By संजय सक्सेना | Mar 24, 2022
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन को भले ही उम्मीद के अनुसार सफलता हाथ नहीं लगी हो,लेकिन यह गठबंधन टूटने वाला नहीं है। रालोद ने 2024 का लोकसभा चुनाव भी सपा के साथ लड़ने का ही मन बना रखा है।राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने दो टूक कह दिया है कि वह कि वह कहीं जा नहीं रहे हैं बल्कि वह लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश के साथ गठबंधन का हिस्सा बने रहेंगे और 2024 लोकसभा चुनाव साथ-साथ ही लड़ेंगे।
जयंत चौधरी का बयान उस समय सामने आया है जब बीजेपी की तरफ से लगातार यह भ्रांति फैलाई जा रही है कि रालोद नेता जयंत चौधरी कभी भी भाजपा के साथ आ सकते हैं,उनके लिए पार्टी के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं, लेकिन सवाल यह है कि जैसा जयंत चौधरी सोच रहे हैं,वैसा क्या अखिलेश यादव भी सोच रहे होंगे। बहरहाल,इन तमाम सवालों के जवाब जुलाई में उस समय मिल जाएंगे,जब राज्यसभा का चुनाव होगा। अखिलेश के साथ समस्या यह है कि जयंत चौधरी से गठबंधन करके उन्हें कम फायदा हुआ जयंत को ज्यादा फायदा मिला।दरअसल,हुआ यह कि जहां सपा-रालोद के जाट उम्मीदवार थे वहां तो मुसलमान वोटरों ने उन्हें जिता दिया,लेकिन जिन सीटों पर सपा के मुस्लिम उम्मीदवार थे,उन्हें जाट वोटरों का साथ नहीं मिला। इसी के चलते काफी बड़ी संख्या में सपा के मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीत नहीं सके। इसको लेकर पश्चिमी यूपी के मुस्लिम वोटरों में अच्छी खासी नाराजगी है।
बहरहाल,सपा-रालोद एकजुट होकर चुनाव लड़ेगें इसको लेकर जुलाई में पर्दा हट जाएगा,जुलाई में राज्यसभा के चुनाव होने हैं। यूपी विधानसभा में अपने सदस्यों की संख्या के अनुपात में समाजवादी पार्टी तीन लोगों को पक्के तौर पर राज्यसभा भेज सकती है। कहा जा रहा है कि अगर अखिलेश यादव जयंत चौधरी के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव तक अपना गठबंधन जारी रखना चाहते होंगे तो वह जयंत चौधरी को राज्यसभा भेज दंेगे। 2014 से ही जयंत चौधरी लोकसभा से बाहर चल रहे हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव चौधरी अजित सिंह ने जयंत को बागपत जैसी सुरक्षित सीट पर लड़वाया, तो भी वह जीत नहीं पाए थे। 2022 के यूपी के विधानसभा चुनाव के दौरान कहा जा रहा था कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनने पर जयंत अहम भूमिका में आ सकते हैं। आरएलडी के अंदर तो उनके उप-मुख्यमंत्री बनने तक की बात सुनने को मिलने लगी थी, लेकिन समाजवादी पार्टी बहुमत से दूर रह गई और इसी के साथ गठबंधन की बुनियाद भी हिलती नजर आने लगी है।
वेस्ट यूपी में जयंत चौधरी के जिस दबदबे की बात कही जा रही थी, वह भी नहीं दिखा। पहले दो चरणों के चुनाव वेस्ट यूपी में ही हुए थे और कहा जाने लगा था कि दोनों चरणों में एसपी-आरएलडी गठबंधन को बढ़त मिल गई है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समाजवादी पार्टी के कई नेता इस राय के हैं कि वेस्ट यूपी में जाट-मुसलमान कॉम्बिनेशन के बजाय अखिलेश यादव को गुर्जर-मुसलमान कॉम्बिनेशन आजमाना चाहिए। इसी वजह से सबकी नजर जुलाई महीने पर है। अगर अखिलेश जयंत को राज्यसभा नहीं भेजते हैं तो माना जा सकता है कि वह नए समीकरण आजमाने की सोच रहे हैं।