जब नए मंत्रीजी ने कोरोना पकड़ा (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Oct 27, 2020

कई दशक कंटीली तपस्या के बाद वे मंत्री बने। लोकतंत्र में जात पात, बिरादरी, क्षेत्र, इंतज़ार और कई तरह की पगडंडियों से गुज़र कर बनता है मंत्री पहली बार मंत्री होने पर अपने लोगों से अविलम्ब मिलना ज़रूरी हो जाता है। हस्तियां और कार्यकर्ता इंतज़ार कर रहे होते हैं। कोरोना तो कहता रहेगा, यह न करो, वह करो लेकिन विशेषज्ञों ने समझा दिया है कि अतिथि अभी लम्बे समय तक रहेगा, इसके साथ ही जीना है बस यही नव मंत्रीजी समझ गए थे। हमेशा से पॉजिटिव रहे, दिखने वाले दुश्मन से नहीं डरे, अदृश्य से क्यूंकर डरते, लेकिन कोरोना भी नहीं डरा। बड़े अस्पताल में भर्ती होते ही अपील की, जो उनके सम्पर्क में आए हैं वो कवार्नटीन हो जाएं। पहले किसी की हिम्मत नहीं हुई अब समझाने लगे, शपथ लेने से पहले टेस्ट कराने चाहिए थे। जीवन में पहली बार बने मंत्री के परिवार ने भी तो शपथ समारोह में जाना ही था। इतने संवेदनशील समय में मंत्री बन जाए तो भावनाएं उमड़ ही जाती हैं। टेस्ट कूड़ेदान में पड़ा होता है। 

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मंत्री हैं, विधायक दल की बैठक में क्यूं शामिल नहीं होंगे, होना पड़ता है। किसी छोटे नहीं, मोटे कर्मचारी की भी क्या हिमाकत कि टैस्ट के लिए कहे, सब जानते हैं राजनीति में फ्लोर टेस्ट ज़्यादा ज़रूरी होता है। पहली बार मंत्री बनना छोटी बात बिलकुल नहीं है, विधान सभा क्षेत्र बल्लियों उछल रहा है, ऐसे में कोरोना से डरना नहीं होता। लोकतंत्र में सुरक्षा नियम डरकर खुद कवार्नटीन हो जाते हैं। गाड़ियां, कुर्सियां, भवन, हस्तियां सेनिटाइज़ करना व्यवहारिक नहीं है। आदमी ने बड़ा आदमी होते ही बड़े लोगों की दुनिया को परेशान कर दिया, स्वागत समारोह में बरसों से इंतज़ार करती भावनाएं, महंगे फूल, बुके और मिठाइयां खड़ी होती हैं।

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हार्दिक, मानसिक, शारीरिक स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा भी थक चुकी होती है। पहली बार बने मंत्री का द्वारा स्वागत करवाना और पहली बार अपने बंदे का स्वागत करना एक स्वर्णिम ख़्वाब है जो हकीकत की परवाह नहीं करता। विरोधियों के आरोपों के बावजूद बरसात में गिरे डंगे, धंसी सड़क ने नुक्सान का जायजा लेने मंत्रीजी को बुला लिया ताकि एस्टीमेट जल्दी बने, अस्पताल में नई मशीनें उदघाटन की प्रतीक्षा में महीनों से कवार्नटीन थी उन्हें ताज़ा मंत्री के करकमलों से बेहतर ऊर्जा कहीं और से नहीं मिल सकती थी। सर्किट हाउस में गार्ड आफ ऑनर, जीवन में पहली बार लेना था। पहली बार इतनी ज्यादा फ़ोटोज़ भी खिंची और मनभावन ख़बरें भी छपी जिनसे एहसास हो गया कि शारीरिक दूरी का ख्याल रखना मुश्किल दिख रहा था। सामाजिक दूरियां कम करने में ऐसा स्वत हो जाता है। अब वही अखबार लिख रहे हैं कि नियमों का ध्यान नहीं रखा गया। मंत्री भी तो इंसान है। उन्होंने स्वयं और सभी को धन्य भी तो किया अब चौदह दिन सरकार के खर्चे पर आराम हो जाएगा। जब सभी ने कोरोना के साथ रहना है, तो डरने की क्या बात है।   


- संतोष उत्सुक

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