कल फिर वीआईपी मूवमेंट है, सरजी (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jun 25, 2019

शानदार गर्मी के बावजूद, सुबह चाय बनाते, पीते और अखबार खाते देर हो गई। खबरें बांचते हुए पत्नी को याद आ गया, बोली, कल आपने मेरे कपड़े, बिना पानी स्प्रे किए हुए प्रैस कर दिए, आज कपड़े ठीक तरह से प्रेस जल्दी कर लेना, गर्मी का मौसम बिजली न चली जाए। मैं मज़ाक में कहने वाला था कि गर्मी के मौसम में गर्मी ही होती है, सर। लेकिन गर्मी कहीं बढ़ न जाए इसलिए शांत रहा। सेवानिवृति के बाद सब्जी लाने, काटने व कपड़े चुपचाप प्रेस करने में भलाई है। लीजिए बिजली वाकई चली गई। शिकायत निवारण कक्ष वाले हर बार फोन उठा लें संभव नहीं, क्यूंकि वहां भी यू टयूब, फेसबुक उपलब्ध है। कई बार फोन नहीं उठाया तो किसी से विद्युत इंजीनियर का फोन नंबर लिया। पिछली बार गली की खराब टयूब अड़तीस दिन बाद बदली थी, पार्षद को व्यक्तिगत निवेदन करने के बाद। उन्हें फोन मिलाया तो समझाया गया, सर कल वीआईपी मूवमेंट है इसलिए जम्पर चैक कर रहे, कहीं ढीले न हों। एक घंटा शट डाउन लिया है। बढ़िया लगा कि वीआईपी मूवमेंट के बहाने आम लोगों की  भलाई में अच्छा मूवमेंट हो जाएगा। मुझे सालों बाद किसी ने ‘सर’ कहा तो वीआईपी की हवा मुझे स्पर्श कर गई। पत्नी के कपड़े प्रैस करते दिमाग में आया, फिल्म में जेम्सबॉन्ड बॉण्डगर्ल की बात सुनकर ‘यस सर’ कहता है।  

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पानी स्प्रे कर बढ़िया प्रेस किए कपड़े रखते हुए कहा लीजिए सर, तो पत्नी तपाक बोली फालतू की बातें न करें, वीआईपी महसूस करना और करवाना आपके बस में नहीं। अब मुझे चुप रहना था। दो दिन बाद फिर बिजली गई तो मैंने शिकायत कक्ष में फोन किया, अच्छा वक़्त मेरी तरफ था सो फोन सुन लिया गया। पूछा बिजली कब आएगी तो पूछने लगे कौन बोल रहे हैं सरजी, कहा एक कंज़्यूमर बोल रहा हूँ। कहने लगे बताना मुश्किल है जल्दी भी आ सकती है देर भी लग सकती है। नई नई सरकार है जनाब, कल फिर वीवीआईपी मूवमेंट है इसलिए चैक कर रहे हैं। समझाने लगे कि भविष्य में इस एरिया में बिजली कम मिला करेगी। बिजली न होने के अपने फायदे हैं, किसी के यहाँ पार्टी होगी तो असली अंधेरे में कैन्डल लाइट डिनर कर सच्चा मज़ा लिया जा सकता है। पत्नी ज़्यादा कामों के लिए नहीं कहेगी।  

 

खजूर के पत्तों से बने पंखे खरीद लेने चाहिए ताकि अगली बार जब बिजली न हो तो कुदरती सामग्री से बने पंखे से ताज़ा अप्रदूषित हवानन्द से नया अनुभव हो। कुछ देर बाद दूसरे मोबाइल फोन से आवाज़ बदलकर शिकायत कक्ष में फोन कर पूछा, लाईट कहां से गई है। उन्होंने आदतन पूछना ही था कौन बोल रहे हैं सरजी। कहा एक पत्रकार बोल रहा हूँ। सरजी सरजी सरजी, अब उन्हें करंट लग गया था, सरजी पंद्रह बीस मिनट में लाईट आ जाएगी।  

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कोई वीआईपी तो नहीं आ रहे न, सरजी। नहीं, मैंने फोन बंद कर दिया। तपाक से एहसास हुआ आजकल छोटा मोटा वीआईपी होना ज़रूरी है। शाम को जब हम पति पत्नी चाय पी रहे थे तो समझाया गया, आप ख्वाब में भी जेम्स बॉन्ड नहीं हो सकते जो सुबह मुझे सर कह रहे थे। अब रिटायरमेंट के बाद आप भी कुछ ढंग का काम करो ताकि कुछ बंदे तो आपको सर कहें। चाय की दो चार चुसकियों के बाद सलाह मिली, कोई छोटा मोटा अखबार भी जॉइन कर लो या अपना अखबार निकाल लो। अगले चुनावों में पार्षद का चुनाव भी लड़ लेना। समझ गया उस अखबार में स्थानीय प्रशासन, राजनीति, धर्म व सार्वजनिक परेशानियों बारे संतुलित खबरें छापते रहो और वीआईपी की तरह मूवमेंट करते रहो। वीआईपी को वीवीआईपी बनते क्या देर लगती है। पत्नी ने मुझे हिलाया, समझ गए न सर। 

 

- संतोष उत्सुक

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