By अनन्या मिश्रा | Oct 07, 2025
हिंदुओं के आराध्य श्रीराम की जीवन गाथा पर आधारित ग्रंथ 'रामायण' के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की आज 07 अक्तूबर को जन्म जयंती मनाई जा रही है। महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वह संस्कृत साहित्य के आदि कवि माने जाते हैं। इस बार 07 अक्तूबर 2025 को महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जा रही है। उनके द्वारा रचित महाकाव्य रामायण को सबसे प्रामाणिक माना जाता है।
इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि करने के बाद पूजा घर को साफ कर लें।
इसके बाद महर्षि वाल्मीकि का मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
फिर धूप-दीप और फूल अर्पित कर उनका विधिविधान से पूजन करें।
अब वाल्मीकि रचित रामायण जी का पाठ करें।
फिर अपने सामर्थ्य अनुसार जरूरतमंद लोगों धन, अन्न और वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
बता दें कि हर साल वाल्मीकि जयंती बड़े उल्लास के साथ मनाई जाती है। इस मौके पर शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है और वाल्मीकि मंदिर में भी पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन वाल्मीकि जी को याद करते हुए इस मौके पर राम भजन किया जाता है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी और सभी को सदमार्ग पर चलने की राह दिखाई थी।
पौराणिक कथा के मुताबिक महर्षि वाल्मीकि के बचपन का नाम रत्नाकर था। माना जाता है कि वह युवावस्था में डाकू हुआ करते थे और लूटपाट करके परिवार का पालन-पोषण करते थे। एक बार रत्नाकर को नारद मुनि मिले। ऐसे में स्वभाव से मजबूर रत्नाकर ने महर्षि नारद को लूटने का प्रयास किया। तब नारद मुनि ने पूछा कि वह यह निम्न कार्य क्यों करते हैं, इस पर उन्होंने कहा कि परिवार को पालने के लिए वह ऐसा करते हैं।
तब नारद मुनि ने कहा कि जिन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह परिवार के सदस्य तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनेंगे। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर ने नारद मुनि को पेड़ से बांध दिया और अपने परिवार के पास उत्तर जानने के लिए गए। परिवार के पास जाकर उनको पता चला कि परिवार का कोई भी सदस्य उनके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। नारद मुनि द्वारा ज्ञान पाकर रत्नाकर का हृदय परिवर्तन हो गया। उन्होंने जाने-अंजाने में किए गए पापों का प्रायश्चित करने के लिए कठिन तब किया।
नारद मुनि ने उनको राम नाम जपने का उपदेश दिया। लेकिन रत्नाकर राम नाम भी नहीं बोल पाते थे। तब नारद जी ने उनसे मरा-मरा जपने को कहा और मरा-मरा रटते-रटते यह 'राम-राम' हो गया। रत्नाकर अपने तप में इतना ज्यादा लीन हो गए कि उनको इस बात की भी भनक नहीं रहा कि उनके आसपास क्या घटित हो रहा है। एक समय पर उनके शरीर पर दीमक ने टीला बना लिया। बताया जाता है इसी कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। इतना ही नहीं वाल्मीकि जी के आश्रम में ही देवी सीता आश्रय लेने पहुंची थीं। जहां पर मां सीता और श्रीराम के दो जुड़वां पुत्रों लव-कुश ने जन्म लिया था।