शहनाई को बेगम की तरह चाहते थे शहंशाह बिस्मिल्ला खां

By प्रज्ञा पाण्डेय | Mar 20, 2018

शहनाई के बादशाह बिस्मिल्ला खां को कौन नहीं जानता। शहनाई को पूरी दुनिया में मशहूर करने वाले बनारस के लाल ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी कला से सबको चकित किया है। 21 मार्च को शहनाई के जादूगर का जन्मदिन है। इस मौके पर उनकी मीठी यादों को ताजा करते हैं। 

प्रारम्भिक जीवन 

बिस्मिल्ला खां का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव जिले में हुआ था। पैगम्बर खां और मिट्ठन बाई के यहां जन्मे इस बालक की प्रतिभा को कोई जान नहीं सका। वह अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे। उनके बचपन का नाम कमरूद्दीन था। पहली बार उनके दादा रसूल बख्श ने उन्हें देखकर बिस्मिल्ला कहा तब से उनका नाम बिस्मिल्ला खां हो गया। उनके खानदान में लोग संगीत में माहिर थे और बिहार के भोजपुर रियासत में अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। बिस्मिल्ला खां के पिता भी अच्छे शहनाई वादक थे। वह डुमराव रियासत के राजा के यहां शहनाई बजाते थे। बिस्मिल्ला खां ने शहनाई बजाना अपने चाचा अली बख्श विलायती से सीखी थी। बनारस में उस्ताद केवल छः साल की उम्र में आए थे और फिर यहीं के होकर रह गए।

 

कॅरियर 

बिस्मिल्ला खां ने पारम्परिक लोकगीतों जैसी कजरी, चैता और झूला की धुनों पर रियाज किया और उसमें अपनी कला को निखारने का प्रयास किया। साथ ही उस्ताद ने भारत के बड़े-बड़े संगीतकारों के साथ जुगलबंदी की। उन्होंने सितार वादक विलायत खां और वायलिन के सरताज वी.जी. जोग के साथ उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन किया। वह जाति-पाति में भेद नहीं करते थे। सरस्वती के उपासक उस्ताद बिस्मिल्ला खां को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और शान्ति निकेतन ने डाक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

 

लालकिले पर बजायी शहनाई 

15 अगस्त 1947 में भारत की आजादी के बाद बिस्मिल्ला खां को लाल किले पर शहनाई बजाने का अवसर मिला। आजाद भारत की पहली शाम को लाल किले पर जब शहनाई बजी तो आजाद भारत उस्ताद की शहनाई की धुन से झूम उठा।

 

बिस्मिल्ला खां के अवार्ड

बिस्मिल्ला खां को पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण के साथ संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से भी नवाजा गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तानसेन पुरस्कार भी दिया गया। साथ ही 2001 में उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। 

 

एल्बम 

बिस्मिल्ला खां के मेघ मल्हार, मेट्रो चॉइस, गूंज उठी शहनाई, और सनादी अपन्ना प्रमुख एल्बम हैं। 

 

शहनाई थी बेगम

बिस्मिल्ला खां को अपने शहनाई से बहुत लगाव था। शहनाई के जादूगर शहनाई को अपनी बेगम की तरह चाहते थे। पत्नी की मौत के बाद शहनाई ही उनकी बेगम और शहनाई ही साथी थी। 

 

विदेशों में भी दिखाई कला 

बिस्मिल्ला खां ने देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी शहनाई से सबको दीवाना बनाया है। उन्होंने इराक, इरान, अफगानिस्तान, पश्चिम अफ्रीका, अमेरिका, जापान, कनाडा और सोवियत संघ की राजधानी में अपनी कला का प्रदर्शन किया है।

 

निधन

बिस्मिल्ला खां का निधन बनारस में 21 अगस्त 2006 को हुआ था। उनकी मृत्यु कार्डियक अरेस्ट से हुई थी। उनकी पांच बेटियां और तीन बेटे थे। इसके अलावा हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रमुख गायिका सोमा घोषा को अपनी पुत्री स्वीकार किया था। भारत सरकार ने उनकी मृत्यु के दिन राष्ट्रीय शोक घोषित किया था।

 

-प्रज्ञा पाण्डेय

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