दिल नहीं जिस्म होना चाहिदा जवां…. (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Jun 13 2019 5:12PM

विज्ञान ने जितनी तरक्की की वह इंसानी दिमाग के कारण ही की। कहा जाता है जहां दिमाग काम न करे दिल की सुननी चाहिए लेकिन आज दिल का प्रयोग सिर्फ धड़कन का पहाड़ा पढ़ने के लिए होने लगा है अब तो सारे काम दिमाग से किए जाते हैं, यहां तक कि प्यार भी। कहते हैं दिमाग हमेशा जवां रहता है, दिल ने ज्यों ज्यों उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ी हाँफता ही गया।

गुरदास मान ने दशकों पहले गाया था, ‘दिल होना चाहिदा जवान, उंमरा च की रखिया’। उन्होंने दिल की बात की थी लेकिन ज़माना बदल गया है अब दिल से, किसी को लेना देना नहीं है। अब लोग दिल की नहीं बिल की बात करते हैं। शरीर की बात करते हैं सब। बात भी सही है बंदा दिल की ही सुनता रहेगा तो निकम्मा हो जाएगा और भूखा ही मरेगा। शरीर का ज़माना है, शरीर बनाना है, जिस्म दिखाना है। पिछले दिनों इजरायल के विज्ञान शोधकर्ताओं ने शरीर को जवां, स्वस्थ और ऊर्जावान रखने के ख्वाब साकार होने के ख्वाब दिखाना शुरू कर दिया है। वे चूहों पर शोध करने के बाद कह रहे हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली को अधिक सक्षम बनाया जा रहा है। पता नहीं क्यूं पहले ऐसे प्रयोग चूहों पर ही क्यूं किए जाते हैं। क्या वर्तमान व्यवस्था में आम इंसान की कीमत चूहे से ज़्यादा है? क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि इंसान को ऐसे प्रयोगों के लायक समझा जाए। हमारे यहां ऐसे बहुत सज्जन लोग मौजूद हैं जो उम्र, पिचके मुंह, बिदकती चाल व लटकते पेट की परवाह नहीं करते, नियमित रूप से अपना मुंह, माफ करें बाल सिर काला करते हैं। जवान रहने के नए पुराने नुस्खे पढ़ते, सुनते और आज़माते रहते हैं चाहे एलर्जी हो जाए।  

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विज्ञान ने जितनी तरक्की की वह इंसानी दिमाग के कारण ही की। कहा जाता है जहां दिमाग काम न करे दिल की सुननी चाहिए लेकिन आज दिल का प्रयोग सिर्फ धड़कन का पहाड़ा पढ़ने के लिए होने लगा है अब तो सारे काम दिमाग से किए जाते हैं, यहां तक कि प्यार भी। कहते हैं दिमाग हमेशा जवां रहता है, दिल ने ज्यों ज्यों उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ी हाँफता ही गया। दिल से प्यार करने वाले, दिल देने और लेने वाले सिर्फ बातों और फेसबुक पर रह गए हैं। क्या दिल ने दुनिया भर में मुहब्बत, शायरी, कविता, कहानी के सिवाए कुछ नहीं करवाया। वैसे, ऐसे काम करने वाले अब हैरानी से नहीं देखे जाते क्यूंकि बाज़ार ने यहाँ भी कब्जा करना शुरू कर दिया है। कहीं हमारी ज़िंदगी में विज्ञान या विकास की दखलंदाज़ी ज़्यादा तो नहीं हो रही।

हमारे सामाजिक नायकों का शगल है रोबोटेक्स लगवा कर अपना फेस लिफ्ट करवा लें, मुंह से आवाज़ निकलना मुश्किल है, होंट हिलते हैं तो पता लगता है उम्र आ चुकी है। मेकअप के साँचे में फंसी हुई झुरियों वाला चेहरा, पैसा ज़ोर से पकड़ कर रखता है। कान पूरे लटकना चाहते हैं। सुविधाएं यदि पूरे शरीर को आबाद कर दें तो जवानी लौट सकती है। ये लोग दूसरों के लिए भी राष्ट्रीय प्रेरक हैं। इस उम्र में दौलत हो तो यही कराएगी, आंतड़ियों ने सब कुछ खाने के लिए नामंज़ूरी दे दी है, डायटीशियन नियमों की देखरेख में खिलाता रहता है और चेहरा नियमित पालिश करवाते रहते हैं। इनके काँपते हाथों में दिखता है कि उम्र के हाथों में खेल रहे हैं। गंजे होते सिर पर निन्यानवे बाल रह गए हैं, भौएँ ढलने लगी है गालें चिपक रही, आंखे क्या चश्में भी धंस रहे हैं। दांत खिसक रहे हैं मगर बाल काले या भूरे करवाकर कौन से किस्म की जवानी टिकने का संदेश देते हैं यह तो इन्हें भी नहीं पता। चैनल पर समझाते हैं कि छोटी छोटी चीजों में जो आनंद मिलता है बड़ी में नहीं मिलता। हाय! इन्हें यह पता नहीं कि साथ वाले बंगले में कौन रहता है।

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फेसबुक पर बहुत से दोस्तों की फसल उगाने के बाद भी इंसान ज़िंदगी के खेत में अकेला होता जा रहा है। विज्ञान की नकली, बनावटी दुनिया दिल से नहीं दिमाग से चलती है। स्वाभाविक है उसमें दिल, निश्छल प्रेम, स्वार्थहीन जुड़ाव के लिए कोई जगह नहीं है। दिल नहीं दिमाग़ ने दुनिया पर काबू कर लिया है और दुनिया जिस्म की दीवानी है। गुरदास मान का गाना अब ऐसे गा सकते हैं, ‘दिल नहीं जिस्म होना चाहिदा जवां’

- संतोष उत्सुक

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