By अभिनय आकाश | Sep 26, 2025
23 महीने बाद समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान जेल से बाहर आ गए। आजम खान के जेल से बाहर आते ही समाजवादी पार्टी में हलचल शुरू हो गई है। एक तरह से कहे तो यूपी की सियासत में भूचाल आ गया है। साल 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में आजम खान की रिहाई को यूपी की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। यूपी के विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन इसी के साथ साथ ये भी कहा जा रहा है कि कहीं आजम खान जेल से आने के बाद अब अखिलेश यादव की मुश्किल तो नहीं बन जाएंगे। क्योंकि आजम खान ने साफ तौर पर कहा कि मैं तो छोटा नेता हूं, बड़ा नेता होता तो बड़े नेता मुझे रिसीव करने के लिए जाते। उसके तुरंत बाद अखिलेश यादव ने उनसे मिलने की मीटिंग फिक्स कर ली। कहा जाने लगा कि क्या अखिलेश यादव की तरफ से आजम खान को नजरअंदाज करने की कोशिश की जा रही थी। जिस तरीके से अखिलेश यादव पर मुस्लिमों का समर्थन करने और सपा पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगते रहते हैं। जिसका खामियाजा भी कई बार उन्हें भुगतना पड़ता है।
आजम खान के बाहर आने के बाद राजनीतिक समीकरण भी बदलेंगे। 23 महीनों के आजम खान के जेल यात्रा के दौरान सपा का कोई बड़ा नेता उनसे मिलने नहीं आया। एक तरह से उन्हें अकेला छोड़ दिया गया। आजम खान जब जेल से रिहा होकर आ रहे थे तो हजारों लोगों की मौजूदगी थी और 50 से ज्यादा गाड़ियों का काफिला था। लेकिन सबसे दिलचस्प ये रहा कि न तो इस काफिले में किसी सपा नेता की गाड़ी और न ही कोई बड़े नेता की मौजूदगी रही। उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले जानकार बताते हैं कि ये बात आजम खान को अंदर तक चुभी है। जिस पार्टी के लिए उन्होंने अपनी जवानी से लेकर अभी तक क्या कुछ नहीं किया। अमर सिंह से लेकर मायावती तक सभी से पंगा भी लिया। उस पार्टी ने उन्हें क्या दिया।
आजम खान की रिहाई की टाइमिंग पर नजर डालें तो ये भी काफी अहम है। आगामी 9 तारीख को मायावती की रैली है। लंबे समय बाद मायावती जनता के सामने आकर रैली करेंगी। उसके पहले इनकी रिहाई हुई। यूपी की राजनीति को समझने वाले ये भी समझ रहे हैं कि अखिलेश यादव डर गए हैं। आजम खान ऐसी मछली हैं जिन्हें न निगलते बन रहा न उगलते बन रहा है। आनन फानन में उन्होंने मिलने का मीटिंग फिक्स किया है। आजम खान से मोहब्बत नहीं है। अखिलेश को इस बात का डर है कि आजम अगर मायावती के साथ चले गए तो फिर सपा का क्या होगा।
अब जब अखिलेश यादव आजम खान से मुलाकात के लिए जाएंगे तो हो सकता है कि कुछ मान मनौव्ल की कोशिश हो। आजम खान अपने बेटे अब्दुल्ला या फिर बहू के चुनाव की गोटी सेट कर सकते हैं। जब आजम खान की बहू चुनाव लड़ेंगी तो इकरा हसन जैसा माहौल बन सकता है। अखिलेश को भी इससे कोई गुरेज नहीं हो सकता है। आजम खान या उनके बेटे के चुनाव लड़ने पर फिर से पुरानी धाक जमाने का मौका मिल सकता है और अखिलेश ऐसा पार्टी में दो पॉवर सेंटर नहीं बनाना चाहेंगे। मुलायम के दौर में अमर सिंह भी जिसका जिक्र कर कहा करते थे कि रामपुर ही आजम खान हैं। मुलायम भी सीएम रहते हुए वहां दखल नहीं दे सकते थे।
दलित और मुसलमान के एक साथ आने की सूरत में सत्ता दिलाने की क्षमता है। अखिलेश अगर ये सोच रहे होंगे की आजम खान को साइडलाइन करना है तो इस सूरत में वो रामपुर सीट को कांग्रेस के पाले में डाल सकते हैं। रामपुर में सपा लड़े भी और आजम खान नहीं भी रहे ये संभव नहीं है। यूपी के 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अगर आजम खान मुस्लिम बहुल इलाकों में घूमे और बसपा के नेता के रूप में घूमे तो क्या होगा। सीधा सीधा इसका घाटा अखिलेश यादव को होगा। अगर मायावती के पास दलित और मुस्लिम वोट चला गया तो फिर बड़ा खेला हो सकता है और सपा मुख्य विपक्षी पार्टी भी न रहे।
समाजवादी पार्टी के इतिहास को देखे तो मुस्लिम यादव समीकरण की बदौलत ही उसका पूरा रसूख रहा है। बीजेपी की राजनीति करने के तरीके के काउंटर में अलग तरह की राजनीति करने में लग गए हैं। मुख्तार अंसारी के भाई का एक बयान आपको याद होगा जब उन्होंने कहा था कि मुसलमान पिछले तीन दशकों से यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जुटा हुआ है। क्या यादव किसी एक मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जुटेंगे। मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उन्होंने ये बयान दिया था।
आजम खान को 23 माह बाद राहत मिली। लेकिन इससे पहलेआजम खान के बेटे अब्दुला आजम को बेल मिल गई और वो बाहर निकल कर आ गए। उसके आजम खान की पत्नी तंजिन फातिमा और उनके बड़े बेटे आदिब, आजम खान की बहन निकहत सारे लोग अंतरिम बेल पर थे। लेकिन सभी को रेगुलर बेल मिल चुकी है। यानी अंतरिम बेल पर रहने से जो गिरफ्तारी की तलवार उनके सिर पर लटक रही थी वो हट चुकी है।
जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह केंद्र की राजनीति में आए। जब 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा जा रहा था। उसी वक्त से अमति शाह और मोदी कहते रहे कि यूपी में तुष्टीकरण की राजनीति चलती रही। मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, आजम खान का नाम इनमें प्रमुखता से लिया जाता रहा। दो मिट्टी में मिल कर ऊपर चले गए और आजम खान लंबे समय से सलाखओं के पीछे हैं। ऐसे में अचानक से आजम खान को लेकर अटकलों का बाजार क्यों गर्म हो गया है? राजनीति में रिश्ते बदलते रहते हैं और जो आपका पक्का दोस्त वो कल आपका दुश्मन भी बन सकता है और जो आज दुश्मन है वो दोस्त भी बन सकता है। 2014 से बीजेपी की बुलंद होती इमारत पर 2024 आते-आते सीलन आने लगी है। बीजेपी का धीरे-धीरे ग्राफ घट रहा है और क्या इसीलिए एक नया प्लान बन रहा है। बीजेपी को लगता है कि अगर आजम खान यूपी में अखिलेश यादव के विरोध में चुनाव लड़ेंगे तो साल 2027 में बीजेपी फिर से सत्ता पाने में आसानी होगी। इसके बदले आजम खान को थोड़ी राहत देने में कोई घाटे का सौदा नहीं है। अगर आजम खान अखिलेश यादव की सपा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे तो फिर सपा को भारी नुकसान होगा जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।