'The Kashmir Files' की तरह भारत की इन 10 बड़ी घटनाएं पर भी बननी चाहिए इतिहास को आईना दिखाने वाली फिल्में

10 big events
अभिनय आकाश । Mar 24 2022 5:37PM

रूपहले पर्दे पर सच का सामना कराती फिल्में बनाने के लिए भारतीय इतिहास भरा पड़ा है। कई प्रयास भी बॉलीवुड के माध्यम से हुए और विभिन्न मुद्दों पर फिल्में बनाई भी गईं। लेकिन इसके साथ ही मसाला तड़का और काल्पनिक सीन भी क्रिएट किए जाते रहे।

नेशनल अवॉर्ड विनर निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने न केवल भारतीय सिनेमा में एक नया आयाम स्थापित किया, बल्कि विश्व स्तर पर भी कई सारे कीर्तिमान स्थापित किए। 11 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई द कश्मीर फाइल्स ब्लॉकबस्टर साबित हो रही है। फिल्म की कमाई से ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसे लेकर देशभर के लोगों की भावनाएं किस तरह से जुड़ गई है। फिल्म के कमर्सियल कलेक्शन को दरकिनार कर दें तो ये इस बात का भी एहसास कराता है कि लोग सच जानने के लिए कितने तैयार हो चुका हैं। चाहे वो सच कितना भयावह और क्रूर क्यों न हो। रूपहले पर्दे पर सच का सामना कराती फिल्में बनाने के लिए भारतीय इतिहास भरा पड़ा है। कई प्रयास भी  बॉलीवुड के माध्यम से हुए और विभिन्न मुद्दों पर फिल्में बनाई भी गईं। लेकिन इसके साथ ही मसाला तड़का और काल्पनिक सीन भी क्रिएट किए जाते रहे। जिसकी वजहें विवाद से बचना या अन्य कोई भी हो सकती है। ऐसे में आपको बताते हैं भारतीय इतिहास की वो 10 बड़ी घटनाओं के बारे में जिसकी वास्तविक हकीकत को द कश्मीर फाइल्स जैसे प्रयासों की तरह ही पर्दे पर उतारा जा सकता है। 

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2008 कंधमाल हिंसा

अगस्त 2008 में हिंदू भिक्षु लक्ष्मणानंद सारस्वत की हत्या कर दी गई। इसके पीछे ईसाई मिशनरियों और ईसाईयों का हाथ होने की बात कही गई। भारत के उड़ीसा के कंधमाल जिले में ईसाइयों के खिलाफ व्यापक हिंसा हुई। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार हिंसा में कम से कम 39 ईसाई मारे गए और 3906 ईसाई घर पूरी तरह से नष्ट हो गए। 

1987 का हाशिमपुरा नरसंहार

22 मई 1987 को उत्तर प्रदेश के मेरठ के हाशिमपुरा गांव से प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) के जवानों ने 50 मुसलमानों को उठाया। बाद में पीड़ितों ने गोली मारकर शवों को नहर में फेंक दिया। 42 लोगों को मृत घोषित कर दिया। यूपी सरकार ने मामले की सीबी-सीआईडी ​​जांच के आदेश दिए। 31 अक्टूबर 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने पीएसी के 16 पूर्व जवानों को 42 लोगों की हत्या का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है

1998 का चंबा नरसंहार

1998 चंबा नरसंहार हिजबुल मुजाहिदीन द्वारा 3 अगस्त 1998 को भारत में हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में पैंतीस हिंदुओं की हत्या से जुड़ा है। पाकिस्तान से प्रशिक्षित इस्लामिक आतंकवादियों ने उस दिन तड़के जम्मू में डोडा की सीमा से लगे चंबा जिले में 35 हिंदुओं, जिनमें ज्यादातर मजदूर थे की हत्या कर दी और 11 को घायल कर दिया।

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1969 का गुजरात दंगा

सितंबर-अक्टूबर 1969 के दौरान गुजरात में भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगा देखने को मिला। कहा जाता है कि ये हिंसा गुजरात का पहला बड़ा दंगा था जिसमें बड़े पैमाने पर नरसंहार, आगजनी और लूटपाट की घटना दर्ज की गई थी। 1947 में भारत के विभाजन के बाद से यह सबसे घातक हिंदू-मुस्लिम हिंसा थी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 660 लोग मारे गए, 1074 लोग घायल हुए और 48,000 से अधिक लोगों ने अपनी संपत्ति खो दी। गैर-आधिकारिक रिपोर्ट में 2000 मौतों का दावा किया गया है।

भागलपुर दंगा

24 अक्टूबर 1989 को दंगे शुरू हुए और 2 महीने तक हिंसक घटनाएं जारी रहीं, जिससे भागलपुर शहर और उसके आसपास के 250 गांव प्रभावित हुए। हिंसा के परिणामस्वरूप 1,000 से अधिक लोग मारे गए (जिनमें से लगभग 900 मुस्लिम थे), और अन्य 50,000 विस्थापित हो गए। करीब दो महीने तक भागलपुर जिला जलता रहा। यह उस समय स्वतंत्र भारत में हिंदू-मुस्लिम हिंसा का सबसे खराब उदाहरण था।

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1984 का सिख विरोधी दंगा

1984 जिस साल दिल्ली में 2 हजार 733 सिख मार दिए गए। सिर्फ सरकारी आंकड़ों के मुताबिक। जिन आंखों ने 84 का वो मंजर देखा था वो आंखें आज तक गीली हैं। 31 अक्टूबर को तत्तकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो जाती है। इंदिरा गांधी की मौत के बाद लोग सिखों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। सबसे ज्यादा कहर दिल्ली पर बरसा। करीब तीन दिन तक दिल्ली की सड़कों औऱ गलियों पर कत्लेआम होता रहा। सिख जान बचाने के लिए जगह ढूंढ रहे थे। जिन इलाकों में नेताओं का दबदबा सबसे ज्यादा था और जिन बस्तियों में सिख सबसे ज्यादा बसते थे, सबसे ज्यादा मातम वहीं गूंज रहा था। त्रिलोकपुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, नंदनगरी, सागरपुर, कल्याणपुरी, उत्तम नगर, जहांगीरपुरी, तिलकनगर, अजमेरी गेट। दिल्ली के ये वो इलाके थे जहां सबसे ज्यादा कहर टूटा था। घरों से घसीटकर सिखों को मारा गया। जिंदा जलाया गया।

कलकत्ता किलिंग 

साल 1946, देश आजादी पाने के लिए बैचेन था। जिन्ना ने कहा कि अगर समय पर बंगाल का सही फैसला नहीं मिला तो...हमें अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी। भारत से हमें कोई लेना-देना नहीं। हमें तो पाकिस्तान चाहिए, स्वाधीन पाकिस्तान चाहे भारत को स्वाधीनता मिले या न मिले। गोली और बम की आवाज से कांप उठी थी भारत मां की धरती। पूर्वी बंगाल का नोआखाली जिला। मुस्लिम बहुल इस जिले में हिंदुओं का व्यापक कत्लेआम हुआ था। कलकत्ता में 72 घंटों के भीतर 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे। 1 लाख से अधिक बेघर हो गए थे। इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग भी कहा जाता है।

बाबरी विध्वंस

30 बरस पहले उत्तर प्रदेश के अयोध्या में घटी यह घटना इतिहास में प्रमुखता के साथ दर्ज है, जब राम मंदिर की सांकेतिक नींव रखने के लिए उमड़ी भीड़ ने बाबरी मस्जिद ढहा दी थी। इससे देश के दो संप्रदायों के बीच पहले से मौजूद रंजिश की दरार बढ़कर खाई में बदल गई थी। इस घटना के बाद देश के कई इलाकों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें जान और माल का भारी नुकसान हुआ। 6 दिसंबर को मुस्लिम समुदाय काला दिवस के तौर पर मनाता है तो वहीं हिंदू समुदाय के लोग इसे शौर्य दिवस के तौर पर मनाते हैं। 

2013 मुजफ्फरनगर दंगे

अगस्त-सितंबर 2013 में भारत के उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच हुई झड़पों में 42 मुस्लिमों और 20 हिंदुओं सहित कम से कम 62 लोगों की मौत हो गई और 93 घायल हो गए और 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए। 17 सितंबर की तारीख तक सभी दंगा प्रभावित क्षेत्रों से कर्फ्यू हटा लिया गया और सेना को भी वापस ले लिया गया। दंगा को "हाल के इतिहास में उत्तर प्रदेश में सबसे खराब हिंसा" के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सेना को पिछले 20 वर्षों में पहली बार राज्य में तैनात करना पड़ा था। 

गुजरात दंगे

27 फरवरी, 2002 भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की भावना को आग लगा दी थी।  इस दिन हमारे स्वतंत्र धर्मनिरपेक्ष देश में सुबह 7:43 पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुष और 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 लोग साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S6 में जिंदा जला दिए गए थे। उन लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी 2 दिनों के बाद मौत की नींद सो गया था। इस घटना के बाद पूरा गुजरात सुलग उठा औऱ सांप्रदायिक दंगे फैल गए। जिसमें 1200 से भी ज्यादा लोगों ने जान गंवाई। हालात इस कदर बिगड़े कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जनता से शांति की अपील करनी पड़ी। 

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