीवन में सकारात्मक बदलाव होने लगते हैं।

प्रमुख खबरें

Go Nightclub Tragedy: 25 मौतें, अवैध निर्माण और सुरक्षा लापरवाही उजागर

2017 एक्ट्रेस असॉल्ट केस में बरी होने पर दिलीप की पहली प्रतिक्रिया, बोले- “9 साल साथ देने वालों का धन्यवाद”

ब्रिटेन से पाक मूल अपराधियों की वापसी के बदले दो राजनीतिक आलोचकों की मांग का दावा

Trump ने कहा- शांति प्रस्ताव पर ज़ेलेंस्की अभी तैयार नहीं, रूस ने दिखाई सहमति