Vishweshwar Vrat 2025: भीष्म पंचक के तीसरे दिन किया जाता है विश्वेश्वर व्रत, जानिए महत्व और कथा

By अनन्या मिश्रा | Nov 03, 2025

हिंदू पुराणों में कई सारे व्रतों और त्योहारों के बारे में वर्णन किया गया है। इनमें से विश्वेश्वर व्रत की भी बहुत महिमा बताई गई है। त्रिनेत्र भगवान शिव को विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह व्रत शुभ प्रदोष व्रत के दिन पड़ता है। इस बार 03 नवंबर 2025 को विश्वेश्वर व्रत किया जा रहा है। भगवान शिव को विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है। यही वजह है काशी में स्थित ज्योतिर्लिंग को काी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। विश्वेश्वर व्रत कार्तिक माह की पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के तीसरे दिन किया जाता है।


विश्वेश्वर व्रत का महत्व

इस व्रत की महिमा काफी निराली है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और कहा जाता है कि इस व्रत को करके भगवान शिव से जो भी कामना की जाती है, वह जरूर पूरी होती है। भगवान शिव के इस स्वरूप को समर्पित एक मंदिर कर्नाटक में है। जिसको विश्वेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित विश्वेश्वर व्रत करने से जातक के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।


कब है विश्वेश्वर व्रत

भगवान शिव को समर्पित यह व्रत कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के पांच दिन के त्योहारों के तीसरे दिन किया जाता है। इस बार 03 नवंबर 2025 को विश्वेश्वर व्रत किया जा रहा है। इस दिन आप भगवान शिव का रुद्राभिषेक भी करवा सकते हैं।


विश्वेश्वर व्रत कथा

विश्वेश्वर व्रत को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। कथा के मुताबिक कुथार राजवंश में कुंडा नामक राजा था। उसने ऋषि भार्गव को अपने राज्य में पधारने का न्योता दिया। लेकिन ऋषि भार्गव ने मना कर दिया और कहा कि उनके राज्य में मंदिर और पवित्र नदियां नहीं हैं, जहां पर कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के तीसरे दिन पूजा-अर्चना की जा सके। जब राजा कुंडा ने यह बात सुनी तो उन्होंने अपना राज्य छोड़ दिया और भगवान शिव की तपस्या के लिए चले गए।


इसके बाद राजा कुंडा ने भगवान शिव की तपस्या की और भगवान शिव प्रसन्न हो गए। तब राजा कुंडा ने भगवान शिव से अपने राज्य में रहने का वरदान मांग लिया। जिस पर भगवान शिव सहमत हो गए। लेकिन वहां पर भगवान शिव एक कंद के पेड़ में रह रहे थे। वहां पर एक आदिवासी महिला अपने बेटे को तलाश कर रही थी, जोकि जंगल में खो गया था। उस महिला ने पेड़ के पास जाकर कंद काटने के लिए तलवार को पेड़ पर मारा तो पेड़ से खून निकलने लगा।


इस पर महिला को लगा कि वह कंद नहीं बल्कि उसका बेटा है। यह देखकर महिला अपने बेटे का नाम 'येलू' पुकारकर जोर-जोर से रोने लगी। तभी भगवान शिव वहां पर लिंग रूप में प्रकट हुए। बता दें कि महिला की तलवार का निशान आज भी लिंग येलुरू श्री विश्वेश्वर मंदिर में देखा जा सकता है। माना जाता है कि कर्नाटक का येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर उसी स्थान पर बना है

प्रमुख खबरें

रूसी राष्ट्रपति पुतिन का विमान भारत जाते समय दुनिया का सबसे ज़्यादा ट्रैक किया जाने वाला विमान था

Shikhar Dhawan Birthday: वो गब्बर जिसने टेस्ट डेब्यू में मचाया था तहलका, जानें शिखर धवन के करियर के अनसुने किस्से

Parliament Winter Session Day 5 Live Updates: लोकसभा में स्वास्थ्य, राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक पर आगे विचार और पारित करने की कार्यवाही शुरू

छत्तीसगढ़ : हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की तबीयत बिगड़ी, अस्पताल में भर्ती