बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित करना सबसे बड़ा अपराध

By बाल मुकुन्द ओझा | Jun 01, 2017

अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस प्रत्येक वर्ष 1 जून को मनाया जाता है। यह दिवस एक सबसे पुराना अंतर्राष्ट्रीय उत्सव है जो 1950 से मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। बच्चों के अधिकारों को लेकर हम आये दिन चर्चा करते हैं। हर कोई बच्चों पर अपना अधिकार जमाना चाहता है। बच्चों के खेलने कूदने और  शिक्षा से लेकर उसके भरण−पोषण तक हर जगह बच्चों के अधिकारों को अनदेखा किया जाता है। बच्चों के अधिकार क्या हैं और कैसे हो इनकी सुरक्षा इस पर गंभीरता से मंथन की जरूरत है। आवश्यकता इस बात की है कि हम कागजी कार्यवाही और भाषणबाजी से ऊपर उठकर धरातल पर आकर यथार्थ में बच्चों के विकास की योजनाओं को अमली जामा पहनाएं ताकि उनके चेहरे पर मुस्कान आ सके।

भारत में गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीति, बाल विवाह और बाल मजदूरी बचपन के सबसे बड़े दुश्मन हैं। आजादी के 70 साल के बाद भी हम इनसे निजात नहीं पा सके हैं। बच्चे देश का भविष्य हैं यह सुनते सुनते हमारे कान पक चुके हैं मगर देश के कर्णधार आज तक बचपन को सुरक्षित जामा नहीं पहना पाए हैं। इससे अधिक हमारा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। 1959 में बाल अधिकारों की घोषणा को 20 नवंबर 2007 को स्वीकार किया गया। बाल अधिकार के तहत जीवन का अधिकार, पहचान, भोजन, पोषण, स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा, मनोरंजन, नाम, राष्ट्रीयता, परिवार और पारिवारिक पर्यावरण, उपेक्षा से सुरक्षा, बदसलूकी, दुर्व्यवहार, बच्चों का गैर−कानूनी व्यापार आदि शामिल है। बाल अधिकार बाल श्रम और बाल दुर्व्यवहार की खिलाफत करता है जिससे वह अपने बचपन, जीवन और विकास के अधिकार को प्राप्त कर सकें।

 

शिक्षा बच्चों में ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित करती है और प्रगति एवं विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाने का काम करती है। देश में 6 से 12 वर्ष की आयु सीमा के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है। विद्यालयों में दोपहर के भोजन की व्यवस्था भी है। बच्चों के सर्वांगीण विकास को मद्देनजर रखते हुए सबसे पहले बच्चों की शिक्षा पर अपना ध्यान देना होगा। सक्षम व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ाने में अव्वल रहता है। मगर गरीब बच्चे सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा समान स्तर पर मिलनी जरूरी है। देश में गरीबी के कारण भी बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में बेहद पिछड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की 2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के बेहद गरीब 120 करोड़ लोगों में से लगभग एक तिहाई बच्चे हमारे देश के हैं।

 

भारत के संविधान में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखाने आदि में नहीं रखा जाये। कारखाना अधिनियम, बाल श्रम निरोधक कानून आदि में भी बच्चों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की गई है। मगर बच्चे आज भी घरेलू नौकर का कार्य करते हैं। होटलों, कारखानों, सेवा केन्द्रों, दुकानों आदि में सरेआम और सरेराह बच्चों को काम करते देखा जा सकता है। कानून के रखवालों की आंख के नीचे बच्चे काम करते मिल जायेंगे। सरकार ने स्कूलों में बच्चों के लिए शिक्षा, वस्त्र, भोजन आदि की मुफ्त व्यवस्था की है। मगर सरकार के लाख जतन के बाद भी बाल श्रम आज बदस्तूर जारी है। नेशनल सेम्पल सर्वे संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दो तिहाई लोग पोषण के सामान्य मानक से कम खुराक प्राप्त कर रहे हैं। एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुपोषित और कम वजन के बच्चों की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत भाग भारत में है।

 

बच्चों में अपराध और बाल मजदूरी के मामले में भी हमारा देश आगे है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि बाल मजदूरी में अपेक्षाकृत काफी कमी आई है। सरकार ने बाल श्रम रोकने के लिए अनेक कानून बनाये हैं और कड़ी सजा का प्रावधान भी किया है मगर असल में आज भी लाखों बच्चे कल−कारखानों से लेकर विभिन्न स्थानों पर मजदूरी कर रहे हैं। चाय की दुकानों पर, फल−सब्जी से लेकर मोटर गाड़ियों में हवा भरने, होटल, रेस्टोरेंटों में और छोटे−मोटे उद्योग धंधों में बाल मजदूर सामान्य तौर पर देखने को मिल जाते हैं। राजस्थान, एम.पी., यू.पी., हरियाणा, पंजाब सहित विभिन्न प्रदेशों में बिहार और बंगाल के बच्चे मजदूरी करते देखने को मिल जायेंगे। सरकारी प्रयासों से कई बार प्रशासन ने ऐसे बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराकर उनके घरों पर भेजा मगर गरीबी के हालात इनकी प्रगति एवं विकास में अवरोध बने हुए हैं। जितने बच्चे बाल श्रम से मुक्त कराये जाते हैं, उससे अधिक बच्चे फिर बाल मजदूरी में फंस जाते हैं। ये बच्चे गरीबी के कारण स्कूलों का मुंह नहीं देखते और परिवार पोषण के नाम पर मजदूरी में धकेल दिये जाते हैं।

 

बच्चों को पढ़ने लिखने और खेलने कूदने से वंचित करना सबसे बड़ा अपराध है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वह हर जतन करना चाहिये जिससे बच्चे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके। सरकार के साथ साथ समाज का भी यह दायित्व है कि वह बचपन को सुरक्षित रखने का हर प्रयास करे जिससे हमारा देश प्रगति और विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सके। बच्चों का बचपन सुधरेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा। बच्चों के कल्याण की बहुमुखी योजनाओं को धरातली स्तर पर अमलीजामा पहनाकर हम देश के नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं।

 

- बाल मुकुन्द ओझा

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