बालासाहेब महाराष्ट्र का भला सोचते थे, उद्धव परिवार का भला देखते हैं

By रमेश सर्राफ धमोरा | Nov 01, 2019

शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे शिवसेना के एकछत्र नेता थे तथा पूरी पार्टी को अपनी मुट्ठी में रखते थे। मगर उन्होंने कभी अपने परिवार के किसी सदस्य को चुनाव नहीं लड़ने दिया था। उनके इन्हीं विचारों की बदौलत शिवसेना महाराष्ट्र में तेजी से एक प्रमुख राजनीतिक दल के रूप में उभरी व 1995 से 1999 तक प्रदेश में शिवसेना के मनोहर जोशी व नारायण राणे मुख्यमंत्री बने। लेकिन अब शिव सेना का चेहरा, चाल व चरित्र बदल चुका है।

 

शिवसेना के वर्तमान प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बालासाहेब ठाकरे के सिद्धांतों को तिलांजलि देते हुये अपने बेटे आदित्य ठाकरे को चुनाव लड़वा कर विधायक बनवा चुके हैं। उनका अगला प्रयास पुत्र आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री बनवाना है। वर्तमान समय में उद्धव ठाकरे पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बने हुए हैं। उनके राजहठ के चलते महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन नहीं हो पा रहा है। उद्धव ठाकरे अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने का सपना देख रहे हैं। इस कारण महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर गतिरोध चल रहा है। चूंकि विधानसभा चुनाव से पूर्व महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को ही अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया गया था। विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद भारतीय जनता पार्टी को 122 के स्थान पर 105 सीटें व शिवसेना को 63 के स्थान पर 56 सीटें मिली हैं।

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चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कम सीटें मिलते ही शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने मांग की है कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना का ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री रहे। जबकि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का कहना है कि चुनाव पूर्व सीटों के बंटवारे के समय मुख्यमंत्री के पद के बंटवारे को लेकर कोई समझौता नहीं किया गया था। भारतीय जनता पार्टी को उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का उपमुख्यमंत्री बनाने में कोई दिक्कत नहीं है।

 

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 148 सीटों पर तथा उनके सहयोगी अन्य छोटे दलों ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा थ। जबकि शिवसेना ने 124 सीटें सीटों पर चुनाव लड़ा था। चुनाव परिणाम की दृष्टि से देखें तो भारतीय जनता पार्टी का चुनाव परिणाम शिवसेना से बहुत अधिक बेहतर रहा है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का रेशा 64 प्रतिशत रहा वहीं शिवसेना के जीत का रेशा 45 प्रतिशत ही रहा है। इस तरह देखें तो भारतीय जनता पार्टी की स्थिति शिवसेना से कहीं अधिक सुदृढ़ नजर आती है। विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पिछली बार की तुलना में 2.06 प्रतिशत वोट कम मिले वहीं शिवसेना को 2014 की तुलना में 2.94 प्रतिशत वोट कम मिले हैं।

 

महाराष्ट्र के चुनावी इतिहास को देखें तो भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन करने के बाद ही शिवसेना ने राजनीति में लंबी छलांग लगाई है 1989 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 के विधानसभा चुनाव तक शिवसेना ने प्रदेश के 288 विधानसभा सीटों में 1995 में सर्वाधिक 73 सीटें जीती थीं वह भी भाजपा के साथ गठबंधन करने से। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में अपने दम पर 122 सीटें जीत कर शिवसेना को बहुत पीछे छोड़ दिया था। भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन होने से पूर्व शिवसेना का राजनीतिक स्कोर शून्य था। जबकि महाराष्ट्र में भाजपा व उसके पूर्ववर्ती जनसंघ हर चुनाव में सीटें जीतता रहा था।

 

1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठबंधन हुआ और उस चुनाव में शिवसेना ने पहली बार लोकसभा की एक सीट पर जीत दर्ज की थी। उसके बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने 4 सीटें जीतीं, 1996 में 15 सीट, 1998 में 6 सीट, 1999 में 15 सीट, 2004 में 12 सीट, 2009 में 11 सीट, 2014 में 18 सीट व 2019 के लोकसभा चुनाव में भी 18 सीटें जीती थीं।

इसी तरह 1972 में शिवसेना विधानसभा की 1 सीट जीतने में कामयाब रही थी लेकिन उसके बाद उसने कोई सीट नहीं जीती थी। 1989 में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठबंधन होने के बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में पहली बार शिवसेना ने 183 सीटों पर चुनाव लड़ कर 52 सीट व 15 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। 1995 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 169 सीटों पर चुनाव लड़ कर 73 सीट व 16.39 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। 1999 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 169 सीटों पर चुनाव लड़ कर 69 सीट व 17.33 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। 2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 163 सीटों पर चुनाव लड़कर 62 सीट व 19.97 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। 2009 के विधानसभा चुनाव में 160 सीटों पर चुनाव लड़कर 45 सीट व 16.26 प्रतिशत वोट हासिल किए थे।

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2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूट गया था। 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 286 सीटों पर चुनाव लड़ा था व 63 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2014 में शिवसेना को 19.35 प्रतिशत वोट मिले थे। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा शिवसेना ने फिर से गठबंधन करके पांच साल सरकार चलाई थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा। शिवसेना ने 124 सीटों पर चुनाव लड़कर 56 सीटें व 16.41 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं।

 

2019 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा मगर दोनों दलों की सीटें कम हुयी हैं। भारतीय जनता पार्टी 122 से घटकर 105 सीटों पर आ गई। उसके वोटों में भी 2.06 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं शिवसेना 63 सीटों से घटकर 56 सीटों पर आ गई, उसके वोटों में भी 2.94 प्रतिशत की कमी आई है।

 

2014 की तुलना में इस बार भारतीय जनता पार्टी की 17 सीटें कम आने से शिवसेना भारतीय जनता पार्टी से सत्ता का मोलभाव करने पर उतारू हो गई है। चुनाव से पूर्व जहां सभी जनसभाओं में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री मानकर चुनाव लड़ा जा रहा था वहीं अब शिवसेना के तेवर तीखे हो गए हैं। शिवसेना के नेताओं ने सत्ता में बराबर की हिस्सेदारी व मुख्यमंत्री पद के बंटवारे की मांग सामने रखकर भारतीय जनता पार्टी के सामने एक नई समस्या खड़ी कर दी है। रही सही कसर शिवसेना का मुखपत्र माना जाने वाला समाचार-पत्र सामना पूरी कर रहा है। सामना रोजाना कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की बजाय भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ आग उगल रहा है जिससे दोनों दलों के संबंधों में तल्खी आ रही है। ऊपर से शिवसेना के कई नेता भी भड़काने वाले बयान दे रहे हैं।

 

हालांकि भारतीय जनता पार्टी की तरफ से अभी तक उकसाने वाला कोई बयान नहीं दिया गया है। भारतीय जनता पार्टी का कोई भी नेता ऐसा कोई बयान नहीं दे रहा है जिससे भविष्य में दोनों दोनों में गठबंधन की सरकार बनाने में कोई दिक्कत पैदा हो। अपने पुत्र को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कट्टर हिंदूवादी छवि की राजनीति करने वाले शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे अजमेर की दरगाह में जाकर शीश नवा चुके हैं ताकि उसे मुस्लिम समाज में भी मान्यता मिल सके। शिवसेना नेता बार-बार भारतीय जनता पार्टी को धमकी दे रहे हैं कि यदि हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम धुर विरोधी विचारधारा वाली कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से भी हाथ मिला कर सरकार बना सकते हैं।

 

बहरहाल महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर हो रही देरी से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि शिवसेना पहले से अधिक व बड़े मंत्रालय लेने के चक्कर में पूरा खेल खेल रही है। सरकार तो आखिर उसको भाजपा के साथ ही बनानी पड़ेगी। अजमेर दरगाह जाने से शिवसेना कट्टर हिंदू वादी छवि से इतनी जल्दी मुक्त नहीं हो पायेगी। यदि कांग्रेस पार्टी शिवसेना से किसी तरह का गठबंधन करती है तो महाराष्ट्र में तो उसका वजूद मिटेगा ही साथ ही पूरे देश में उसकी सेक्युलर पार्टी वाली छवि को भी भारी नुकसान होगा। सत्ता को लेकर शिवसेना जिस तरह से नाटक कर रही है उससे प्रदेश के आम वोटरों में उसकी पहले वाली छवि को नुकसान हो रहा है। आज शिवसेना की छवि सत्ता लोलुप दल की बनती जा रही है, जिसका एक ही उद्देश्य होता है कि किसी भी तरह से सत्ता हासिल हो। शिवसेना को जल्दी ही निर्णय करके प्रदेश में नयी सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त करना चाहिये ताकि प्रदेश में विकास को रफ्तार मिल सके।

 

-रमेश सर्राफ धमोरा

 

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