ग्वालियर शहर का विलास महल जहाँ इतिहास आधुनिकता से मिलता है

By रेनू तिवारी | Feb 08, 2018

ग्वालियर एक ऐतिहासिक शहर है जो अपने मंदिरों, प्राचीन महलों और करामाती स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है जो किसी भी यात्री को पुराने ज़माने में ले जाते हैं। यह मध्य प्रदेश राज्य का चौथा बड़ा शहर है।

ग्वालियर को हिन्द के किले के हार का मोती कहा जाता है। यह स्थान ग्वालियर किले के लिए प्रसिद्ध है जो कई उत्तर भारतीय राजवंशों का प्रशासनिक केंद्र था। 

 

जहाँ इतिहास आधुनिकता से मिलता है 

ग्वालियर वह स्थान है जहाँ इतिहास आधुनिकता से मिलता है। यह अपने ऐतिहासिक स्मारकों, किलों और संग्रहालयों के द्वारा आपको अपने इतिहास में ले जाता है तथा साथ ही साथ यह एक प्रगतिशील औद्योगिक शहर भी है। आधुनिक भारत के इतिहास में ग्वालियर को अद्वितीय स्थान प्राप्त है।

 

जय विलास महल 

आज भी सिंधिया राजवंश और उनके पूर्वजों का निवास स्थान है। इसके एक भाग का उपयोग आजकल संग्रहालय की तरह किया जाता है। इसका निर्माण जीवाजी राव सिंधिया ने 1809 में किया था। लेफ्टिनेंट कर्नल सर माइकल फ़िलोस इसके वास्तुकार थे। इसकी स्थापत्य शैली इतालवी, टस्कन और कोरिंथियन शैली का अद्भुत मिश्रण है। यहाँ सिंधिया शासनकाल के कई दस्तावेज़ और कलाकृतियाँ तथा औरंगज़ेब और शाहजहाँ की तलवार है। इटली और फ़्रांस की कलाकृतियां और जहाज़ भी यहाँ प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं। संग्रहालय में हज़ारों टन के दो बड़े झूमर लगे हुए हैं जो निश्चित रूप से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह स्थान इतिहासकारों और सामान्य जनता को समान रूप से आकर्षित करता है।

 

400 कमरे वाला महल

400 कमरे वाला यह महल पूरी तरह व्हाइट है और यह 12 लाख वर्ग फीट में बना है। उस समय इसकी कीमत 1 करोड़ रुपए थी। इस पैलेस में 400 कमरे हैं, जिनमें से 40 कमरों में अब म्यूजियम है।

 

1874 में बनाया गया था महल

1240771 वर्ग फीट में फैला हुआ यह खूबसूरत महल श्रीमंत माधवराव सिंधिया ने 1874 में बनवाया था। जब इस महल को बनाया गया उस वक्त इसकी कीमत करीब 1 करोड़ रुपए थी लेकिन अब इस महल की कीमत अरबों में है।

 

प्रिंस एडवर्ड के स्वागत में बनवाया गया जयविलास

इंग्लैंड के शासक एडवर्ड-VII के भारत दौरे के दौरान उनके स्वागत के लिए जयविलास पैलेस के निर्माण के लिए योजना बनाई गई।

 

विदेशी कारीगरों ने सजाया है पूरा महल

इस महल को सजाने के लिए माधवराव सिंधिया ने विदेशी कारीगरों की मदद ली थी। फ्रांसीसी आर्किटेक्ट मिशेल फिलोस ने इस महल का निर्माण करवाया था।

 

3500 किलो का झूमर टंगा है

महल की खास बात यह है कि महल में 3500 किलो का झूमर लगा हुआ है जो अपने आप में अनोखा है। झूमर को लगाने के लिए हाथियों की ली गई थी मदद झूमर को छत पर टांगने से पहले इंजीनियरों ने छत पर 10 हाथी चढ़ाकर देखे थे कि छत वजन सह पाती है या नहीं। यह हाथी 7 दिनों तक छत की परख करते रहे, इसके बाद यहां झूमर लगाया गया था।

 

चांदी की ट्रेन है आकर्षक

जब आप डाइनिंग हॉल में जाएंगे तो वहां डाइनिंग-टेबल पर चांदी की ट्रेन मिलेगी। ये ट्रेन मेहमानों को खाना परोसती है।

 

छत पर लगा है सोना

इस महल की छत पर जब आप नजर ड़ालेंगे तो आपको छत पर सोना और रत्न से की गई कारीगरी मिलेगी।

 

महल का एक हिस्सा है म्यूजियम

इस महल में कुल 400 कमरे हैं जिसमें 40 कमरे म्यूजियम के तौर पर रखे गए हैं। इस महल की ट्रस्टी ज्योतिरादित्य की पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया हैं।

 

कलाकृतियां करती है आकर्षित

इस महल में आपको औरंगजेब और शाहजहां की तलवार मिलेंगी। इटली और फ्रांस की कलाकृतियां और जहाज भी यहां प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं।

 

- रेनू तिवारी

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