BJP के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की घड़ी आई करीब, तीन खूबियों वाले नाम पर लगाई गयी मुहर

By नीरज कुमार दुबे | Jul 02, 2025

भारतीय जनता पार्टी ने मंगलवार को छह राज्यों में अपने अध्यक्षों का चुनाव किया। इस तरह पिछले साल पार्टी के आंतरिक चुनाव शुरू होने के बाद से अब तक 22 राज्यों में उसके संगठनात्मक प्रमुखों का चुनाव हो चुका है। इसके साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए एक आवश्यक औपचारिकता भी पूरी हो गई है। हम आपको बता दें कि भाजपा के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले इसके 37 संगठनात्मक राज्यों में से कम से कम 19 में अध्यक्षों का चुनाव होना आवश्यक है। मंगलवार को जिन राज्यों में अध्यक्ष चुने गये उनमें महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड हैं जहां निर्विरोध चुनाव हुआ।


भाजपा ने राज्यों के अध्यक्ष के चुनाव में संगठन में लंबे समय तक काम करने वाले और सामाजिक मानदंडों पर खरा उतरने वाले नेताओं को प्राथमिकता दी है साथ ही यह सभी नाम आरएसएस के करीबी भी हैं। मध्य प्रदेश में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन करने वाले विधायक हेमंत खंडेलवाल भी आरएसएस के करीबी हैं और उनका भी चुना जाना तय है। इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी भाजपा अध्यक्ष के लिए नामांकन कराया गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक में मामला फंसा हुआ है और वहां भाजपा अभी तक अध्यक्ष नहीं चुन पाई है क्योंकि एक नाम पर आम सहमति नहीं बन पा रही है। उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा सारे जातिगत समीकरणों को साधना चाहती है इसलिए हो सकता है वहां नया अध्यक्ष, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही आये।

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माना जा रहा है कि भाजपा को नया अध्यक्ष इसी महीने के दूसरे सप्ताह तक मिल सकता है। हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरे से लौटने के बाद भाजपा के नये अध्यक्ष के लिए एक बड़े नेता का नामांकन भरवाया जायेगा। हम आपको याद दिला दें कि जनवरी 2020 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए जगत प्रकाश नड्डा का तीन साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से उन्हें विस्तार मिलता रहा है। पहले उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों के कारण और फिर संगठनात्मक कवायद के कारण विस्तार दिया गया था। इस तरह नड्डा लगातार सबसे लंबे समय तक भाजपा अध्यक्ष रहने वाले नेता भी बन गये हैं।


अब जब, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए भाजपा मुख्यालय में हलचलें तेज हो गयी हैं तो कई नाम फिर से सुर्खियों में आ गये हैं लेकिन राज्यों में अध्यक्षों के चुनाव से जो संकेत मिल रहे हैं वह यही दर्शा रहे हैं कि चर्चा में भले कोई भी नाम चले लेकिन अंतिम मुहर उसी नाम पर लगेगी जिसको संघ चाहेगा। संघ जानता है कि यह सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि आगामी वर्षों की राजनीतिक दिशा, संगठनात्मक रणनीति और चुनावी गणित को ठीक से बिठाने की कवायद भी है।


हम आपको बता दें कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद से भाजपा एक संक्रमण काल से गुजर रही है। हालांकि पार्टी ने सत्ता में वापसी की है, लेकिन पूर्ण बहुमत की कमी और कुछ राज्यों में हार ने संगठन के भीतर आत्ममंथन की आवश्यकता को जन्म दिया है। वैसे इसमें भी कोई दो राय नहीं कि वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल लंबा और चुनौतीपूर्ण रहा है, मगर कोविड काल से लेकर कई विधानसभा चुनावों तक, उन्होंने संगठन को संतुलित बनाए रखा। अब, नए अध्यक्ष का चुनाव एक संगठनात्मक कायाकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है, जिससे भाजपा 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में और अधिक मजबूती से उतर सके। इसलिए नये अध्यक्ष के नाम पर मंथन काफी समय से चल रहा है। हम आपको बता दें कि नये अध्यक्ष से पार्टी को तीन प्रमुख अपेक्षाएँ हैं:


1. संगठनात्मक जमीनी मजबूती: एक ऐसा नेता जो पार्टी के मूल कैडर से जुड़ा हो, जमीनी राजनीति को समझता हो और बूथ स्तर तक संवाद स्थापित करने में सक्षम हो।

2. राजनीतिक संतुलन: पार्टी में वरिष्ठ और युवा नेताओं, पुराने सहयोगियों और नए चेहरे, विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच संतुलन बनाने की कुशलता।

3. चुनावी कौशल: 2026 और 2027 में कई बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं इसलिए नए अध्यक्ष की भूमिका निर्णायक होगी।


हम आपको बता दें कि भाजपा में नए अध्यक्ष के लिए जिन नामों की चर्चा है, उनमें कुछ प्रमुख क्षेत्रीय नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ सांसदों के नाम शामिल हैं। माना जा रहा है कि पार्टी इस बार क्षेत्रीय संतुलन, जातीय समीकरण और राजनीतिक संदेश को ध्यान में रखकर चयन कर सकती है। यदि पार्टी दक्षिण भारत को महत्व देना चाहे तो कर्नाटक या तेलंगाना से नाम आ सकते हैं। यदि उत्तर भारत में कमजोर हो रहे जनाधार को मज़बूत करना उद्देश्य हो तो किसी पूर्व मुख्यमंत्री का नाम आगे किया जा सकता है।


हम आपको यह भी बता दें कि भाजपा में अध्यक्ष चयन की प्रक्रिया केवल चुनाव तक सीमित नहीं होती। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सहमति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जैसे वरिष्ठ नेताओं की राय का भी बड़ा महत्व होता है। देखा जाये तो भाजपा के लिए अध्यक्ष का चुनाव सिर्फ चेहरा बदलने का अवसर भर नहीं है। जो भी नया अध्यक्ष होगा, वह भाजपा को न केवल अगली चुनावी लड़ाई के लिए तैयार करेगा, बल्कि संगठन को वैचारिक स्पष्टता और रणनीतिक गहराई भी देगा। वैसे भी जब भाजपा जैसी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी अपने शीर्ष नेतृत्व में बदलाव करती है, तो उसके कई निहितार्थ होते हैं।

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